!! परम वियोगिनी – श्रीविष्णुप्रिया !!
( त्रयोदशोध्याय: )
गतांक से आगे –
प्रातः शचि माता उठीं …आज कुछ विलम्ब हो गया इन्हें …स्वाभाविक था घर में उत्सव हो तो रात्रि शयन में विलम्ब हो ही जाता है ….सब कुछ समेटते समेटते इन्हें अर्धरात्रि हो गयी थी ..पर नींद भी तो जल्दी नही आती ऐसे अवसरों में । नींद रूठ जाती है या तो अत्यन्त सुख का अवसर हो या दुःख का ….शचि माँ को झपकी आई ही थी ब्रह्ममुहूर्त में ….उसके कुछ ही देर में ये उठ गयीं ….स्नान किया ….स्नान के बाद जब तुलसी में जल देने लगीं तब इन्हें कुछ चमकते पत्थर दिखाई दिये ….धरती में पड़े ये चमकदार पत्थर मणि माणिक्य थे ….हे भगवान ! ये किसके हैं ? पर शचिदेवि भी समझ गयीं कि ये नवद्वीप वासियों के तो नही हीं हैं । इन्होंने उसे लेकर अपने पास रख लिया …बुद्धिवंत कायस्थ से ज़्यादा धन लेना उचित भी तो नही है ….वो खर्च कर रहा है अलग बात है …पर माता की भी तो इच्छा होती है कि अपने हाथों अपने पुत्र के विवाह में लुटाऊँ !
शचिदेवि उन बहुमूल्य मणि आदि को अपने संदूक में रख लेती हैं ….किसी का होगा तो वो पूछ लेगा …नही तो भगवान ने मेरे निमाई के विवाह में मुझे दिये हैं ….ऐसा विचार करती हुई शचि देवि पूजा आदि के कृत्य में लग गयीं थीं ।
निमाई ! उठ पुत्र ….
आज हरिद्रा-संस्कार हैं …चल शीघ्र उठ जा मेरे लाल , गंगा स्नान करके आजा ।
निमाई उठे अंगड़ाई ली ….बिखरे हुए अपने केशों को पीछे किया ….फिर अपनी माता शचि के चरण छूए …..उस समय इनकी जो छवि थी वो अनुपम अद्भुत लग रही थी । निमाई के मित्र घर में आगये थे …निमाई उन सबको लेकर गंगा घाट पहुँचे …खूब जी भर कर गंगा स्नान किया ….
फिर अपना नित्य कर्म सन्ध्या आदि …..निमाई ने फिर बड़े ही प्रेम से भगवान श्रीविष्णु की आराधना की …..निमाई अब अपने घर चले आये ….यहाँ ब्राह्मण लोग आ चुके थे निमाई हाथों नंदीमुख श्राद्ध आदि सब कर्मकाण्ड को विस्तार दिया ।
शचि देवि बहुत परेशान हैं …उन्हें समझ में नही आरहा कि आज भी भोज है …पूरा नवद्वीप आज भी भोजन करने आयेगा …उन सबकी व्यवस्था कैसे होगी ! निमाई के परम मित्र बुद्धिवंत कायस्थ आगये थे उन्होंने शचि माँ को कहा …माँ ! हम सब लोग हैं ना व्यवस्था के लिये सब हो जायेगा …कोई चिन्ता की बात नही, आप तो बस अपने निमाई के विवाह विधि पर ध्यान दीजिये ।
सुन ना , बुद्धिवंत ! इधर आ ….अपने कक्ष में माता बुद्धिवंत को बुलाकर ले गयीं और संदूक से मणि माणिक्य निकाल कर बोलीं ….ये तेरा है ? बुद्धिवंत को मणि की पहचान है …उसकी आँखें चुंधिया गयीं ….ये मणि ? ये मणि नवद्वीप क्या पूरे बंग प्रदेश की भी नही है । बेटा ! ये मणि मुझे आज सुबह तुलसी बिरवा के पास मिली ….सच बता दिया शचि माता ने …बुद्धि वंत बोला ….माता ! पण्डित जी हमारे घर कथा सुनाते हैं तब वो कहते हैं …”जब मंगल समय आया तब पृथ्वी ने रत्न मणि आदि देना प्रारम्भ कर दिया” …मैंने निमाई को अपना मित्र ही नही माना है …ये तो मेरा भगवान है …मैं इसका भक्त हूँ ….ये साधारण नही है माँ !
