!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 36 !!
वेद पुरान हमें नही सूझे …
भाग 3
इस आश्चर्य को देख कामदेव मूढ़ सा हो गया ………एक देह से गोपियाँ अपनें पतियों के पास ही थीं ……..पर दूसरे दिव्य देह से ……वो सब कृष्ण की ओर बढ़ रही थीं ……….उनके देह से ज्योति निकल रही थी …….वो सर्वत्र फैलती जाती थी ।
ये सब क्या हो रहा है कामदेव की समझ से परे था ।
सब सौन्दर्य की साकार देवियां छुपते छुपाते ……..उसी स्थान पर पहुँच गयी थीं ……..उसी शिला के पास ……..जहाँ बैठे मुरली मनोहर मुरली बजा रहे थे ।
घेर लिया उस शिला को……..हजारों गोपियों नें ।
ये इतनी सुन्दरीयाँ हैं ……..इनमें से तो एक भी काफी थीं इस कृष्ण का मन हरण करनें के लिये ….अब देखना होगा ये कृष्ण कैसे मुझ से पराजित नही होते ? कामदेव हँसता है ।
पर ये क्या ! बाँसुरी बन्द कर दी कृष्ण नें !
और शान्त गम्भीर ………..कामदेव पूर्ण चन्द्रमा को देखता है …..वृन्दावन की शोभा को देखता है ……….यमुना और गिरिराज को देखता है ……..कमल के फूलों को देखता है ………..फिर इन सुंदरियों को देखता है ……….इतना सब होते हुये भी ये शान्त है ? इतना शान्त तो कोई योगी भी नही रह सकता इस बनी हुयी परिस्थिति में !
“आप सब का स्वागत है, हे महाभागा गोपियों ! “
इनकी मधुर वाणी गूँजी वृन्दावन में ।
वे ऐसे स्वर में बात कर रहे थे गोपियों से ……जैसे गोपियों से इनका परिचय ही न हो ।
आप कैसे आईँ ? अरे ! इतनी रात में अकेले ?
बोले जा रहे थे कृष्ण ……………..
कोई संकट तो नही आ पड़ा तुम्हारे यहाँ ?
ओह ! वृन्दावन की शोभा देखनें आयी हो ? पूर्णिमा में, वह भी शरद की पूर्णिमा में अलग ही छटा होती है इस वन की ….यही देखनें आयी हो ?
तो देख लिया होगा…..अब जाओ ! जाओ ! नही तुम्हे जाना ही होगा ।
कितना बोल रहे थे आज ये कृष्ण ।
अरे ! तुम अभी तक गयीं नहीं ? क्यों ? जाओ ना !
अच्छा ! बैठो ! मैं तुम्हे आज एक बात बताता हूँ .
.ये तो उपदेशक बन गोपियों को उपदेश देनें लगे थे ।
ध्यान रखना …..हे गोपियों ! पत्नी का पति ही देवता होता है ।
पत्नी को छोड़कर किसी को मानना ये भी अपराध है ….पाप है ।
पति ही देवता है ….पति ही ईश्वर है …….पति की सेवा ही सबसे बड़ी सेवा है ……….और हाँ ………..पति चाहे जैसा हो …….शक्ति हीन हो ….भाग्य हीन हो ….धन हीन हो ………भले ही संसार उसकी निन्दा करती हो …..पर पत्नी को चाहिये ऐसे पति को भी छोड़े नही …..उसकी सेवा करके उसे प्रसन्न रखे ।
कृष्ण बोले जा रहे हैं ……कामदेव बड़े ध्यान से सुन रहा है ……..
पर गोपियों नें अपनें मस्तक को झुका रखा है ……….
तुम कुछ बोलती क्यों नहीं ? और मेरी ओर देखो !
जैसे ही कृष्ण नें कहा ……गोपियों नें कृष्ण की ओर देखा …….
उनके आँखों का काजल सब बह गया था आँसुओं में…..उनकी हिलकियाँ बंध गयी थीं….अपनें पैर के अँगूठे से धरती को खोद रही थीं…….।
ये क्या कर रही हो ? कृष्ण नें पूछा ।
सीता जी के लिये धरती फ़टी थी ना……आज हमारे लिए भी फट जाए ।
ये क्या कह रही हो ? कृष्ण नें समझाना चाहा ।
क्या कह रही हैं हम ? सही तो कब रही हैं ………
पर शास्त्र में लिखा है ये सब ………कृष्ण नें कहा ।
भाड़ में जाए शास्त्र !
कृष्ण ! जो शास्त्र तुमसे हमें अलग करे उस शास्त्र से हमें क्या लेना देना ।
धर्म कहते हैं ऐसा……. कि पति ही सब कुछ होता है पत्नियों का ……
कृष्ण फिर समझाने लगे ।
क्या सबके पति तुम नही हो ? क्या सब पतियों की भी आत्मा तुम ही नही हो ! अरे ! पतियों के ही क्यों समस्त जीव चराचर की आत्मा तो तुम्ही हो ना ! और हमें तो यही लगता है कि सबसे बड़ा धर्म यही है ……..तुम्हारे चरणों को अपनें वक्षस्थल में धारण करना ।
क्यों की प्रेम ही सबसे बड़ा धर्म है …………तुम समस्त आत्मा की प्यास हो ……….सब जो जीव चराचर भटक रहे हैं ……..वो मात्र तुम्हे पानें के लिये ही भटक रहे हैं………….तुम ही सबकी चाह हो ……
और जब तक तुम्हे कोई पा नही लेता ……उसका सब पाना व्यर्थ है ।
तुम प्रेम हो ………हम सब प्यासे हैं …………हे कृष्ण ! ये प्यास जन्मों की है ……..जन्म जन्मांतर की है ये प्यास ………….फिर हमें कर्तव्य के नाम पर इस संसार में मत भटकाओ ………..धर्म के नाम पर फिर संसार के बन्धन में मत बाँधों ….हे कृष्ण ! हमें स्वीकार करो ।
गोपियों नें रो रो कर ये सब विनती की थी ।
कृष्ण नें फिर भी कहा………….धर्म कहता है ………..
गोपियों नें कहा …..हम तो कहती हैं …..तुम अगर मिल जाओ तो सम्पूर्ण धर्मों को भी त्याग देना, यही श्रेष्ठ है…..यही सबसे बड़ा धर्म है ।
प्रेम ही सबसे बड़ा धर्म है …..हे कृष्ण !
प्रेम ही सबसे बड़ा सत्य है ….हे कृष्ण !
प्रेम ही सबसे बड़ा कर्तव्य है …हे कृष्ण !
इतना कहकर गोपियाँ सुबुकनें लगीं …………
कृष्ण देख रहे हैं गोपियों को ……..
कामदेव आकाश से आश्चर्यचकित हो बस देखे जा रहा है ।
शेष चरित्र कल ……
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