!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 25 !!
कृष्ण को भी पावन किया श्रीराधा नें …
भाग 3
वो दौड़ा ………..पर कृष्ण नें उसकी सींगें छोड़ी नहीं ……….हाँ …….बस थोडी ही देर में ………..उस बैल के सीगों को उखाड़ कर …और धरती में गिरा दिया……और उसके ऊपर चढ़ गए कृष्ण …………
रक्त से लथपथ हो गया था वो ………….वो धरती में गिर तो गया था ….पर अभी भी ……….वो उठनें की कोशिश में था …………कृष्ण नें एक हाथ मारा………वो कृष्ण का हाथ उसके पेट में घुस गया …….और जब जोर से निकाला ………..तब रक्त के फुब्बारे से फूट पड़े थे ।
“मार दिया बैल को” …………अरे ! बैल को मार दिया !
पर बैल तो धर्म रूप होता है ……ऐसे बैल को नही मारना चाहिए था ।
हजार तरह की बातें उठनें लगीं उसी समय नन्दगाँव में ।
कृष्ण चुपचाप अपनें महल में आगये थे ।
कन्हैया ! सब कह रहे हैं तूनें गलत किया ………..
मनसुख बोला ।
नही …तू भगा देता उस बैल को ….पर मार ही देना ये तो ठीक नही था ।
मधुमंगल नें भी अपनी बात कह डाली ।
बैल कुछ भी हो हमारे शास्त्रों में धर्म रूप कहा जाता है ……..
इसलिये सब कह रहे हैं………तुझे ब्रह्महत्या लगी है ।
क्या ! कृष्ण चौंके ………..कौन कह रहा है ये सब ?
पूरे नन्दगाँव का समाज ही कह रहा है ……….सब सखाओं नें कहा ।
कृष्ण शान्त रहे ………कुछ नही बोले ।
जब दूसरे दिन गौचारण करके महल में आये …. ……तब कई लोग बैठे थे बाहर………ये सब नन्दगाँव के पञ्च थे ।
देखो जी ! आप बृजपति हैं ………हम मानते हैं …..पर हमारा भी तो धर्म है …………ऐसे धर्म पर हम कैसे प्रहार होनें दें ……….बैल हमारा पूज्य है …….उसे तुम्हारे पुत्र नें मार दिया । गलत किया ………ऐसा नही करना चाहिये था ……..अरे ! बैल, गाय ये तो हमारे धर्म के प्राण हैं ।
सब पञ्च बोल रहे थे ।
इसका समाधान ? कृष्ण आगे आये …….
तू मत बोल कन्हैया ! भीतर आ ……..बड़े लोग हैं ये लोग ……..तेरे बाबा हैं ना ….बात कर लेंगें…..मैया यशोदा ने भीतर खींचना चाहा कृष्ण को ।
नही ……..मैनें गलती की है …..तो अब मैं भी सुनूँ कि इसका प्रायश्चित्त क्या है ?
“तीर्थ स्नान”………क्यों की ये ब्रह्म हत्या है ………इसलिये समस्त तीर्थों की नदियों में स्नान …………पंचों नें अपना निर्णय सुना दिया ।
और अगर ………….सारे तीर्थ यहीं बुला लूँ तो ?
कृष्ण सहज बोले थे ।
हाँ ……ठीक है ……पर कैसे बुलाओगे यहाँ ……हँसे पञ्च ।
“एक कुण्ड में”…………..कृष्ण नें उत्तर दिया ।
पर वो कुण्ड नया होना चाहिए…………और हम सबके सामनें वो प्रकट हो ……….उसमें जल हमारे सामनें आये ……तब हम मानेंगें कि ये तीर्थ तुमनें प्रकट किया है …….
हाँ …ठीक है ……………..
चलो ………चलो मेरे साथ …………कृष्ण नें तुरन्त कहा ।
पर अभी ? पञ्च घबड़ाये ………..हाँ …अभी ? क्यों ?
नही ……..चलो…। …..सब चल दिए …………गोवर्धन पर्वत के पास गए कृष्ण …………और एक स्थान पर …………..
आँखें बन्दकरके बैठ गए …….
गंगा, सरस्वती नर्मदा कावेरी ……..बारि बारि से नाम लेनें लगे …..नदियों का …….तीर्थों का ………।
और देखते ही देखते ……जल आगया ………धार फूट पड़ी ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल …
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