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July 8, 2025 5:34 am

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!! परम वियोगिनी – श्रीविष्णुप्रिया !!- सप्तविंशति अध्याय : Niru Ashra

!! परम वियोगिनी – श्रीविष्णुप्रिया !!- सप्तविंशति अध्याय : Niru Ashra

!! परम वियोगिनी – श्रीविष्णुप्रिया !!

( सप्तविंशति अध्याय: )

गतांक से आगे –

रात्रि में आज कृष्ण लीला का आयोजन होगा ….ये आयोजन शचि देवि की बहन के घर में है ….चन्द्रशेखर आचार्य ये शचि देवि के बहनोई लगते हैं …पड़ोस में ही हैं …इनके ही घर में विष्णुप्रिया जा सकती हैं ….शायद इसलिये निमाई ने इनके यहाँ लीला रखी है ।

प्रिया ! तू तैयार है ?

रात्रि के आठ बज गये हैं …नौ बजे से लीला प्रारम्भ है …शचि देवि ने विष्णुप्रिया से पूछा ….हाँ , माँ ! मैं तैयार हूँ …पर कान्चना भी कह रही है कि लीला मुझे भी देखनी है , माँ ! उसे भी ले चलूँ ? हाँ , क्यों नही …वैसे भी गाँव के सभी लोगों को निमन्त्रण दिया गया है ….बुद्धिवंत कायस्थ तो निमाई का परम भक्त है …आयोजन का सारा खर्चा उसने ही तो किया है….शचि देवि ने आयोजन के विषय में प्रिया को सब बता दिया था ।

प्रिया ! मैं कैसी लग रही हूँ ? चहकते हुये सुन्दर साड़ी पहन कर कान्चना आगयी थी ।

सुन्दर तो तू है ही….ये कहते हुये फिर प्रिया के गले लग गयी थी ।

नही सखी ! तू भी बहुत सुन्दर लग रही है …
प्रिया ने कान्चना के चिबुक में हाथ रखते हुये कहा था ।

चलो अब , नही तो देरी हो जाएगी ..और सुना है बहुत भीड़ हो रही हो रही है…इस लीला में । शचि देवि ने कहा और वो चलीं …तो ये दोनों भी शचिदेवि के साथ चल दीं थीं ।

सुना है – तेरे ‘वे’ लीला में अभिनय करने वाले हैं ?
कान्चना ने धीरे चलते हुए प्रिया के कान में कहा । प्रिया ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ कहा..फिर शरमा कर उसे चुप रहने का संकेत भी किया ।

कान्चना खूब हंसी …बोली – बहुत आनन्द आएगा । तू तो बहुत खुश हो रही होगी ।

हंसते हुए धीरे से विष्णुप्रिया ने कान्चना के कान में कहा ….वो कह रहे थे …तुम मुझे पहचान नही पाओगी ….क्यों ! वो तो इतने लम्बे हैं ….हजारों की भीड़ में भी वो ही सबसे ऊपर दीखेंगे …कान्चना के मुख से ये सुनते ही प्रिया बहुत हंसी …बहुत हंसी…जब तक उस लीला मंचन के स्थान पर नही पहुँचे तब तक ये हंसती ही रही । ए छोरियों ! अब चुप करो ज़्यादा मत हंसो ….शचि देवि ने जब देखा दोनों खें खें किए जा रही हैं …तो शान्त रहने के लिए कहा ।

प्रिया ने कान्चना को चुप कराया …और लीला स्थल में जाकर दोनों बैठ गयीं …आचार्य चन्द्रशेखर जो मौसा लगते हैं निमाई के ….उन्होंने आगे का स्थान दिया विष्णुप्रिया और कान्चना को ….शचि देवि अपनी बहन से कुछ व्यावहारिक बातें करके वो भी प्रिया के साथ ही आकर बैठ गयीं थीं ।

