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July 7, 2025 10:03 am

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श्री जगन्नाथ मंदिर सेवा संस्थान दुनेठा दमण ने जगन्नाथ भगवान की रथ यात्रा दुनेठा मंदिर से गुंडीचा मंदिर अमर कॉम्प्लेक्स तक किया था यात्रा 27 जुन को शुरु हुई थी, 5 जुलाई तक गुंडीचा मंदिर मे पुजा अर्चना तथा भजन कीर्तन होते रहे यात्रा की शुरुआत से लेकर सभी भक्तजनों ने सहयोग दिया था संस्थान के मुख्या श्रीमति अंजलि नंदा के मार्गदर्शन से सम्पन्न हुआ

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!! परम वियोगिनी – श्रीविष्णुप्रिया !!-पंचदशोध्याय :

!! परम वियोगिनी – श्रीविष्णुप्रिया !!-पंचदशोध्याय :

!! परम वियोगिनी – श्रीविष्णुप्रिया !!

( पंचदशोध्याय: )

गतांक से आगे –

दूसरे दिन प्रातः निमाई और विष्णुप्रिया उठे ….स्नान आदि किया ….सुन्दर वस्त्र धारण किये ….फिर कुछ देर अग्निहोत्रादि का शेष कार्य पूर्ण किया …फिर भोजन का समय हुआ तो निमाई और विष्णुप्रिया को बैठाकर माता महामाया देवि ने स्वयं भोजन बना, खिलाने लगीं ….आज प्रिया की माता महामाया बहुत प्रसन्न हैं …अपने हाथों इन्होंने पकवान बनाये हैं ….अनेक प्रकार की भाजी , अनेक प्रकार के भाजा , अनेक प्रकार की मिठाइयाँ । निमाई तृप्त हुये हैं …विष्णुप्रिया तो परम संकोची हैं ….वैसे भी संकोची थीं पर आज तो ….अपने ही घर में ….अपने ही माता पिता के सामने वो कैसे पराई हो रही थी । विष्णुप्रिया को निमाई मिले हैं इस बात का तो परम आनन्द है किन्तु अपना घर कैसे पराया हो रहा था ….इस बात को महसूस कर रहीं थीं । जहां खेलीं कूदीं …अपने जिद्द के लिये रोईं ….पिता माता से अपनी हर बात मनवाई …यहाँ का कण कण अपना था …पर कैसे एक ही दिन में पराया हो गया ।

भोजन हो गया निमाई विष्णुप्रिया का ….

अब विदाई होगी …चाची विधुमुखी लेकर गयीं विष्णुप्रिया को कक्ष में…सुन्दर नई साड़ी पहनाई ….आभूषण धारण कराये …सजाया …फिर से शृंगार हुआ ….पर कक्ष में जैसे ही महामाया देवि आयीं और अपनी प्रिया को देखा …बस फिर क्या था हिलकियाँ फूट पड़ीं …अपनी लाड़ली प्रिया को छाती से चिपका कर रोने लगीं …विष्णुप्रिया के भी नेत्र बह चले …..रोने की और हिलकियों की आवाज से वातावरण अत्यन्त करुण बन रहा था । बाहर स्वजनों और परिजनों की भीड़ लगी थी । सनातन मिश्र जी ने देखा …निमाई के नेत्र सजल हो गये …ये देखकर सनातन मिश्र जी अपने अश्रुओं को रोक नही पाये …हे गौरांग देव ! अपने “प्राण” मैं आपको सौंप रहा हूँ ….इसका ख़्याल रखना ….मुझे अभी कुछ स्मरण नही है ….बस मैं इतना जानता हूँ कि ….नारायण स्वरूप निमाई को मैंने अपनी लक्ष्मी स्वरूपा विष्णुप्रिया का कन्या दान किया है । ये कहते हुये बिलख उठे थे सनातन मिश्र जी ।

विदाई का मुहूर्त निकला जा रहा था …तो ब्राह्मणों ने मिश्र जी को संकेत किया …मिश्र जी ने आज्ञा दी …प्रिया को लेकर आओ । भीतर से माता महामाया देवि और विधुमुखी चाची प्रिया को लेकर आईं …..प्रिया ने सिर ऊँचा करके अपने पिता को देखा ….पर वो आज अपनी लाड़ली को देख नही सके …नयन भरे हैं पिता के , ये जब देखा प्रिया ने तो वो दौड़ पड़ीं और पिता के हृदय से लग गयीं …..ये दृष्य कैसे भी कठोर हृदय वालों को पिघलाने के लिए पर्याप्त थे । पिता सनातन अब हिलकियों से रो पड़े । परिजनों ने समझाया ….तब जाकर अपने को सम्भाला था मिश्र जी ने ….हाथों में लावा पुष्प आदि लेकर निमाई और प्रिया के सिर में आशीष के रूप में छोड़ा …अब तो विदाई के गीत महिलायें गाने लगीं …..वातावरण और करुण हो उठा था …डोली लाई गयी …दोनों वर वधू को उसमें बिठाया …और वो डोली चल पड़ी निमाई के घर की ओर …हुलु ध्वनि महिलायें बहुत देर तक करती रहीं थीं ।


मार्ग में हज़ारों लोग खड़े हैं ….जो निमाई और प्रिया को देखना चाहते हैं …जब इन युगल की झाँकी उन्हें दीख जाती है …तो वो सब गदगद हो जाते हैं …”हमारे नेत्र सफल हो गये ..हृदय शीतल हो गया”….सब के यही बोल होते थे । इस तरह अपने घर में निमाई आगये ।

