!! परम वियोगिनी – श्रीविष्णुप्रिया !!
( चतुर्दशोध्याय:)
गतांक से आगे –
दूसरे दिन अपराह्न में निमाई को वर रूप में बरात में जाना था ….सब मित्र जन प्रातः ही निमाई के घर में आगये थे …स्नान आदि से निवृत्त निमाई को सब लोगों ने सजाना शुरू कर दिया …शचि देवि बारम्बार अपने पुत्र को देखतीं और फिर नज़र हटा लेतीं ….”मेरी ही नज़र लगती है इस निमाई को”…..अब तो महिलायें भी आगयीं थीं घर में …गीत आदि के गायन शुरू हो गये थे …झाँझ मंजीरा ढोलक लेकर महिलायें विवाह के मंगल गीत गाने लगी थीं । मित्रों ने जिस तरह से सजाया था निमाई को ये देखकर महिलायें हंसने लगीं ….निमाई के मित्रों ने कहा …क्यों क्या कमी है ? तब महिलायें गायन आदि छोड़कर निमाई के पास आईं और हंसती हुई बोलीं – महिलाओं के बिना कुछ नही है ….तुम लोग अच्छे से सज भी नही सकते …ये कहते हुये निमाई को एक चौकी में बिठाया …फिर सारे पुरुषों को वहाँ से जाने के लिये कहा …शचि देवि हंसते हुये ये सब देख रहीं थीं तो शचि देवि को भी वहाँ से हटाया ….और निमाई को वो नवद्वीप की युवतियाँ सजाने लगीं । चादर ओढ़े हुये थे निमाई, उसे हटाया …पर चादर को हटाते ही सुगन्ध निकली निमाई के श्रीअंग से जो वातावरण में महकने लगी थी । महिलायें मुग्ध हो रही हैं …इस सुगन्धित देह में चन्दन लगाने की आवश्यकता क्या है ! एक महिला प्रेम के वश में होकर कह रही है ….दूसरी तुरन्त आगे आजाती है …वो पहली को हटाते हुये कहती है …मैं लगाऊँगी चन्दन …ये कहकर निमाई के अंग में चन्दन का सुगन्धित तैल मर्दन करती है …मर्दन करते हुये वो अपने आँखें बन्द कर लेती है …शचि देवि ये देख लेती हैं …”कोई ओर आजाओ ये तो गयी काम से “। फिर तीसरी आती है …वो दिव्य अलंकार धारण करा देती है । लाल चौड़ी किनारी की धोती पहनते हैं निमाई …सुन्दर रेशमी कुर्ता …माथे में लाल सिन्दूर का टीका …गले में मोतियों की माला …बाहों में बाजू बन्द …उँगलियों में नाना प्रकार की अँगूठियाँ ….बड़े सुन्दर लग रहे है निमाई …ये कहना ही पर्याप्त नही होगा …पर शब्दों में इससे ज़्यादा और क्या कहा जाये ।
मुहूर्त है सन्ध्या काल का , गोधुली वेला के समय में सनातन मिश्र जी के घर में निमाई का प्रवेश है …इन सब कामों में दोपहर हो गयी ….तभी बाजे बजाने वाले आगये ….घर से गंगा घाट जाना है …वहाँ पूजन होगा …निमाई को घेरकर सब लोग गंगा घाट ले गये …पर गंगा घाट में भीड़ लगी है ….नवद्वीप के समस्त नर नारी इस सौभाग्य से वंचित नही रहना चाहते थे ….इसलिए सब आगये ….निमाई ने पूजन किया गंगा जी का …बड़ी श्रद्धा है गंगा के प्रति निमाई की ….फिर आरती की ….पालकी आगयी है जिसमें वर रूप निमाई बैठकर विष्णुप्रिया को लेने जायेंगे ….महिलाओं ने हुलु मंगल ध्वनि करनी आरम्भ कर दी ….