!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 34 !!
अथः रास पंचाध्यायी प्रारंभ्यते
भाग 3
मैं ठीक हूँ प्रभु ! हाँ …..आनें का कारण …….तो ये हैं मेरे साथ ……..इन्हें तो आप जानते ही हैं …….कामदेव को दिखाते हुये नारद जी नें मुरली मनोहर श्याम सुन्दर से पूछा ।
ओह ! इनको कौन नही जानता ! अहंकारी के अहंकार को और बढ़ाना ये तो काम ही है श्याम सुन्दर का ……..तभी तो आगे की लीला बनेगी ।
नारद जी नें कामदेव को देखा …………..कामदेव और अहंकार से फूल गया था ……….मानों कह रहा हो …….देखा देवर्षि ! मुझे कौन नही जानता ……..मुझे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड जानता है ।
पर इन पुष्पधन्वा कामदेव को मुझ से क्या काम आ पड़ा ?
श्याम सुन्दर नें पूछा ।
इनको ऐसा लगता है कि ये विश्व विजयी हैं ……….देवर्षि नें कहा ।
हाँ ….तो सच ही लगता है इनको ……ये हैं ही विश्व विजयी ।
श्याम सुन्दर मुस्कुराते हुए बोले ।
” ये आपसे युद्ध करना चाहते हैं …..क्यों की बस आप ही बचे हैं अब ! “
देवर्षि नें बिना लाग लपेट के मुख्य बात जो थी कह दी ।
हँसे श्याम सुन्दर………..उनकी हँसी पूरे गोलोक में गूँजी थी ।
तो कैसा युद्ध करना चाहते हो कामदेव ?
श्याम सुन्दर नें तो ये भी पूछ लिया ।
कैसा युद्ध ? मैं समझा नही । कामदेव नें देवर्षि की ओर देखा ।
दो प्रकार के युद्ध हैं …….एक किले का ..और एक मैदान का ।
श्याम सुन्दर समझानें लगे कामदेव को ।
किले में सुरक्षा है …….पर मैदान में कोई सुरक्षा नही ।
जैसे ? कामदेव स्पष्टतः समझना चाहता था ।
तो सुनो मन्मथ कामदेव ! किला यानि विवाह करके मन को विचलित होनें से मुक्त रखना.. ……और मैदान यानि ……..हजारों सुंदरियों के साथ रमण करते हुये मन को शान्त रखना………
नही ….नही ……..बात पूरी भी नही हुयी थी कि कामदेव बीच में ही बोल पड़ा ………नही …….किले का युद्ध मैं राघवेन्द्र सरकार से लड़ चुका हूँ ।
विदेह नन्दिनी के साथ विवाह करके ………..वो वन में रहते थे ……तब मैने बड़ी कोशिश की …कि मैं उनके मन को विचलित कर दूँ…………पर वही जीत गए …………
हाँ ….मैं इस बार सबसे बड़ा युद्ध…..जो मैने लड़ा भी तो मुझे बड़े बड़े योगी …..योगेश्वर……तपसी सबको मैने पराजित किया है …….
हे श्याम सुन्दर ! हे गोलोक बिहारी ! मैं आपके साथ मैदान वाला युद्ध लड़ना चाहता हूँ …….खुला संग्राम…….कामदेव खुश था ।
तो ठीक है फिर ………..मिलना मुझ से वृन्दावन में ………..मैने अवतार लिया है ……और अब रासलीला करनें वाला हूँ …………मेरे साथ हजारों सुंदरियाँ होंगीं ………….उनके साथ मैं अब रमण करनें वाला हूँ ………..तुम आओ …….तुम्हारा स्वागत है वृन्दावन में ।
श्याम सुन्दर नें अपनें दोनों हाथों को उठाकर कहा ……..।
फिर ठीक है ….अब हमारी और आपकी मुलाक़ात होगी वृन्दावन में ।
इस बार तो प्रणाम भी नही किया कामदेव नें श्याम सुन्दर को ……और बिना देवर्षि को कुछ कहे ……चल दिया गोलोक धाम से ।
अच्छे से तैयारी करना काम देव ! कहीं तुम हार न जाओ ।
नही ……देखना देवर्षि ! इस बार मैं ही जीतूंगा……और श्याम सुन्दर के मन को “मथ” नही दिया मैनें तो मेरा नाम भी “मन्मथ” नही है……ये कहता हुआ चला गया मदन ।
इधर श्याम सुन्दर मुस्कुरा रहे थे ।
हे वज्रनाभ ! अब रासलीला का रस लो……….ये दिव्य है …..ये मधुरातिमधुर है ………..भगवान शंकर भी इस रास के दर्शन करनें गोपी बनके आये थे…………..
पर ये बाबरा कामदेव ! लड़नें चला है श्याम सुन्दर से !
महर्षि शाण्डिल्य नें रासपंचाध्यायी की चर्चा छेड़ दी थी आज से ।
शेष चरित्र कल …..


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