सुन्दर सज्जा है ….सुना है पूर्व बंगाल से कारीगर बुलाये गये थे ….केले के स्तम्भ से कारीगरी हुई थी मंच की ……आम्र के कोमल पत्तों की कारीगरी देखते ही बनती थी ….मध्य मध्य में गुलाब जल का भी छिड़काव हो रहा था ….तभी पाँच बड़े बड़े मशाल लेकर लोग आगये ….इससे प्रकाश अब पूर्ण हो गया था …..वीणा ,मृदंग , बाँसुरी झाँझ आदि लेकर मंच पर कलाकार बैठ गए थे ।

विष्णुप्रिया बहुत खुश है …वो बारम्बार कान्चना को कुछ न कुछ दिखा रही है ….वो देख ! वीणा …ये वीणा वादक बहुत सुन्दर वीणा बजाता है …..तूने कहाँ सुना ? प्रिया ने कान्चना को शरमा कर उत्तर दिया …मेरे विवाह में यही तो आया था । तभी –


हे नवद्वीप वासियों ! ये दुर्लभ क्षण आपके सामने शीघ्र उपस्थित होने वाला है …..”कृष्ण लीला”….ये सौभाग्य है हम लोगों का कि पण्डित निमाई जो अब मात्र पण्डित नही हैं …एक भाव जगत के उच्च शिखर पर विराजमान सिद्ध पुरुष बन गये हैं ……..

संचालन महोदय की बात पर पूरे नवद्वीप वासियों ने करतल ध्वनि की ।

कान्चना खूब ताली बजा रही है ….और प्रिया को भी ताली बजाने के लिए प्रेरित कर रही है …पर अपने प्राणेश्वर का नाम आते ही ये शरमा गयी है ….ताली नही बजाती ।

“उन्हीं भाव सिद्ध निमाई के द्वारा लिखित ये लीला है …..
तो आप लोग तैयार हैं ! इस कृष्ण लीला का आनन्द लेने के लिए !”

संचालन महोदय पूछते हैं ….तो हजारों लोग एक साथ उत्तर देते हैं ….’हाँ’….कान्चना खड़ी होकर मत्त हो …’हाँ’….वो भी कहती है …उसे देखकर विष्णुप्रिया खूब हंस रही है ।

तो दर्शन कीजिए … ये है अद्भुत लीला …कृष्ण लीला ।


मैं हूँ ….गोलोक धाम का कोतवाल ……

ये थे हरिदास …जो निमाई के परम प्रिय थे …बड़ी बड़ी मूँछें लगाकर हाथ में लाठी लेकर …..मूँछे मटकाते हुए ये मंच पर आये पर आते ही धोती में उलझ गये और गिर पड़े …सारे दर्शन हंसे थे ….कान्चना ताली मारकर हंस रही है …..खूब हंस रही है …वो प्रिया को भी हंसने के लिए कह रही है …प्रिया इधर उधर देखती है ….फिर संकेत में कहती है …लोग देख रहे हैं हमें ..कान्चना , ज़्यादा मत हंस । तू भी ना प्रिया ! बस लोगों को ही देखती रह …देख । सामने देख सखी ।

उठ गए थे हरिदास …फिर लाठी से संभलकर बोले …मैं हूँ गोलोक धाम का कोतवाल ।

अब देखो ….प्रभु श्रीश्यामसुन्दर का इस धरा धाम में अवतरण….

तभी पर्दा लग गया …..


मुझे पृथ्वी पर जाना ही होगा …..क्यों की सब ब्रह्मा शंकर आदि मुझ से प्रार्थना कर रहे हैं ….पृथ्वी में हा हाकार मच गया है …….सिंहासन में विराजमान में हैं श्रीश्याम सुन्दर ….वो अपने सखाओं से कह रहे हैं । तो आपके साथ हम भी जायेंगे पृथ्वी में । हाँ हाँ तुम सब तो मेरे अपने सखा हो …तुम्हारे बिना लीला बनेगी ही नही ….मधुर स्वर में श्याम सुन्दर बोले थे ।

तभी ….सामने से श्रीराधारानी अपनी ललितादि सखियों के साथ वहीं प्रकट हो गयीं ……

आहा ! श्रीराधारानी कितनी सुन्दर लग रहीं थीं ….गौरांगी …तपते कुन्दन की तरह ..बड़े बड़े नेत्र …लम्बी सुन्दर सी चोटी जिसमें फूल लगे हैं ।

