श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! मुचुकुन्द – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 6 !!
भाग 1
“मुचुकुन्द” नाम था उस पुरुष का …जिसके नयनों से निकली तप्त लपटों से कालयवन जल कर भस्म हुआ था …..उसकी जटायें धरती को छु रही थीं …….द्वापर का कहाँ ये तो सत्ययुग का था …सूर्यवंशी राजा मान्धाता का पुत्र मुचुकुन्द ……..उद्धव विदुर जी से बोले ।
तात ! …….विशाल देह उसका …..बड़ी बड़ी आँखें………अपनें सामनें खड़े श्रीकृष्णचन्द्र जु के उसनें दर्शन किये…….वो एकटक देखता ही रहा था …………
कौन हैं आप ? क्या महादेव हैं ? नही नही आप देवराज इंद्र तो नही हो . …….तो क्या आप भगवान नारायण हो ! फिर मुचुकुन्द चरणों को देखता है …….अपनें हाथों से वज्रांकुश चिन्ह वाले अत्यन्त कोमल उन चरणों का स्पर्श करता रहा ।
तात ! आपनें प्रश्न किया कि ये कौन था ! और इस निर्जन गुफा में सो क्यों रहा है ? उद्धव बोले – यही प्रश्न अन्तर्यामी होनें के बाद भी परम कौतुकी श्रीकृष्णचन्द्र जु नें किया ………..कौन हो तुम ?
वो हंसा ………..बोला……..आप सब जानते हैं फिर भी प्रश्न करते हैं …………चलिये मैं आपको बता देता हूँ………ये कहकर उस पुरुष नें अपना सम्पूर्ण परिचय दिया …………जिसे श्रीकृष्णचन्द्र जु सुनकर मुस्कुरा दिए थे ।
हे नाथ !……………वो पुरुष बोलनें लगा था ।
सत्ययुग के राजा मान्धाता ……सूर्यवंशी युवनाश्व के पुत्र मान्धाता उनका मैं पुत्र मुचुकुन्द ……….उस पुरुष नें अपना परिचय दिया ।
मेरी युद्ध में रूचि थी …………विशेष रूचि थी …….शक्तिशाली था मैं …….मुझे पृथ्वी के राजा युद्ध में सहायता के लिए बुलाते थे ………सहयोग मुझ से चाहते थे तो मैं उन्हे देता था …………..किन्तु मुझे क्या पता था कि देवताओं को भी मेरी सहायता की आवश्यकता पड़ेगी ।
नाथ ! मुचुकुन्द बोला ………..मेरे पास एक दिन देवराज का एक दूत मेरी सभा में आया ………और मुझ से विनती करनें लगा ……….देवराज नें आपको आग्रहपूर्वक स्वर्ग में बुलवाया है …………उस दूत नें कहा ।
किन्तु क्यों ? मैने पूछा, तो उसका उत्तर था ………क्यों की स्वर्ग को लेकर हम देवों और असुरों में युद्ध छिड़ चुका है ………….हम लगातार पराजित होते जा रहे हैं ……………..इसलिये आपसे हम सहायता माँगते हैं …….आप हमारी सहायता कीजिये और हम देवों को इस संकट से बचाइये …………..मुझे अच्छा लगा …….मैने तुरन्त अपना कवच धारण किया …..नाना शस्त्रों को अपनें पास रखकर स्वर्ग के लिये चल पड़ा था ……..पर वहाँ देवों की स्थिति बहुत दयनीय हो गयी थी ……असुरों नें त्राहि त्राहि मचा रखा था ।
तात !
मुचुकुन्द युद्ध के लिये ही गए थे……उन्होंने अश्व माँगा देवराज से …..और उसी अश्व में सवार होकर…..वो टूट पड़े थे असुरों के ऊपर
पर असुर भी कहाँ कम थे ……… अतिशक्तिशाली बनकर आये थे ये …….पीछे से गुरु शुक्राचार्य इन सबको मरनें मारनें के लिए प्रेरित भी कर रहे थे ।………..एक दिन नही ……..युद्ध करते करते नाथ ! मुझे एक वर्ष पूरा लगा ………..मुचुकुन्द श्रीकृष्णचन्द्र जु को बता रहे हैं ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877