श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! मणि का कलंक – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 23” !!
भाग 1
हे नाथ ! मेरे पिता जी को मार दिया शतधन्वा नें !
हस्तिनापुर , अकेले रथ में बैठकर द्वारिका से सत्यभामा पहुँच गई थी ।
रूखे केश अश्रुओं से भरा उसका मुखमण्डल ……….वो चीत्कार कर उठी थी ।
…..ओह ! मेरे पितृचरण सत्राजित को मार दिया ….
विलख उठे थे श्रीकृष्ण भी ।
.उस शतधन्वा की इतनी हिम्मत !
क्रोध से काँप उठे संकर्षण ।
तात ! सत्यभामा से विवाह करके श्रीकृष्ण हस्तिनापुर चले आये थे क्यों की उनको सूचना मिली थी की लाक्षागृह में पाण्डव मारे जा चुके हैं इस सूचना के मिलते ही श्रीकृष्ण और बलराम द्वारिका से चल दिए थे ।
शतधन्वा ये वो व्यक्ति था द्वारिका में , जिसकी दृष्टि सत्राजित के मणि पर थी……वो चाहता था कि सत्राजित की पुत्री से मेरा विवाह हो ….और मणि मुझे मिले ……पर ये हो नही सका ….और सत्राजित नें अपनी पुत्री श्रीकृष्ण को दे दी………इस बात से वो अत्यन्त क्रोधित हो उठा …..उसका विवेक मर गया था…….उद्धव विदुर जी से बोले ……तात ! अक्रूर नें शतधन्वा को प्रेरित किया की मणि को सत्राजित से ले लो ……..छीन लो ….या चुरा लो . …………..
उद्धव ! अक्रूर जैसे ज्ञानी पुरुष नें ऐसा किया ? विदुर जी नें प्रश्न किया ।
अर्थ अनर्थ का कारण होता है……तात ! ये बात आप समझते हैं ।
आठ भार स्वर्ण देनें वाली मणि किसी की भी बुद्धि भ्र्ष्ट कर सकती है ……अक्रूर कोई अपवाद नही हैं …..उद्धव नें कहा ।
अवसर ठीक है क्यों की श्रीकृष्ण भी इस समय हस्तिनापुर गए हैं ……..तुम मणि चुरा लो …..अक्रूर नें उकसाया शतधन्वा को ।
शतधन्वा गया ……..पर मणि वो चुरा न सका ……..सत्राजित सावधान था ………उसनें मणि को सावधानी से रखा था ………ये देखकर शतधन्वा नें सत्राजित के ऊपर तलवार से वार किया …वार इतना तीव्र था कि सत्राजित की उसी समय मृत्यु हो गयी ।
शतधन्वा नें मणि ली और चला आया ………..उसनें सोचा नही था की सत्यभामा इतनी तेज निकलेगी कि रात ही रात में वो द्वारिका से रथ लेकर हस्तिनापुर के लिये चल देगी ………….वो चल दी और पहुँच गयी थी दो दिन लगे थे उसे ……..उद्धव नें कहा ।
मैं छोड़ूँगा नही शतधन्वा को ………….अपनी रानी सत्यभामा की बात सुनते ही रथ में बैठ कर श्रीकृष्ण और बलराम चल दिए थे ।
तात ! मुझ से सम्पर्क किया था श्रीकृष्ण नें …………और पूछा शतधन्वा कहाँ है ? मैने गुप्तचरों से सूचना जुटाकर श्रीकृष्ण से कहा ….इन दिनों मिथिला में है ……………..
श्रीकृष्ण बिना द्वारिका आये मिथिला के लिये वहीं से चल दिए थे ।
शतधन्वा जहाँ था रथ वहीं रुका …..श्रीकृष्ण को शतधन्वा नें देखा तो वो भागनें लगा ……..पर श्रीकृष्ण से वो कहाँ भाग पाता ……….एक मुष्टिक के प्रहार से ही श्रीकृष्ण नें शतधन्वा का वध कर दिया ……..किन्तु !
दादा ! मणि कहाँ है ? शतधन्वा के मृत देह को टटोला श्रीकृष्ण नें ……उन्हें मणि नही मिली……तो बलभद्र की ओर देखकर वो बोले थे ।
क्यों लीला कर रहे हो ! मुझ से लीला ?
बलराम व्यंग में बोले थे ।
चौंक गए श्रीकृष्ण …..बलराम की ओर देखा …………..
तुम्हारे पास ही है मणि ………..चलो अब द्वारिका !
बलराम की बात सुनकर श्रीकृष्ण दुःखी हो गए …..ओह ! मेरे बड़े भाई को आज मेरे ऊपर विश्वास नही है ।
सब समझते हैं श्रीकृष्ण …….अर्थ अनर्थ का कारण है ……….आज बलराम को कृष्ण के ऊपर विश्वास नही हो रहा ।
उद्धव ! पता करो अक्रूर कहाँ हैं ? मुझ से श्रीकृष्ण नें पूछा ।
मैने गुप्तचरों से पता लगवाया ……..और श्रीकृष्ण को कहा …..
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


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