इसका क्या करूँ ? अपने पुत्र की ज़्यादा प्रशंसा सुनना उचित नही है ….इसलिये शचि देवि ने मणि आदि दिखाते हुये कहा …इसका क्या करूँ ? सुन , तेरा बहुत ख़र्चा हो रहा है इसे तू ही रख ले ….मणि शचि देवि बुद्धिवंत को देने लगीं ….तो उसने मना कर दिया और बड़े आदर से कहा ….माँ ! अभी बहु आयेगी ..उसके लिए रख दो …ये मणि मोती उसे अच्छे लगेंगे । शचि देवि को बात माननी ही पड़ी ….क्या करतीं ….पर वापस संदूक में रखते समय देखा तो वो फिर चौंक गयीं …पाँच चमचमाता सुन्दर हार , हीरा जड़ाऊँ सुवर्ण का हार वहीं था ..अब ये कहाँ से आया ?
शचि देवि ! चलो गंगा जल भरकर लाना है …फिर निमाई का स्नान होगा ….पचासों स्त्रियाँ आगयीं हैं सज धज के ….वो सब आवाज़ दे रही हैं । शचि देवि ने अब सोचना छोड़ दिया और संदूक को बन्दकर के रख दिया ..फिर स्वयं बाहर आगईँ ।
लाल लाल साड़ी में …सुवर्ण के आभूषणों से सजी धजी नवद्वीप की ललनाएँ गंगा घाट चलीं …मंगल गीत गाती हुईं गयीं वहाँ से इन सबने जल भरा फिर गीत गातीं हुलु मंगल ध्वनि करती हुईं शचि देवि के घर में आ गयीं । घर में आकर शचि देवि ने सबका आदर किया …सबके हाथों में हल्दी और तैल दिया था …वो तैल सुगन्धित था ।
उधर पूजा पूरी हुई …..निमाई को वहाँ से उठकर आँगन के मध्य में पीढ़े पर बैठाया गया …उनके ऊपर जो उत्तरीय था उसे हटाया , बस फिर क्या था …निमाई का वो सुन्दर श्रीअंग ..स्त्रियाँ को तो हल्दी लगानी है इन सुंदरतम अंगों में ये भी भूल गयीं …अपलक बस देखती जा रही हैं …जब लोगों ने कहा …तब वो अपने आपको सम्भालती हुई निमाई के पास गयीं ….परम सौभाग्यवती नवद्वीप की ये महिलायें जब निमाई को छूने लगीं तो एक बार ये देह भान ही भूल गयीं …कोमल अंग हैं निमाई के उसमें हल्दी ….गौर वर्ण में हल्दी की शोभा अलग ही बन रही थी ..अब तो मत्त हो गयीं कोई कपोल में हल्दी लगा रही हैं …कोई वक्ष में लगाते हुये परम सुख का अनुभव कर रही हैं …कोई निमाई के चरणों में हल्दी का लेपन करके फिर मार्जन कर रही हैं ….एक सुन्दरी ने आकर ऊपर से गंगा जल चढ़ा दिया …फिर तो मर्दन प्रारम्भ हो गया था …हल्दी सुगन्धित तैल ऊपर से गंगा जल थोड़ा थोड़ा …..पहले तो सम्भल कर संकोच पूर्वक अंगराग लगा रही थीं …पर बाद में संकोच छूट गया इन सबका ….निमाई को मलने लगीं …ऊपर से गंगा जल ..सुन्दरियों की साड़ी भीगने लगी …पर इन्हें परवाह क्या थी ….चारों ओर नवद्वीप वासी खड़े हैं ….इस दृष्य को देख रहे हैं …वातावरण सुगन्ध से सरावोर हो गया है । सब लोग आनंदित हो रहे हैं ….हुलु ध्वनि मध्य मध्य में मंगल की सूचना दे रही है …मंगल गीत गाकर महिलायें विमल सुख का अनुभव कर रही हैं । वो सब अपने भाग्य को सराह रही हैं कि हमारा भाग्य कितना सुप्रसन्न है ।
एक सुन्दरी नारी चरण में हल्दी का लेपन कर रही थी …दूसरी को मत्तता छाई तो उसने किसी की परवाह किये बगैर पहली नारी को हटाकर निमाई के चरणों को स्वयं पकड़ लिया और जोर जोर से हल्दी रगड़ने लगी …वो कभी युगल चरणों को अपने वक्ष से छुवा रही थी ….पहली वाली सुन्दरी उठ कर रिसाय के जाने लगी ….मीठी गाली भी देने लगी …तो सबने पहली वाली को बैठाकर इस को उठा दिया ….पर तीसरी सुन्दरी ने निमाई के हाथों को आक्रामक ढंग से हल्दी लगाना शुरू किया । अद्वैताचार्य जी भी वहाँ आगये थे …उन्होंने इस झाँकी को देखा तो गदगद हो गये ….वो अपने आस पास के लोगों को कहने लगे मुझे तो ऐसा लगता है …नवद्वीप आज श्रीवृन्दावन बन गया है ….निमाई नही हैं ये श्री श्याम सुन्दर हैं …और ये सब इनकी ही गोपियाँ हैं …देखो ! क्या दिव्य लीला कर रहे हैं श्रीश्याम सुन्दर ।
