!! परम वियोगिनी – श्रीविष्णुप्रिया !!
( द्वादशोध्याय:)
साधकों ! बंगाल में विवाह से पूर्व एक विधि होती है …जिसे “अधिवास”बोलते हैं …इसमें आमन्त्रित लोग माला चन्दन आदि से होने वाले वर या वधू को आशीष प्रदान करते हैं …फिर भोज आदि बड़े उत्साह-उत्सव के साथ मनाया जाता है ।
गतांक से आगे –
पूरे नवद्वीप को आज सजाया गया है …”निमाई के विवाह” नाम से ही नवद्वीप के लोगों में उत्साह और उमंग है ।
शचि देवि के घर में केले के खम्भे रोपे गए हैं …बंदनवार लगाया गया है …रंगीन चंदोवा से आँगन सजाया है ….रंग बिरंगे पताका स्थान स्थान पर लगाये गये हैं …आज सुबह से ही सुपारी नवद्वीप के घर घर में बाँटी गयी है …ये निमन्त्रण है कि आज “निमाई का अधिवास है” आशीष देने के लिए और भोज पाने के लिए सबको आना है….निमाई के मित्र बुद्धिवंत कायस्थ ने पूरा साथ दिया है ….शचिदेवि तो कह रही थीं …कि पूरे नवद्वीप को निमन्त्रण नही दिया जा सकता ..क्यों की सबको भोज देना होगा और माला चन्दन सुपारी ये स्वागत भी करना होगा । इतना धन उनके पास नही है …पर बुद्धिवंत निमाई के परम मित्र थे उनका कहना था कि मेरा धन किस काम का है …शचि देवि आगे कुछ नही बोलीं । तैयारियों में निमाई के शिष्य भी जुटे हुए हैं ….गुलाब जल का छिड़काव किया गया है निमाई के आँगन में …पुष्पों की सज्जा के लिए बड़े बड़े कलाकार बुलाये हैं …कलाकार तो गायन के लिए भी बुलाये हैं ….दिव्य संगीत चल रहा है ….महिलायें सुन्दर सुन्दर लाल साड़ी पहनकर हुलु मंगल ध्वनि करते हुए शचि देवि के घर में प्रवेश करती हैं ।
ब्राह्मण लोग स्वस्तिवाचन कर रहे हैं ….मंगल गीत महिलायें गा रही हैं …..निमाई को बैठाकर हल्दी तेल माथे में सिन्दूर और धान का लावा पान ये सब चढ़ा रही हैं …शचि देवि के आनन्द का आज कोई ठिकाना नही है …वो अपने में ही नही हैं । शुभ शंख ध्वनि होने लगी ….महिलायें जयजयकार करने लगीं । निमाई ने उठकर अब ब्राह्मणों का पूजन किया …गन्ध चन्दन पुष्प माला कपूर पान संदेश-मिठाई आदि से ब्राह्मणों का आदर किया ।
शचि देवि के आँगन को अभी भी लोग सजा ही रहे हैं ….नवद्वीप के हर व्यक्ति को लग रहा है “अपने निमाई” की शादी है …तो स्वयं भी काम कर रहे हैं । “ये चंदोवा मध्य में लगाओ”….तो दो नवद्वीप के प्रतिष्ठित व्यक्ति उठकर चंदोवा को स्वयं मध्य में लगाते हैं ….कोई महिला कह रही है अरी शचि देवि ! देखो नवद्वीप के महाजन स्वयं काम कर रहे हैं । शचि देवि भगवान नारायण का स्मरण करती हैं …..वो बारम्बार भावुक हो रही हैं ।
इस तरह अपराह्न का समय हुआ …..
मध्य में …चंदोवा के नीचे निमाई को बैठाया गया ….नवद्वीप के लोग अब शचि के यहाँ आने लगे …..निमाई बैठे हैं ….शान्त भाव से बैठे हैं उनके आगे पीछे उनके मित्र शिष्य हैं …बड़े ही सुन्दर लग रहे हैं ….नवद्वीप के लोगों को पंक्तिबद्ध आने के लिए कहा ….सब लोग पंक्ति में ही आगे बढ़ रहे हैं …..बहुत लोग हैं …माता शचि देवि भीड़ देखती हैं और डर भी जाती हैं …बुद्धिवंत से पूछती हैं इतने लोग खायेंगे क्या ? तब बुद्धिवंत कहते …माँ ! आने दो ..निमाई के अधिवास में पूरा बंग प्रदेश भी आजाएगा तो भी कमी नही पड़ेगी …अन्नपूर्णा साक्षात् आगयीं हैं ।
लोग निमाई को देखते हैं ….मुग्ध हो जाते हैं ….आज निमाई अलग ही लग रहे हैं ….इनकी रूप छटा विश्व विमोहित है । लोग पुष्प लावा आदि निमाई के ऊपर छोड़कर आशीष देते हैं ….उस समय मंगल वाद्य आदि बज रहे हैं ….महिलाओं का गीत अत्यन्त कर्णप्रिय है ।
