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July 8, 2025 12:56 am

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उद्धव गोपी संवाद :-(भ्रमर गीत) २३ एवं २४

उद्धव गोपी संवाद :-(भ्रमर गीत) २३ एवं २४

उद्धव गोपी संवाद:-

(भ्रमर गीत)
२३ एवं २४

प्रेम जु कोऊ वस्तु,रूप देखत लौं लागैं।
वस्तु दृष्टि बिन कहौ,कहा प्रेमी अनुरागे।।
तरनि चंद्र के रूप कौ,गुन नहिं पायो जान।
तौ उनकौ कहा जानिए, गुनातीत भगवान।।
सुनों ब्रजनागरी।।

उद्धव जी गोपियों से कह रहे हैं कि प्रेम ऐसी वस्तु है जो बिना देखे नहीं होती। प्रेमी को देखे बिना प्रेम नहीं हो सकता है। जो आकाश में चंद्रमा है वो दिखने में तो सुन्दर है पर गुण हीन है पर परब्रह्म गुणों से परे है।

तरनिं,अकास -प्रकास, जाहि में रह्यौ दुराई।
दिव्य दृष्टि बिन कहौ,कौन पै देख्यौ जाईं।।
जिनकें वे आंखें नहीं, देखें क्यौं वै रूप।
तिन्हैं सांच क्यौं उपजै,जे परे करम के कूप।।
सखा सुन स्याम के।।

गोपियाँ उद्धव से कहती है कि आकाश और चंद्रमा का प्रकाश तो बहुत दूर है। दिव्य दृष्टि के बिना दूर की चीज कैसे दिखेगी। जिनकी मन की आखें नहीं है वो क्या प्रभु के रूप को देखेंगे, उनके तो कर्म ही फ़ूट गए हैं।

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