श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! हस्तिनापुर में शकुनि – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 54 !!
भाग 2
पाण्डवों को हराने में तो रुचि है ना ? शकुनि ने पूछा ।
हाँ मामा ! उनको हराने , उनको बर्बाद करने में ही अब मेरी रुचि है और वो द्रौपदी तों , दाँते भींच ली थीं दुर्योधन ने ।
तो जुआ खेलने के लिए आमंत्रित करो उन्हें ! शकुनि बोला ।
इस बात पर कुछ बोला नही दुर्योधन , बस वो आगे और सुनना चाह रहा था कि उसका मामा क्या कहता है ।
पाण्डव और द्रौपदी आरहे हैं हस्तिनापुर , महाराज धृतराष्ट्र से मिलने , भेंट करने ।
बस , अवसर अच्छा है तुम उन्हें जुआ खेलने के लिए आमंत्रित कर लेना , और हाँ जुआ जिताएगा तुझे भांजे ये मैं कह रहा हूँ , फिर तो भांजे ! हंसा शकुनि ये कहते हुए ।
उनका इन्द्रप्रस्थ , उस इन्द्रप्रस्थ का वैभव – सम्पदा ,
अरे भांजे ! तुम क्या छोटी मोटी बातें कर रहे हो , स्वयं महाराज युधिष्ठिर अपने अनुजों सहित तुम्हारे दास हो जाएँगे , और द्रौपदी दासी । शकुनि ये कहते हुये हंसा , अट्टहास किया उसने ।
दुर्योधन ख़ुशी के मारे अपने मामा को गले लगाने लगा । मामा ! मैं उन पाण्डवों को दास और द्रौपदी को दासी ही बनाना चाहता हूँ , मेरी ये कामना आप पूरी कर दो बस , हो जाएगी पूरी तेरी ये इच्छा , बस, अपने मामा की हर बात मानते जाना । शकुनि बोला था ।
उद्धव के मुख से ये प्रसंग सुनकर विदुर जी हंसे ,
तात ! आप क्यों हंस रहे हैं अवश्य कोई कारण है और वैसे भी हस्तिनापुर को आप अच्छे से जानते हैं महामन्त्री रहे हैं वहाँ के आप । और महाराज धृतराष्ट्र के आप अनुज भी तो हैं ।
अब आप बताइए , क्यों हंसे आप, उद्धव ने विदुर जी से जानना चाहा तो विदुर जी ने कहा-उद्धव – मैं भी सोचता था , जब महामन्त्री पद पर मैं था तब, कि शकुनि कितना गलत है ये पापी है अधर्मी है ,
किन्तु उद्धव ! मुझे देवर्षी नारद जी ने एक घटना सुनाई , जब अर्जुन स्वर्ग में गया था और जब लौटने लगा तब उसे देवराज ने एक दर्पण दिया और कहा – इस दर्पण की विशेषता ये है कि इसमें देखने वाले का मुख नही दीखता , देखने वाले के प्रिय का मुख इसमें दीखता है । देवराज की बातें सुनकर अर्जुन बहुत प्रसन्न हुए और वो दर्पण लेकर आगए थे ।
विदुर जी कहते हैं – उद्धव ! अर्जुन को उस दर्पण का बड़ा आकर्षण था और वो उस दर्पण को अपने सखा श्रीकृष्ण को दिखाना चाहते थे वो जानना चाहते थे की श्रीकृष्ण का प्रिय कौन है ।
फिर देखा दर्पण में श्रीकृष्ण ने ? उद्धव ने उत्सुकता के साथ पूछा ।
हाँ , देखा , और जब श्रीकृष्ण ने दर्पण देखा तो अर्जुन चौंक गये , कोई सोच भी नही सकता था कि ,
कौन दीखा तात ! उद्धव को बहुत उत्सुकता है ।
“शकुनि” विदुर जी बोले । शकुनि ? उद्धव हंसे ।
हाँ , और आश्चर्य भी क्यों ! उद्धव ! क्या शकुनि ने ही महाभारत का युद्ध नही करवाया ?
और महाभारत युद्ध से ही तो पृथ्वी का भार कम हुआ , विदुर जी बोले – उद्धव ! पृथ्वी के भार को ही तो कम करने के लिए श्रीकृष्ण अवतार हुआ था । फिर शकुनि अगर प्रिय हो श्रीकृष्ण का तो इसमें आश्चर्य क्या ? विदुर जी इतना बोले और हंसे ।
उद्धव ने कहा तात ! आप सच कह रहे हैं , ये सब तो उन लीला पुरुषोत्तम की लीला ही है ।
मैं इसलिय तो उनकी लीला सुनने के लिय तुम्हारे पता बैठा हूँ , सुनाओ उद्धव ! आगे क्या हुआ ?
आप इन लीलाओं को जानते हैं फिर भी सुन रहे हैं तात ! ये श्रीकृष्ण चरणों में प्रीत के ही लक्षण हैं , विदुर जी को इतना कहकर उद्धव आगे बोले – शकुनि ने अपने पासे बिछाने शुरू कर दिए थे की कैसे कैसे पाण्डवों को इस में फँसाना है , अब दुर्योधन प्रतीक्षा कर रहा है कि कब आयेंगे पाण्डव हस्तिनापुर में ।
शेष चरित्र कल
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