!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 33 !!
“विपरीत रति” – प्रेम साधना की एक विधा
भाग 1
जिनके लिये सांसारिक महत्वाकांक्षा सर्वोच्च है …..वो इसको न पढ़ें ।
जिनके लिये नाम, पद प्रतिष्ठा पाना ही जीवन का लक्ष है ….वो इसको न पढ़ें ।
जो नैतिकता के मापदण्ड, पाश्चात्य की विचार धारा से तैयार करते हैं …और “प्रेम श्रृंगार” जैसे दिव्य शब्द मात्र भोग के लिये ही है ऐसा समझते हैं ……..वो तो कृपा करें ……इसे न ही पढ़ें ।
नित्य निकुञ्ज में आज सुबह हुयी ………….वैसे रोज ही सुबह होती है …..पर आज की सुबह कुछ अलग थी ………..
सखियाँ कुञ्ज रन्ध्र से देख रही हैं ……….श्याम सुन्दर और लाडिली बड़ी गहरी नींद में सो रहे हैं ……….उन दोनों की मालायें एक दूसरे में उलझी हुयी हैं ………..श्याम सुन्दर के कपोल में श्रीजी के अधरों की लाली लगी हुयी है ………और गौर अंग में श्याम सुन्दर के नयनों का काजल लगा हुआ है ………लटें बिखरीं हुयी हैं प्यारी की ……….और वो सुन्दर काले केश श्याम सुन्दर के वक्ष में फैले हुए हैं ।
नही नही सखियों ! मत उठाओं उन्हें ……..ललिता सखी कहती हैं ।
सोनें दो ……..रात भर सोये नही हैं ये युगलवर …………देखो ना ! नींद कितनी गहरी है ……..बहुत सुखपूर्वक सो रहे हैं सोनें दो ।
अच्छा ! ललिता जी ! हमें ये तो बताइये कि रात भर क्या हुआ ?
सखी हँसी ……..सब सखियाँ हँसीं ……..धीरे ! धीरे ! हँसो !
ललिता सखी नें सब को चुप कराया…. हमारी हँसी सुनकर कहीं ये जाग गए तब अपराध होगा ………उनके किसी भी कार्य में हमें विघ्न नही डालना है ……….हमें तो उनकी हर इच्छा में अपनी इच्छा को मिलाते हुये, और मिटाते हुए चलना है ।
चलो ! उस प्रेम सरोवर में बैठती हैं हम सब वहाँ से ये युगलवर के दर्शन भी होते रहेंगें ………..और हमारा ध्यान भी चलता रहेगा ।
ध्यान ? दूसरी सखी नें पूछा ।
और क्या ! हम प्रेम रस के उपासीयों का ध्यान यही तो है ………कि युगलवर नें क्या किया ! …..और क्या कर रहे हैं ! ……..क्या करेंगें ?
हम कोई नाक और कान दवाकर ध्यान में बैठनें वाले तो हैं नहीं !
ललिता सखी की बातें सुनकर सारी सखियाँ हँस पडीं ………..उस सुन्दर से सरोवर में ललिता बैठ गयीं …..सखियों नें उन्हें घेर लिया …….नही नही …सखियों नें ही नही घेरा ………..मोर , पपीहा, कोयल तोता ये सब भी घेर कर बैठ गए हैं ………………
अरे ! देखो ! इस सरोवर में हँस और हंसिनी का जोड़ा विहार कर रहा था ……..और एक ही जोड़ा थोड़े ही ……….अनेक जोड़े थे ….वो सब भी आगये …….कमल के अनेक फूल खिले हैं ……मतवाले भौरें सब कमल पर ही थे …….पर ललिता सखी की बातें सुननें के लिये उन भौरों नें भी कमल को छोड़ दिया ……..और वो भी आगये ।
ये ललिता सखी कौन हैं ?
पता नही क्या हुआ एकाएक वज्रनाभ को
……..महर्षि को बिच में ही टोक दिया ।
पूर्ण रूप से अंतर्मुखी हो ….प्रेम रस में डूब कर इस दिव्य “प्रेमलीला” को बतानें जा रहे थे महर्षि शाण्डिल्य……पर टोक दिया वज्रनाभ नें ।
कुछ अच्छा नही लगा वज्रनाभ का इस तरह टोकना ………
पर प्रश्न का उत्तर तो देना ही है……और देना भी चाहिए ।
….त्रिपुर सुन्दरी का तन्त्र मन्त्रों में सर्वोच्च स्थान हैं………यही त्रिपुर सुन्दरी हैं !
भगवान शिव के हृदय में विराजती हैं……..समस्त कामनाओं की पूर्ति करनें वाली …….और समस्त तन्त्र मन्त्र की अधिष्ठात्री हैं …….देवों की भी पूज्या …..देवों की भी इष्ट ……..और समस्त साधनाओं की देवी हैं ये त्रिपुर सुन्दरी ………..महर्षि शाण्डिल्य नें समझाया ।
हे वज्रनाभ ! समझो बात को ……..यही त्रिपुर सुन्दरी ही ललिताम्बा के नाम से प्रसिद्ध हैं……..इनके अनेक नाम हैं……..समस्त देवि देवताओं की ये सदा वन्दनीया भी हैं ।
इतना ही नही …………..मन्त्र विज्ञान और शाक्त दर्शनों में तो ये भी आया है कि ..ब्रह्मा विष्णु और रूद्र की भी वरदायिनी हैं ये त्रिपुरा भगवती …….या इनको ललिताम्बा भी कहा गया ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –


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