श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! द्वारिकाधीश – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 10” !!
भाग 2
द्वारिकाधीश का महल तो इन्द्र के महल को भी लज्जित करनें वाला था …….दिव्य और अद्भुत ! सुवर्ण की तो पूरी द्वारिका ही थी …..किन्तु द्वारिकाधीश का महल नाना रत्नों, मणि माणिक्य मोती इनसे भित्ति की रचना की गयी थी …….अन्तःपुर द्वारिकाधीश का समुद्र के किनारे था ……….सुगन्ध प्रायोजित नही करना पड़ता ………अन्तःपुर में वायु देव ही सुगन्ध पहुँचा देते थे …….नाना प्रकार के पुष्प खिले थे …..सदैव उनमें भौरों का झुण्ड ही मंडराता रहता था ।
यही थी द्वारिका और इसमें आकर विराजे थे द्वारिकाधीश ।
हम कहाँ हैं ? हम कहाँ हैं ? रात्रि में ही मथुरा से गरूण जी उठा लाये थे समस्त मथुरावासियों को ……सुबह जब उठे तो उन्हें कुछ घबराहट हुयी…..ये घबराहट प्रजा में ही नही ….महाराज उग्रसेन को भी हुई थी ।
“हम समुद्र के किनारे हैं”……मथुरा वासी एक दूसरे को कहनें लगे थे ।
हम कैसे यहाँ हैं ? ये प्रश्न इनके मन में …..किन्तु उसी समय नभ से देवर्षि नारद जी उतरे थे और द्वारिकापुरी को देखते ही आल्हादित हो गए……समस्त नर नारियों नें प्रणाम किया देवर्षि को ……..और प्रश्न करते वो लोग कि उससे पहले ही देवर्षि ही बोले ……..आप लोग सुरक्षित हैं ……….अरे ! श्रीकृष्ण के कृपा की छाँया में जो हो वो असुरक्षित हो ही नही सकता …..ये द्वारावती है ……..और श्रीकृष्ण के समर्थ हाथों में है ……..आप लोग चिन्ता क्यों कर रहे हैं ….. कल्पवृक्ष, चिन्तामणि आदि इसी भूखण्ड में विराजमान कर दिया है श्रीकृष्ण नें ………देवर्षि बोले – स्वर्ग का पारिजात भी वो लेकर आएंगे …………इसलिये आप लोगों का चिन्तातुर होना श्रीकृष्ण के प्रति अविश्वास ही दर्शाता है……….आप लोगों के लिये सागर भी रत्नों का दान करता रहेगा…….बस एक चिन्ता है ! देवर्षि अपने स्वभाव के अनुरूप बोले …..क्या ? समस्त द्वारिकावासी पूछनें लगे ।
श्रीकृष्ण के परमधाम जानें के बाद ये धाम समुद्र में समा जायेगा …….
किन्तु आप लोगों को छोड़कर जायेंगे नही पहले श्रीकृष्ण ………..इसलिये निश्चिन्त होकर श्रीकृष्ण चरणों का निरन्तर चिन्तन करते रहिये ।
देवर्षि अब जानें लगे थे ……..किन्तु रुक गए फिर वो ……….
अब तो महारानी आनी चाहिये ! द्वारिका की महारानी …….आप लोग ये नही चाहते हैं क्या ?
सब बड़े प्रसन्न हुये ……देवर्षि ! अब आप ही कृपा कीजिये …….हम सब चाहते हैं विवाह हो हमारे श्रीकृष्णचन्द्र जु का ।
तो बस – अब होनें ही वाला है …………….आप लोग तैयारी कीजिये …..देवर्षि इतना बोलकर वीणा बजाते हुए नारायण नारायण गाते हुये चले गए थे ।
तात ! अब सबको प्रतीक्षा थी कि श्रीकृष्ण का विवाह महोत्सव हो ।
उद्धव बोले विदुर जी से ।
शेष चरित्र कल –


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