सब गदगद हैं …पुष्प लावा आदि निमाई के ऊपर छोड़ते हैं । अब पालकी में बैठने के लिए लोगों ने कहा …पर निमाई ने पालकी में बैठने से पूर्व माँ शचि की परिक्रमा की …उनके चरण धूल को अपने माथे से लगाया और पालकी में बैठ गये । नवद्वीप में ऐसा विवाह आज तक नही हुआ था ये बात सब लोग कह रहे थे …निमाई जितना सुन्दर लग रहा है उतना आज तक कोई लगा नही था । महिलायें अपने अपने झरोखे में झांक रही हैं …वो सब हुलु ध्वनि करती हैं ..निमाई की पालकी जब उनके यहाँ से गुजरती है तो वो सब पुष्प और लावा बरसाती हैं ।इस तरह नवद्वीप वासियों को आनन्द प्रदान करती हुई ये निमाई की बारात ठीक गौधुलि वेला में ही सनातन मिश्र जी के द्वार पर जा खड़ी हुई ।
आज सनातन मिश्र जी और उनका पूरा मिश्र परिवार आनन्द में सरावोर है ….द्वार पर ही सब खड़े हैं ….महिलायें मंगल गीत गा रही हैं …मृदंग आदि वाद्य बडी ही सुन्दरता से कलाकार लोग बजा रहे हैं ….पुष्पों को मार्ग में बिखेर दिया है ….सुन्दर सुन्दर डलिया में पुष्प और लावा भर कर सजी सजी धजी सुन्दरियाँ खड़ी हैं …..चारों ओर आनन्द ही आनन्द छाया हुआ है ।
तभी ……हुलु ध्वनि सुनाई दी ….वाद्य आदि की धूम सुनाई दी ….महामाया देवि के नेत्रों से आनन्द के अश्रु बहने लगे हैं ….उनके साथ की महिलायें पूछती हैं तो वो हंसते हुये कहतीं हैं …इतना आनन्द मैंने जीवन में कभी देखा नही था इसलिये ये आनन्द के अश्रु बह रहे हैं ।
बारातियों के दल बल के साथ निमाई की डोली मिश्र जी के द्वार पर पहुँची ….बारातियों ने नाचना शुरू किया …उनके ऊपर पुष्प की वर्षा युवतियाँ करने लगीं …गुलाब जल का छिड़काव किया जाने लगा …तभी सनातन मिश्र जी डोली के पास आये और हाथ जोड़कर बोले …आप उतरें ….ये कहते हुये निमाई को जैसे ही उठाने लगे ….बाराती हर्षोल्लास में चिल्लाये …निमाई ! ऐसे मत उतरना ….निमाई नही उतरे ….सनातन मिश्र जी ने फिर हाथ जोड़ा ….पर निमाई इस बार भी नही उतरे …..बाराती आनन्द ले रहे हैं ….निमाई के मित्र नाच रहे हैं ….उनके ऊपर पुष्प गुलाब जल की वर्षा की जा रही है …”आप की जो माँग हो हम पूरी करने के लिए तैयार है”…..सनातन मिश्र जी ने निमाई से हाथ जोड़कर कहा ….निमाई के नेत्र सजल हो गये …आप हमें अपनी “आत्मा” दे रहे हैं इससे ज़्यादा और क्या । ये कहते हुये निमाई ने सनातन मिश्र जी को डोली से ही प्रणाम किया । तभी मिश्र जी ने निमाई को अपने गोद में उठा लिया ..किन्तु निमाई का स्पर्श पाते ही मिश्र जी को रोमांच होने लगा …अद्भुत दिव्य अनुभूति होने लगी ….उन्हें लग रहा था कि मेरा जीवन धन्य हो गया …..मेरे जितने अहोभाग्य और किसके ! यही सोचते हुये सनातन मिश्र जी घर के आँगन में सुन्दर चँदोवे के नीचे जो दिव्य वरासन लगाया था …वहीं निमाई को विराजमान कर दिया ।
भीड़ है मिश्र जी के आँगन में ..अब लोग हुलु ध्वनि कर रहे हैं …वातावरण मंगल मंगल हो रहा है ।