निमाई ने तो मना किया था दाईज लेने के लिये ….पर सनातन मिश्र कहाँ मानने वाले थे …उन्होंने पहले ही बहुमूल्य सामग्रियाँ शचि गृह में भिजवा दिया था ….नाना प्रकार के वस्त्र आदि थे ….नाना प्रकार के आभूषण ….स्वर्णमुद्रायें आदि आदि । शचि देवि का घर इन सब से भर गया था । निमाई और अपनी बहु प्रिया के स्वागत के लिए आरती लेकर शचि देवि खड़ी हैं ….उनके साथ सुन्दर महिलायें भी हैं …..कुछ पण्डित भी हैं …जो शंख बजा कर मंगल की सूचना दे रहे हैं ।

आरती की शचि देवि ने अपने पुत्र और पुत्र वधू की …उस समय शचि देवि इतनी भावोन्मत्त हो गयीं कि उन्हें कुछ पता ही नही रहा ….विष्णुप्रिया को गोद में उठाकर नृत्य करने लगीं …उन्मत्त नृत्य उनका प्रारम्भ हो गया था ….ये देखकर नवद्वीप वासी सब जय जयकार करने लगे ….हुलु ध्वनि से वातावरण और शुभ-मंगल हो गया था ….खुशी के अश्रु सबके बह चले थे …क्यों की शचि देवि ने जीवन में बहुत दुःख देखे थे ….आज इनके यहाँ आनन्द का अवसर आया था । इसलिए शचिदेवि भावोन्माद से भर गयी थीं ।

अन्य महिलाओं ने इन्हें सम्भाला …फिर बड़े प्रेम से पुत्र पुत्रवधू को लेकर ये भीतर आयीं ।

माँ ! ये क्या है ?

निमाई ने देखा पूरा घर-आँगन तो भरा पड़ा है सामग्रियों से तो पूछ लिया ।

पुत्र ! ये तेरे श्वसुर गृह से आया है ..दाईज है ये पुत्र ! शचि माँ ने कहा ।

माँ ! हम ब्राह्मण हैं जितनी आवश्यकता हो उतना ही रखना चाहिये हमें इतने वस्तु की आवश्यकता नही है ….इसलिये माँ ! इन सबको बाँट दो …..शचि देवि को भी ये उचित लगा ….विवाह में जिन जिन लोगों ने आकर अपनी सेवा दी थी उनको भी तो कुछ मिलना चाहिये ….शचि देवि ने सब कुछ बाँट दिया । नवद्वीप के ब्राह्मण , सेवा करने वाले सेवक धन आदि पाकर बहुत प्रसन्न हुये । खूब आशीष देते हुये अपने अपने घर की ओर सबने प्रस्थान किया । बुद्धिवंत को जब निमाई कुछ देने लगे तो वो रोष करने लगा …और अत्यधिक प्रेम के कारण बोला …अच्छा , अब मुझे अपना सेवक मान लिया क्या ? नही मित्र ! तुम तो मेरे अपने हो ….ख़ास अपने …ये कहते हुये बुद्धिवंत को प्रगाढ़ आलिंगन में निमाई ने भर लिया था ।
उसके आनन्द का आज पारावार न था …निमाई ! “मुझे मत भूलना” ये कहते हुये बुद्धिवंत रोने लगा था …निमाई ने सहज मुस्कान बिखेरते हुये कहा ….तुम तो मेरे विवाह के पण्डे हो …तुम्हें कैसे भूल जाऊँ ? इस तरह अपने समस्त परिकरों को परिजनों को प्रसन्न करके निमाई ने विदा किया ।

निमाई भैया ! निमाई भैया !

ओह ये लड़की कहाँ से आगई ? निमाई ने अपना सिर पकड़ लिया ।

सिर पकड़ने से नही होगा भैया ! भाभी दिखाओ ! कहाँ है हमारी भाभी ? भाभी ले आये और अपनी बहना को कुछ नही ।

ये पड़ोस में रहती है …ब्राह्मण कन्या है …नाम है इसका “कान्चना”। चंचल है …बोलती बहुत हैं…..पर अच्छी है ।

शचि माँ ! देखो तो भैया ने सबको दिया …पूरे नवद्वीप को दिया …पर अपनी बहना को ! ठेंगा ।

निमाई ! दे , इसे तो पहले देना चाहिये । निमाई सुवर्ण की अंगूठी देने लगे तो ये उछलती हुई बोली …..रहने दो भैया ! मुझे तो अपनी प्रियतमा के मुख दिखा दो ….कहाँ है ? ये तो नववधू के कक्ष में घुस गयी । देख , परेशान मत करना …बेचारी थकी है । शचि देवि ने कान्चना को समझाया ….शचि माँ ! मैं किसी को परेशान नही करती ।

दवे पाँव कक्ष में प्रवेश किया कान्चना ने ….विष्णुप्रिया घूँघट डालकर बैठी हैं …प्रिया समझ तो गयीं कोई आरही है ….पर ….हो…..कहकर जैसे ही विष्णुप्रिया को डराने दिया …विष्णुप्रिया ने अपना घूँघट हटाया …..वाह ! भाभी , तुम तो बहुत सुन्दर हो । प्रिया ने देखा- समवय है ये …तो भाभी कहना अच्छा नही लगा । तो हम मीत हैं आज से …..हाँ …विष्णुप्रिया ने अपना सिर प्रसन्नता से “हाँ”में हिलाया । ठीक है ….कान्चना ने हाथ आगे करके कहा …तो आज से हम दोनों मीत हुये । बड़ी प्रसन्न होकर विष्णुप्रिया उसकी सारी बातें सुनती रहीं ।

शेष कल –

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