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September 14, 2025 3:35 am

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! सूर्यभक्त सत्राजित – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 17” !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! सूर्यभक्त सत्राजित – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 17” !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! सूर्यभक्त सत्राजित – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 17” !!

भाग 2

अरे ! ये तो सत्राजित है ……..श्रीकृष्ण तो सबको मान देना जानते हैं …….उठकर खड़े हो गए सत्राजित के स्वागत के लिये ।

सत्राजित का अहंकार और बढ़ गया ।

ये मणि कहाँ से पाईँ आपनें ? आसन में बैठानें के बाद श्रीकृष्ण पूछ रहे थे……..भगवान सूर्य नें प्रदान की है ।

अरे वाह ! सत्राजित ! तुम तो बड़े भक्त निकले सूर्य के …….और बताओ ! पूरी सभा तुम्हे सुनना चाह रही है , बताओ इस मणि की विशेषता ? श्रीकृष्ण आनन्द लेना खूब जानते हैं …….सहज होकर बोले ।

एक दिन में आठ भार सुवर्ण देती है ये मणि ! सत्राजित नें पहली विशेषता यही बताई ।

ये सुनते ही महाराज उग्रसेन भी चौंक गए थे ……एक दिन में आठ भार सुवर्ण ?

महाराज ! फिर तो ये मणि राजकोष में रहनी चाहिये ! श्रीकृष्ण नें महाराज उग्रसेन से कहा ।

सत्राजित कुछ बोलता उससे पहले ही श्रीकृष्ण नें कहा ……….दस्यु आदियों का भी भय बना रहेगा सत्राजित को ……….इसलिये मणि राजकोष में ही रहे ……..हाँ , इसका जितना सुवर्ण होगा वो हम नित्य सत्राजित को देते रहेंगे !

फिर श्रीकृष्ण नें सत्राजित की ओर देखकर पूछा …….कहो आपको कोई आपत्ति ?

सत्राजित तो उठकर खड़ा हो गया …….और भरी सभा में बोला ……तप मैने किया …..साधना मैने की ….उपासना में अपनें देह को मैने गलाया ….और फल रखोगे तुम लोग ! सत्राजित हंसा ………मैं मूर्ख नही हूँ द्वारकेश ! मैं आपको मणि नही दे सकता !

इतना कहकर सत्राजित बिना किसी की कुछ सुने……..उस सभा से निकल गया ।

श्रीकृष्ण भी कुछ नही बोले…..बस सभा की ओर देखकर मुस्कुराये थे ।


बड़ा चतुर् बनता है वो कृष्ण ! रात्रि को बडबड़ानें लगा था सत्राजित ।

पर हुआ क्या ? आप इतनें परेशान क्यों हो ? सत्राजित की पत्नी नें पूछा ।

पता है …….मुझ से मणि माँग रहा था कृष्ण ! चतुराई इतनी दिखा रहा था कि …..कहनें लगा सुवर्ण तुम रख लेना मणि हमारे राजकोष की शोभा बढ़ाएगी ………ऐसे कैसे दे दें मणि को !

ठीक किया ……..मणि हमारी हम मणि क्यों दें !

पत्नी नें भी पति की हाँ में हाँ मिलाई ।

पर भैया ! मणि कल मुझे देना …………….ये सत्राजित का छोटा भाई है ….इसका नाम है “प्रसेन”……..सत्राजित का कोई पुत्र है नही ……हाँ एक पुत्री है ………..तो इसनें अपनें छोटे भाई को ही अपना पुत्र मान लिया है…….बहुत स्नेह करता है ।

तू सोया नही अभी तक ? सत्राजित नें बड़े लाड़ से पूछा ।

भैया ! आप कल के लिये मुझे मणि दोगे ना ? मुझे अपनें मित्रों को दिखाना है……..पर …….सत्राजित कुछ बोलता कि प्रसेन नें कह दिया ……..मैं घड़ी भर के लिये ही ले जाऊँगा ……..फिर ले आऊँगा ।

अच्छा ठीक है …………ले जाना ……….अब सो जा !

सत्राजित नें अपनें भाई को मणि देंने की बात कहकर सुला दिया था ।

शेष चरित्र कल –

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Author: admin

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