मिश्र जी सपत्नीक आये और वर रूप निमाई के चरण धोने लगे ….उन्हें सुन्दर माला पहनाई ….पण्डितों ने वेद मंत्रों का उच्चारण किया …चारों ओर से निमाई के ऊपर पुष्प लावा आदि की वृष्टि की गयी ।
अब कन्या को लाने की बात कही गयी ……
विष्णुप्रिया सखियों से घिरी हुई हैं ….सुन्दरता की साक्षात् मूर्ति लग रही हैं …आभूषणों से सुसज्जित …साक्षात् काम पत्नी रति को भी विमोहित करने वाली रूप राशि लेकर विष्णुप्रिया ने वहाँ प्रवेश किया …सखियाँ मंगलगीत गा रही थीं …महिलायें धान का लावा ऊपर चढ़ा रही थीं ।
निमाई शान्त गम्भीर बैठे हैं …विष्णुप्रिया का मन कर रहा है एक बार देख लूँ …अपने प्रियतम को निहार लूँ …पर ये मर्यादा ! विष्णुप्रिया जाकर निमाई के दाहिने भाग में बैठ गयीं । युगल छवि ऐसी लग रही है …जैसे श्रीसीता राम विवाह मण्डप पर विराजमान हों ।
सारी विवाह विधियाँ सम्पन्न होने लगीं ….लोग दर्शन कर रहे हैं और देह सुध भूल रहे हैं ।
सनातन मिश्र जी ने अब कन्या दान किया ….विष्णुप्रिया ने सात प्रदक्षिणा किये निमाई के ….निमाई ने गोद में लेकर विष्णुप्रिया को यज्ञ के सात बार फेरे लिये । ये जो झांकी थी …..बहुत दिव्य थी । विष्णुप्रिया ने इस प्रसंग में ही अपने वर निमाई को देखा था …और निमाई ने अपनी वधू विष्णुप्रिया को । आहा !
विवाह सम्पन्न हुआ …विष्णुप्रिया अब निमाई की हैं ….महिलाओं ने कहा …अब दूल्हा दुल्हन को वासर गृह ( कोहवर ) में ले जाओ ….यही यहाँ की विध है …जहां किसी पुरुष का प्रवेश नही है ….पुरुष है तो वो दूल्हा मात्र बाकी दुल्हन और उनकी सखियाँ । मण्डप से उठकर चल पड़े निमाई ….हाथ छोड़ना नही है …हाथ तो अब जीवन भर पकड़े ही रहना है ….निमाई ने वासर गृह जाते हुए विष्णुप्रिया का हाथ छोड़ दिया था ….तो सारी सखियों ने टोका …विष्णुप्रिया निमाई की ओर देखकर मुसकुराईं । बस इसी समय विष्णुप्रिया के दाहिने पैर के अंगूठे में ठेस लग गयी …..भारी पीड़ा होने लगी …पर प्रिया ने छुपा लिया …किन्तु रक्त बहने लगा ….किसी को पता नही है ….निमाई ने देख लिया था …भारी पीड़ा हो रही है प्रिया को …और रक्त रुक भी नही रहा …तभी निमाई ने धीरे से अपने दाहिने पैर के अंगूठे से प्रिया के अंगूठे को थोड़ा सा दबा दिया …..विष्णुप्रिया को अपने प्रियतम का स्पर्श मिला तो उनकी सारी पीड़ा ही खतम हो गयी …रक्त भी रुक गया …अपने प्राणबल्लभ निमाई के स्पर्श ने प्रिया को सब कुछ भूलने के लिए मजबूर कर दिया ….उनके आनन्द का पारावार नही था आज । कोहवर में पूरी रात हास्य विनोद होता रहा …सखियों ने एक ही थाल में दोनों को नाना पकवान रुचि रुचि से पवाये थे ।
इस तरह से “प्रिया निमाई” का विवाह सुसम्पन्न हुआ ।
शेष कल –


Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877