श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “उद्धव गीता- मोहान्ध जीव की दो कहानियाँ” – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 86 !!
भाग 1
हे भगवन् ! जीव जब इस संसार में आता है …..तब उसे दुःख ही दुःख मिलता है, ऐसा क्यो ?
उद्धव ने प्रश्न किया ।
हे प्रिय उद्धव ! संसार दुःख नही देता …जीव ही अपने आपको मोह में डाल कर सुख दुःख का अनुभव करता रहता है …..भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुए बोले ।
उद्धव ! आश्चर्य , अपने इस देह के प्रति मनुष्य सावधान रहता है ….कोई रोग न हो जाए …इस शरीर को कोई व्याधि न लग जाए …किन्तु मन के प्रति वो तनिक भी सावधान नही दिखाई देता …….भगवान कुछ देर के लिए मौन हो गए ….फिर उन्होंने सहज भाव से कहा – उद्धव, स्मरण रहे …..ये शरीर जो , हाथ है , इसके पैर हैं , आँख नाक वाले इस शरीर को तो हम शरीर मानते हैं और इसको लेकर जागरुक भी हैं ….किन्तु , क्या मन भी हमारा शरीर नही है ? ये स्थूल शरीर है …तो मन हमारा सूक्ष्म शरीर है ……क्या इसकी रुग्णता समझ में आती है ? इस सूक्ष्म देह को स्वस्थ रखना आवश्यक है …..क्यो की यही सूक्ष्म देह हमारे नाना प्रकार के जन्म मृत्यु का कारण बन जाता है ।
नाथ ! आपको क्या लगता है , मन कैसे स्वस्थ रहे …..इसका उपाय क्या है भगवन् !
हे उद्धव ! जैसे शारीरिक रोगों में कफ, पित्त , वात ही मुख्य है ….इन कफ पित्त वात , सम में रहे …इनमे से एक भी अगर बढ़ा तो रोग होना स्वाभाविक है ….ऐसे ही मन रूपी सूक्ष्म देह में भी काम, क्रोध और लोभ है …..भगवान बोले – उद्धव ! स्मरण रहे …..काम क्रोध लोभ ये मुख्य हैं ….किन्तु इन तीनों को प्रकट करने वाला है – मोह । मोह समस्त मानसिक रोगों का मूल है ।
भगवान श्रीकृष्ण उद्धव को इतना ही बोले ….फिर दो अद्भुत कहानियाँ सुनानी शुरू कर दी थीं ।
वो बड़ी सुन्दरी थी , पिंगला नाम था उसका ….वेश्या थी…..नित नए नए पुरुषों की आस लगाए बैठी रहती थी और दिन भर अपने देह को ही सजाती संवारती ।
कई दिनों से उसके पास कोई पुरुष आया नही था …..किन्तु आज कोई द्वार पर आकर खड़ा हुआ था …..पिंगला वेश्या की दासी ने दौड़कर पिंगला को सूचना दी ।
भगवान श्रीकृष्ण हंसे …..वो द्वार पर कोई और नही था दत्त भगवान थे ….दत्तात्रेय भगवान ।
भिक्षा लेने के लिए पिंगला के द्वार पर खड़े हो गए थे …..द्वार भी खटखटाया था ….पर किसी ने कह दिया भगवन ! ये तो वेश्यालय है …..तब भगवान दत्त दूर जाकर खड़े हो गए थे और अपनी दिव्य दृष्टि से उस पिंगला को देखने लगे ।
महात्मा की दृष्टि में कोई पुण्यात्मा और पापात्मा नही होता ….वो तो सबका भला और कल्याण ही चाहते हैं । भगवान श्रीकृष्ण ने कहा ।
उधर पिंगला सज धज कर तैयार हुई ….आइने के सामने बैठी अपने आपको निहारकर मुग्ध होती जा रही थी ……कोई राजपुरुष है , जो आज मेरे पास आएगा …मैं उसे प्रसन्न करूँगी …मुझे वो देखेगा तो बस मेरा ही होकर रह जाएगा । पिंगला यही सब सोचते हुए अपने देह को सजाने में फिर लग गयी ।
अरी देख तो …उस पुरुष को भीतर तो ले आ …….पिंगला ने अपनी दासी से कहा ।
दासी द्वार पर आयी ….द्वार उसने खोला भी किन्तु अब तो कोई नही है वहाँ ।
मालकिन ! कोई नही है द्वार पर …..दासी ने चिल्लाकर कहा ।
कोई नही है ? वो दौड़ी दौड़ी बाहर गयी ….इधर उधर देखा पर …….
मालकिन ! लगता है आपके लिए वो पुरुष गजरा , हार लेने गया होगा ।
पुरुष के मोह में अंधी हो चुकी थी ये पिंगला , हाँ , आता ही होगा ….चल जब वो आजाये तो उसे ले आना भीतर , तब तक मैं और सज लेती हूँ ।
पिंगला फिर सजने लगी …..अपने देह में इत्र फुलेल लगाने लगी ।
उद्धव ! प्रातः की बेला थी, जब दत्त भगवान भिक्षा माँगने आए थे …..किन्तु अब तो दोपहर भी हो गयी और शाम , फिर रात भी …..अब आएगा कोई पुरुष , जो मेरे इस शरीर को देखेगा और धन देकर जाएगा …..सोचते सोचते उसे झपकी आगयी…..तभी द्वार किसी ने खटखटाया …..दासी शायद सो चुकी थी ……नींद में ही दौड़ते हुये जैसे ही गयी पिंगला, द्वार खोला ….तो सामने खड़े हैं …एक दिव्य महात्मा ……वो देखती रही उन्हें …….वो हंसे …..उसके बाल बिखरे हुए थे ….नींद के कारण उसके आँखों का अंजन फैल गया था ….मुख से लार निकल रही थी …….पुरुष मोह के कारण ऐसी दशा …..छी । बस निकल गए इतना बोल कर ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल
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