श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! रुक्मणी प्रेम – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 11”!!
भाग 2
पुत्र ! फिर तुमनें क्या सोचा है ! शिशुपाल ………..मेरी बहन का विवाह होगा शिशुपाल से …………और उसी के लिये तैयारीयाँ की जाए ………….
रुक्मणी के सामनें ये सब बातें हुयीं थीं………उनके जीवन सर्वस्व को भला बुरा कहा गया था ……..वो तो मूर्छित हो गयीं …….गिर गयीं ।
पर भाई रुक्मी को इससे कोई मतलब नही था………..वो अपनी बातें बताता गया ……..हाँ , स्वयम्वर की हमारे यहाँ परम्परा है …….वही होगा ….किन्तु मेरी बहन गले में माला डालेगी मात्र शिशुपाल के ……..
रुक्मी नें अपना निर्णय सुना दिया था ……..राजा भीष्मक जानते थे कि ये रुक्मी किसी की बात नही मानता……इसलिये उन्होंने कुछ भी नही कहा ….. अपनी पुत्री की दशा उनसे देखी नही जा रही थी …….. पर कुछ भी तो नही कर सकते थे वो राजा भीष्मक ।
हे भुवन सुन्दर ! मैं सिर्फ आपकी हूँ …………..आपको मैने अपना मान लिया है ………फिर आपको छोड़कर मैं किसी और के साथ ! नही नही ….ये सम्भव ही नही है …………मैं क्या करूँ आप ही बताइये ।
रुक्मणी लेटी हुयी हैं और दाड़िम की कलम लेकर नयनों से नीर बहाते हुए लिख रही हैं ।
मैं ऐसी वैसी नही हूँ …………मेरा भी अपना स्वाभिमान है ………मेरा विवाह आपसे ही होना चाहिये ……….अन्यथा ये तो ऐसी बात होगी कि ……….शेर का भाग शियार ले जाए ……….तो ये शेर का अपमान ही कहा जायेगा ……………
हे कमल नयन ! मैं सुन्दर हूँ ……….मैं बुद्धिमान हूँ…..इसलिये मैं आपकी ही बन सकती हूँ ………और बन क्या सकती हूँ मैं आपकी ही हो गयी हूँ ……….मुझे आकर ले जाओ ना !
देवर्षि नारद जी कहते थे कि …………….आप अन्तर्यामी हैं फिर मेरे अंतर की व्यथा को क्यों नही समझ रहे …………आप आइये ! और मुझे यहाँ से ले जाइये ………….ये वीरोचित है ……….आप वीर है आप आइये ।
क्या आप सच में आरहे हैं ! तो सावधान ! नाथ ! यहाँ बड़े बड़े वीर हैं महावीर हैं …………आपमें वीरता हो तभी आना …..अन्यथा मत आना !
रुक्मणी ये लिख कर आँखें बन्दकर के फिर लेट जाती हैं ………उनके नेत्रों में श्रीकृष्ण की मन मोहिनी सूरत नाच उठती हैं ……………वो मन ही मन मुस्कुरानें लगती हैं ……..आप आरहे हैं ना !
हे द्वारिकाधीश ! आइये ! आप आइये …………….
हृदय की धड़कनें बढ़ रही थीं रुक्मणी की ……………
अब इस पत्र का करोगी क्या रुक्मणी !
तभी रुक्मणी की भाभी आगयीं वहाँ पर …………भाभी ! भैया को आप समझाती क्यों नहीं ! रुक्मणी ! तुम्हारे भाई को आज तक कोई समझा सका है …………फिर मैं क्या करूँ भाभी ?
वो सब समझते हैं …..वो प्रेम स्वरूप हैं ……..उनसे ज्यादा प्रेम को समझनें वाला कोई नही है ….रुक्मणी ! ये पत्र भेज दो उन्हें ….और कहो वो आजाये और तुम्हे ले जाएँ ! भाभी की बातें सुनकर रुक्मणी अपनें भाभी के हृदय से लग गयी थी ।
तात ! स्वयंवर की तैयारियाँ जोर शोर से शुरू हो गयी थीं विदर्भ में …..शिशुपाल प्रसन्न था वो रुक्मणी का वर बनने के लिए आतुर था ।
पर “स्वयंवर कल ही है “। रुक्मी की पत्नी ने आकर रुक्मणी को बताया ………..ओह ! रुक्मणी बिलख उठीं थीं ।
उद्धव नें विदुर जी को बताया ।
शेष चरित्र कल –

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