अब भोज होगा …दाल भात …संदेश-मिष्ठान्न आदि अनेक प्रकार के बने हैं …साग भाजी के प्रकार कितने हैं कोई बता नही सकता …नवद्वीप के लोग भोज पा रहे हैं और मन ही मन सोच रहे हैं …विवाह से पूर्व ये भोज है तो विवाह के दिन कैसा होगा । भोज के बाद पान सुपारी पुष्पमाला और दक्षिणा दिये ….पहले व्यवस्था थी ब्राह्मणों को ही …पर निमाई ने हंसते हुए कहा …सबको दक्षिणा पान पुष्प माला दो । बुद्धिवंत अब प्रसन्न थे …वो बोले निमाई ! अब अच्छा लग रहा है ….अब लग रहा है मित्र ने मेरी सेवा स्वीकार की । निमाई ने उसे अपने हृदय से लगा लिया ।
चार ब्राह्मण थे वो दूसरी बार भोज में आकर बैठ गये थे …लोभ था दक्षिणा पान सुपारी का …इनको पकड़ लिया था निमाई के मित्रों ने और निमाई के पास ले आये थे …निमाई इनको देख कर बहुत प्रसन्न हुए और बोले …ये दूसरी बार आए हैं …तो तीसरी बार आने का कष्ट न दो इनको तीन बार की दक्षिणा पान सुपारी माला तीन तीन बार की देकर प्रसन्नतापूर्वक विदा करो ….निमाई की बात पर आज सब प्रसन्न थे ….निमाई स्वयं इतने प्रसन्न जिसकी कोई सीमा नही थी । एक ब्राह्मण दो रसोगुल्ला खाते थे और चार छुपाकर थैला में रख लेते थे …निमाई ने देखा तो हंसते हुए उनके पास गये …और थैला ले लिया और अपने मित्रों से कहा इस थैले को रसोगुल्ला से भर दो ….फिर हंसते हुये निमाई बोले ..अब आपको छुपाकर रखने की आवश्यकता नही है ….प्रेम से पाइये …और थैला भर दिया है घर ले भी जाइये ।
निमाई की उदारता पर सब गदगद थे …पर डर भी था कि कहीं भोज सामग्री खतम न हो जाये और नये लोगों को मिले नही …पर चमत्कार हुआ कि नवद्वीप के लोगों ने पाया ही नही घर में लेकर भी गये । कहते हैं ….माला फूल सुपारी नवद्वीप में कई महीनों तक चारों तरफ़ बिखरे हुए लोगों को मिलते थे ….ये अधिवास तो अद्भुत और अद्वितीय था ….निमाई को देखकर सब लोग कहते …भगवान श्रीराम साक्षात् विराजे हैं …जनकपुर धाम में …दूल्हा भेष में ….ऐसा हम को प्रतीत होता है ।
सनातन मिश्र जी अपने घर से चले ब्राह्मणों की टोली लेकर ….शचि देवि के घर पहुँचकर उन्होंने अपने होने वाले जामाता का पूजन किया …..फिर मंगल गान के साथ लौटकर आगये ।
सनातन मिश्र जी के घर की सजावट तो और दिव्य थी ….समस्त अड़ोस पड़ोस की महिलायें इकट्ठी हुई थीं …ब्राह्मण समाज आया था …शंख ध्वनि और मंगल गीत का गायन चल ही रहा था …लाल लाल साड़ी में सुहागिन कितनी सुन्दर लग रही थीं ये अवर्णनीय है । महामाया देवि स्वयं प्रसन्नता से फूल रही थीं …..इस आनन्दोत्सव में अब विष्णुप्रिया को उनकी सखियाँ लेकर आईं….साथ में “विधुमुखी”मुख्य थीं । नाना प्रकार के रत्न आभूषण से सुसज्जित विष्णुप्रिया साक्षात् भगवती लक्ष्मी ही प्रतीत हो रही थीं । शंख , घण्टा , करताल , मृदंग आदि की ध्वनि से दिशायें और प्रफुल्लित थीं । सुन्दर ललनाओं द्वारा हुलु मंगल ध्वनि वातावरण को और मंगलमय बना रही थी । विष्णुप्रिया को मध्य में विराजने के लिए महिलाओं ने कहा ….संकोच से सनी विष्णुप्रिया नतमुख संकोच से बैठ गयीं । उस समय विष्णुप्रिया का रूप सौन्दर्य मुखरित हो उठा था …अब सुहागिन महिलाओं ने पुष्प , दूर्वा , लावा के द्वारा आशीष देना प्रारम्भ किया ….ये समय अद्भुत था …जो भी उस समय वहाँ उपस्थित था वो अपने भाग्य को सराह रहा था …अरी बहन ! जनकपुर में सीता जी का विवाह हमने नही देखा …कथाओं में सुना अवश्य है …पर अपनी विष्णुप्रिया को देखकर लगता है …सीता जी भी ऐसी ही होंगी …ये सारी विवाह की विधियाँ ऐसे ही आनंदोल्लास से मनाई गयीं होंगी । सब आनंदित हैं …सब आनन्द के कारण मत्त से हो गये हैं ।
“ब्राह्मणेत वेद पढ़े , बाजे शुभ शंख ,
आनन्दे दुन्दुभी बाजे , बाजये मृदंग “।
जय जय जय जय । सब लोग यही बोल रहे हैं ।
शेष कल –
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