श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! जामवन्त – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 20” !!
भाग 1
तात ! ये जामवन्त था जो स्यमन्तक मणि लेकर अपनी गुफा में गया ।
वही जामवन्त जो श्रीरघुनाथ जी की सेना में था …..
उद्धव ! जामवन्त बहुत पुरानें हैं ?
सतयुग के हैं ये तात ! ………इन्होनें हर युग देखा है …….और आज द्वापर में भी हैं उद्धव बोले ।
ये अपनी गुफा में ही रहते हैं ……….पृथ्वी के लोगों से मिलना जुलना इन्होनें बन्द ही कर दिया था ………छोटे नाटे द्वापर के लोगों में इनकी कोई रूचि नही है………..जामवन्त नें गुफा के भीतर अपनी दुनिया बसाई है……..उस दुनिया में इनकी पुत्री जाम्बवती साथ में हैं …..सेवक सेविकाएँ बहुत हैं……..तात ! अपनी पुत्री को ये अपनें आराध्य श्रीराम की कथा सुनाते हैं ……..युवा हो गयी है पुत्री …….चिन्ता इनको यही है कि श्रीराम को छोड़कर ये किसी को वर के लिए पसन्द ही नही करती …….जामवन्त नें देवों को भी दिखाया…….स्वर्ग में भी लेकर गए अपनी पुत्री ….किन्तु श्रीराम जिसके हृदय में बसे हों … वो किस से प्रभावित हो सकता है …………!
श्रीराम कथा सुनती हैं जाम्बवती ………..जामवन्त सुनाते हैं ………..पवन सुत भी पता नही आज कल कहाँ हैं …….मिलते नही हैं ….जामवन्त यही सोच रहे हैं ।
सन्ध्या होनें को आयी है……जाम्बवती नें श्रीरघुनाथ जी की आरती की …………..ये नित्य का नियम है इनका ………….
पर आज गुफा से बाहर आगये थे जाम्बवन्त …………..रात्रि हो गयी थी बाहर कोई देखनें वाला भी नही था ………..निर्जन वन था ……..मनुज तो इधर आता ही नही था ……हाँ पशु में सिंहादि आगये तो आगये ।
जामवन्त की दृष्टि गयी सामनें ……एक सिंह है ……….जो सामनें मणि रखकर उसे सूँघ रहा है ……..जाम्बवन्त नें पहले तो ध्यान दिया नही …..किन्तु जब देखा ….मणि तो सामान्य लग नही रही ……….ऐसी अद्भुत प्रकाशित मणि रघुकुल के कोष में ही देखी जा सकती थी वो भी त्रेता युग में ……….जाम्बवन्त सिंह के पास गए……..सिंह नें देखा तो वह जामवन्त के ऊपर झपटा ………ये बेचारा सिंह ……..जामवन्त के एक ही हाथों के वार से मृत हो गया था ।
जामवन्त मणि लेकर अपनी गुफा में आगये थे ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –


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