श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! कालयवन भस्म हुआ – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 5” !!
भाग 1
तात ! जरासन्ध का आग्रह टाल न सका था कालयवन …….”मथुरा आक्रमण करके श्रीकृष्ण और बलराम का वध”…….यही आग्रह किया था जरासन्ध नें …….शिशुपाल गया था कालयवन के पास ।
कालयवन नें तुरन्त मान लिया…….और अपनी यवन सेना लेकर मथुरा के लिये चल भी पड़ा था ।
जरासन्ध नें ये जब सुना तो गदगद् हुआ वो ………अब तो कृष्ण मारा ही जायेगा ………कितना भी शक्तिशाली सही कृष्ण किन्तु इस कालयवन को तो शिव से वर प्राप्त है ……नही मार सकता कोई यदुवंशी इसे…..अपनी पुत्रियों को जरासन्ध नें ये बातें बताई थीं …….वो भी बहुत प्रसन्न हुयीं ………उद्धव नें विदुर जी को कहा ……….कुछ दिन लगे मथुरा पहुँचनें में कालयवन को …………..क्यों की रेत के भूखण्ड से ये चला था ………किन्तु अतिशीघ्रगामी अश्व इसके पास थे ….इन्हीं को लेकर ये चला था ।
मथुरा पहुँचा कालयवन…….उसकी यावनी सेना नें मथुरा को घेर लिया था……..पर कोई यदुवंशी बाहर नही आया ।
यहाँ के लोग सब मृत हैं क्या ? अट्हास करते हुये बोला कालयवन ।
वो उन्मत्त की भाँति मथुरा में घूमता रहा…….फिर उसकी दृष्टि गयी एक विशाल द्वार पर…….यही होगा मुख्य द्वार इस नगर का ……..कालयवन नें द्वार को ध्यान से देखा ……..वो अपनी सेना को द्वार तोड़नें का आदेश देनें ही वाला था कि……… द्वार खुला …….कालयवन रुक गया …..अपनी सेना को भी उसनें रोक दिया ।
तभी – नील नीर धर श्याम पीताम्बरधारी…..कमल की माला पहनें हुये ……मुस्कुराता हुआ अद्भुत मुखारविन्द…..घुँघराले केश….वो निकले द्वार से…..अहो ! उनके बाहर आते ही द्वार फिर बन्द हो गया था ।
द्वार कौन देखे ……….कालयवन तो मुग्ध हो गया था श्याम सुन्दर का वो दिव्य रूप देखकर……..ये कौन ? उसनें अपनें आप से पूछा ……..कृष्ण ! वो चिल्लाया ……….श्रीकृष्ण मुड़े और बस कालयवन की ओर देखकर मुस्कुरा दिए ।
तुम कृष्ण हो ? वो फिर चिल्लाकर पूछनें लगा ।
हाँ …….ये कहते हुये फिर मुस्कुराये ।
वो दौड़ा………श्रीकृष्ण भागे……अरे रुक ! खिलखिलाते हुये वो भाग रहे थे ………कालयवन समझ नही पा रहा था कि ये हो क्या रहा है ! ये भागता है ? पर मुझ से कहाँ भाग पायेगा ………….कालयवन नें अपनी चाल तेज कर दी थी …….तो श्रीकृष्ण भी कहाँ कम थे ……..वो और तेज भागे ………….
तात ! नदी , पर्वत नाना सरोवरों को पार करते हुये ………..वो कमल नयन दौड़ रहे हैं ……….वो कोमल चरण……..और पीछे दौड़ रहा है कालयवन…..ज्यादा दूर नही हैं ……..कालयवन को लगता है ….अब पकड़ा …..किन्तु वो पकड़ नही पाता…….श्रीकृष्ण उसकी पकड़ से दूर हो जाते हैं ।
तू छलिया है …..मैं तुझे छोड़ूँगा नही ……..मेरा नाम कालयवन है ……वो बोलता हुआ दौड़ रहा है ।
तो पकड़ो मुझे कालयवन !….पकड़ो……वो फिर अपनी विश्व विमोहिनी मुस्कुराहट छोड़ते हैं………कालयवन अब चिढ गया है ……….वो पूरी ताकत लगाता है दौड़नें में………किन्तु श्रीकृष्ण को वो नहीं पकड़ पाता ………………
क्रमशः…
शेष चरित्र कल –


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