शचि देवि ने निमाई की हल्दी , उबटन सनातन मिश्र जी के यहाँ पहुँचाई …वहाँ इसी प्रतीक्षा में ही थे कि वर की प्रसादी उबटन आये तो इधर भी ये विधि प्रारम्भ हो …तभी ब्राह्मण देवता निमाई के अंग में लगी उबटन लेकर मिश्र जी के यहाँ पहुँचे । उसी समय बाजे गाजे बज उठे थे …महिलाओं ने हुलु ध्वनि करके वातावरण को और मंगल बना दिया ….सुन्दर सुन्दर सजी धजी महिलायें चारों ओर खड़ी हैं …मध्य में जो ब्रह्म स्थान है …उसके ऊपर सुन्दर चंदोवा लगाया है …चारों ओर रंगीन पताकाओं से पाट दिया गया है । चाँदी की पीढी रखी है मध्य में ….तभी स्वर्ग की नारियों को मात देने वाली सौन्दर्य की मूर्ति बनी विष्णुप्रिया सज धज कर वहाँ आईं …लाल साड़ी में इनकी शोभा अद्भुत थी …सुवर्ण आभूषणों से सजी विष्णुप्रिया की तुलना किससे की जाये ? मेनका ? या रम्भा ? नही ..इनके साथ तुलना करना विष्णुप्रिया का अपमान होगा …ये तो स्वयं लक्ष्मी हैं ….साक्षात् लक्ष्मी ।
पीढ़े में आकर ये बैठ गयीं हैं …..मंगल गीत प्रारम्भ हो गये ….सुन्दर महिलाओं ने प्रिया के शुभ अंगों में हल्दी का लेपन और मार्जन शुरू किया । विष्णु प्रिया को किसी सुगन्ध की आवश्यकता नही थी इनके श्रीअंग से ही सुगन्ध निकल रही थी …जो स्थान के साथ साथ काल को भी सुगन्धित बना रही थी । हल्दी तैल के लेपन से प्रिया का रूप और निखर गया था ..कच्चे सुवर्ण की तरह विष्णुप्रिया का अंग लग रहा था ।
हम मूल मिथिला वासी हैं …..भावुक होकर महामाया मिश्र ने कहा ….जनकनन्दिनी जानकी जी के विवाह का दर्शन हमारे पूर्वजों ने किया था पर आज विष्णुप्रिया को देखकर लग रहा है …मिथिलेश नन्दिनी भी ऐसी ही होंगी ।
अब गंगा जल से स्नान कराया गया ….सुन्दर साड़ी मँगवाई …केश में सुगन्धित तैल लगाया गया ..उन्हें संवारा ….गन्ध चन्दन माला गजरा आदि से साक्षात् शृंगार की देवि का और शृंगार किया गया …..अद्भुत अनुपम था ये सब ।
सुन्दर रेशमी धोती धारण की निमाई ने …गन्ध चन्दन आदि से उनको और सुगन्धित किया गया …कण्ठ में माला धारण कराई जो इनके घुटनों तक आरही थी …बड़े बड़े नेत्रों में काजल लगाये गये …..घुंघराले केशों को संवारा गया । माता शचि आनंदित हैं ….अरी शचि ! अपने निमाई की आरती तो उतार ! महिलाओं ने कहा …तो शचि दौड़ी गयीं आरती लाने तो क्या भीतर क्या देखती हैं …अनाजों से भरा पड़ा है पात्र ….ये क्या है ? पर शचि देवि को अभी फुर्सत नही है कि वो ये सब सोचें …और सोचकर भी होने वाला क्या था …विधाता दाहिनी ओर था ।
शचि देवि ने अपने निमाई चन्द्र की आरती की ……
अब भोज प्रारम्भ हुआ ….ये भोज कल से भी ज़्यादा अच्छा था …मिष्ठान्न के प्रकार कितने थे ये किसी को पता नही …भाजी कितने प्रकार की थी आज कोई गिन नही पा रहा था । सबने भोज पाया …इतने पदार्थ कहाँ से आये ….ये भी किसी को पता नही ।
शेष कल –


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