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July 8, 2025 4:33 am

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 38 !!- प्रेम में “मैं” कहाँ ?भाग 1 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 38 !!- प्रेम में “मैं” कहाँ ?भाग 1 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 38 !!

प्रेम में “मैं” कहाँ ?
भाग 1

प्रेम में “मैं” कहाँ ? और जहाँ “मैं” वहाँ प्रेम कहाँ ?

हे वज्रनाभ ! प्रेमसाधना का सबसे बड़ा विघ्न यही तो है “मैं”…..अहंकार …….जब प्रेम पथ में अहंकार आजाये तब उस उपासक का पतन ही होता है ……..

महर्षि शाण्डिल्य वज्रनाभ को समझा रहे थे ।

ओह ! कितना दूर है प्रियतम का महल …….सम्भल कर चलना होगा ……..बड़ा सम्भल सम्भल कर जीने पर चढ़ना होगा …….अजी ! थोडा भी चूके की गये……ऐसे गिरोगे हड्डी पसली का पता भी नही चलेगा …..सारी साधना धरी की धरी रह जायेगी ………..

ये प्रेम का पन्थ है ………..कोई योग या ज्ञान मार्ग नही ।

ज्ञान मार्ग की ऊँचाई है “तत्वमसि” यानि “तुम वही हो”………पर प्रेम की विलक्षणता तो देखो ……….जब अपनें प्यारे की याद में प्रेमी डूब जाता है तब एक अलग ही अधिकार जन्म लेता है ..उसके हृदय में ……..प्रेमी अपनें प्रियतम में इतनें अपनत्व से भर जाता है …….कि …….”तुम” और “मैं” ये भी छूट जाता है …….क्यों की सब कुछ उस प्रेमी के ही चरणों में समर्पित है ……….सब कुछ …..अपना कहनें को कुछ बचा ही नही ………ये देह भी नही …..ये मन भी नही ….ये चित्त भी नही ….और ये अंतिम अहंकार यानि “मैं” भी नही ।

हे वज्रनाभ ! जब प्रेम में “मैं” आता है ……अहँकार आता है ….तब इसे हटानें के लिये स्वयं प्रेमदेवता आगे आकर, विरह और वियोग देकर उन आँसुओं से “मैं” को निकाल देते हैं ….बहा देते हैं ।

सावधान रहनें की आवश्यकता भी है इस प्रेम मार्ग में ।

वह साँवरा, हमारा सजन तो युगों से हमारे द्वार पर ही खड़ा है ……खटखटा रहा है…….हम कभी उस तरफ ध्यान ही नही देते ।

वो “प्रिय” हमारी प्रतीक्षा में खड़ा है …..सदियों से खड़ा है………पर – उसका ध्यान है……उसका ध्यान तो सदैव हमारी तरफ ही रहता है …हम चूक जाएँ पर वो हमारा सजन नही चूकता….वो हमें नही भूलता ।

हाँ वज्रनाभ ! वो दुःखी हो जाता है ………….वो द्वार में खड़ा खड़ा उस समय दुःखी हो जाता है ……जब ये जीव “मैं” “मैं” “मैं” की बेसुरी राग अलापता रहता है…….अहँकार से इतना घिरा रहता है जीव… ….इसे कुछ याद नही रहता…….ये अहंकार बहुत बुरी चीज है…….इसी से साधना की ऊंचाई तक पहुँचे साधक भी गिर जाते हैं……ये देखा गया है ।

महर्षि शाण्डिल्य नें वज्रनाभ को समझाया ….

….अहंकार बाधक है प्रेम मार्ग में ।

तो क्या गोपियों के मन में अहंकार आया ?

हाँ वज्रनाभ ! महर्षि नें कहा ।

कैसा अहंकार गुरुदेव ? और फिर क्या श्रीश्याम सुन्दर नें उन्हें छोड़ दिया……त्याग दिया ? एक ज्ञानी और योगी की भाँती इन प्रेमियों का भी पतन हो गया ?

क्रमशः …
शेष चरित्र कल –

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Author: admin

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