श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! जब द्रोपदी हंसी – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 52 !!
भाग 2
तो आजाते ना मैदान में और करते ना दो दो हाथ मेरे मित्र शिशुपाल के साथ ।
दुर्योधन ! ज़्यादा मत बोल, नही तो…..भीम उठकर खड़ा हो गया था ।
युधिष्ठिर चिंतित हो उठे थे , कहीं यहीं युद्ध न छिड़ जाए ।
भाई दुर्योधन ! तुम मेरे पास आओ , मैं तुम्हें समझाता हूँ , महाराज युधिष्ठिर ने दुर्योधन को अपने पास बुलाया ।
दुर्योधन आगे जैसे ही जाने लगा , उसने अपना अधोवस्त्र उठाया , मय की मायावी कला जो जल में थल दिखा रही थी और थल में जल ।
वो सावधानी से आगे बढ़ा उसे लगा सामने जल है , पर जल नही था वहाँ , दुर्योधन इधर उधर देखकर शर्मिंदा हो उठा ।
पीछे से होकर जाऊँ ऐसा विचार करके दुर्योधन जैसे ही आगे बढ़ा, दीवार से टकरा गया , लगी उसके सिर में चोट , इधर उधर देखकर दुर्योधन ने फिर शर्मिंदगी अनुभव करी थी ।
अपनी हंसी को रोकते हुए श्रीकृष्ण ही बोले – सीधे आओ ना धृतराष्ट्रपुत्र !
वो रुका , उसने ध्यान से देखा सामने जल है या थल है , क्यों कि वो ये बात समझ रहा था कि ये सब मय की मायावी कला है इन्द्रप्रस्थ में ।
रंगों की रंगोली बनी हुई है , तो थल ही होगा , जल में रंगोली कहाँ ।
मन ही मन सोचते हुए दुर्योधन जैसे ही आगे बढ़ा , गिरा जल में , पूरा भींग गया , सभा स्तब्ध हो गयी थी ,
पर उसी समय एक हंसी गूंजी – द्रोपदी की ।
दुर्योधन भीगा हुआ है , सभा में इसके कपड़े सब भीग गए हैं , ये स्थिति देखकर द्रोपदी हंसी ।
श्रीकृष्ण हंसते , या पाण्डव भी हंसते तो दुर्योधन इतनी गम्भीरता से नही लेता किन्तु , द्रोपदी का हंसना ! ये मोहित था द्रोपदी पर , और द्रोपदी थी भी ऐसी की कोई भी मोहित हो जाए ।
राजसूय यज्ञ में स्नान करते हुए द्रोपदी को इसने देखा था , वो श्यामा द्रोपदी , ये पागल हो उठा था द्रोपदी से एकान्तिक वार्ता करने के लिए । जब श्रीकृष्ण होते हैं तब पाण्डवों से तो बात करती नही है ये द्रोपदी उसको तो बस कृष्ण ही कृष्ण सूझता है, फिर दुर्योधन से बात करती ?
दुर्योधन ने बड़ी कोशिशें की राजसूय यज्ञ में की द्रोपदी एक बार तो मुझ से बात करे किन्तु !
आज भीगा हुआ है दुर्योधन , सिर से पाँव तक भींगा है । और इस स्थिति पर हंस रही थी द्रोपदी , खिलखिला कर हंस रही थी । इतना भी होता तो कोई बात नही थी स्त्री स्वभाव हंसी आगयी ,
पर
- “अन्धे का पुत्र अन्धा ही होता है” दुर्योधन क्रोध से काँप उठा था द्रोपदी के मुख से ये सुनते ही ।
वो एक बार नही , तीन बार बोली थी और हंसते हुए और उसी की ओर इंगित करते हुये बोली थी – अन्धे का पुत्र अन्धा ही होता है ।
तात ! महाभारत की नींव यहीं से डली है , उद्धव विदुर जी को बोले थे ।
शेष चरित्र कल
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