क्यों अवतार लेना चाहते हो प्यारे ? मधुर आवाज में श्रीराधारानी ने पूछा था ।

उठकर खड़े हो गये श्याम सुन्दर , अपने सिंहासन में विराजमान किया ….फिर हाथ जोड़कर बोले …हे स्वामिनी ! आप सब जानती हो …पृथ्वी में हाहाकार मच गया है आसुरी शक्ति बढ़ रही है ..उसके नाश के लिए ही मैं जा रहा हूँ ।

मुसकुराईं श्रीराधिका ….प्यारे ! आप के एक भृकुटी विलास से अनेकानेक सृष्टियां बन जाती है, और बिगड़ जातीं हैं ….आपके संकल्प से सब कुछ हो जाता है …फिर मात्र आसुरी शक्ति के विनाश के लिए आपका पृथ्वी पर जाना …कुछ समझ न आया !

तभी श्याम सुन्दर ने श्रीजी का हाथ पकड़ा और ………

यहाँ कोई नही हैं ….न कोई सखा न कोई परिकर ….हाँ , मेरी प्यारी ! अब बताओ ।

मुसकुराईं श्रीराधिका जू …..प्यारे ! क्या लीला करनी है मुझ से न छुपाओ ।

सिर झुकाया श्याम सुन्दर ने …..और मौन हो गये ।

पास में जाकर अपने हृदय से लगा लिया श्यामा जू ने ……प्यारे ! कुछ तो बोलो ।

लम्बी श्वास लेकर श्याम सुन्दर ने कहा ….आप तो मेरी आल्हादिनी हो …आपसे कुछ छुपा नही है ….हे राधिके ! आसुरी शक्ति का नाश तो मैं मात्र यहीं संकल्प से भी कर सकता हूँ …किन्तु मेरे अवतार का मुख्य प्रयोजन …श्याम सुन्दर कुछ देर मौन रहकर फिर बोले …”बड़े बड़े योगी, सिद्ध, ज्ञानी जन ….योग तप व्रत आदि कर करके अपने हृदय को शुष्क बना बैठे हैं उनके हृदय में प्रेम की धारा बहाने के लिए मैं अवतार ले रहा हूँ “ हे प्यारी ! जगत में प्रेम ही है सार …किन्तु लोग प्रेम को भूल रहे हैं ….जहां प्रेम की कमी होती है …वहाँ द्वेष ईर्ष्या आदि का प्राबल्य हो जाता है …इन्हीं द्वेष ईर्ष्या आदि की आड़ में आसुरी शक्ति अपना काम करना शुरू कर देती है । श्रीराधारानी ने मुस्कुराकर श्याम सुन्दर को देखा ….श्याम सुन्दर के नेत्रों में करुणा थी , अपार करुणा …..श्रीराधारानी ने दौड़कर अपने हृदय से लगा लिया श्याम सुन्दर को …पर प्यारी ! आपके बिना प्रेम का प्रसार कहाँ सम्भव है ? तो ? श्रीजी ने पूछा । आप को भी चलना होगा । श्रीकिशोरी जी मुसकुराईं …..हाँ हाँ , मैं तो चलूँगी ही ….क्यों की आपके बिना मेरा भी यहाँ कहाँ मन लगेगा ।

तो हम चलें ? श्याम सुन्दर ने श्रीकिशोरी जी के कर को पकड़ा और ……….


पूरे नवद्वीप वासी इस अद्भुत लीला को देखकर गदगद हैं …श्रीराधारानी का अब उन्मुक्त नृत्य होता है …….

कितनी सुन्दर हैं ना श्रीराधारानी ….विष्णुप्रिया आनंदित होकर कान्चना के कान में कहती हैं ।

कान्चना ने मुस्कुराकर कहा ….देखा , तुम्हारे पति सच कह रहे थे …तुम पहचान नही पाईं ना ?

क्या ! विष्णुप्रिया चौंकी …..ये मेरे प्राणेश्वर हैं ? और क्या ? प्रिया ने पीछे मुड़कर शचि देवि की ओर देखा …वो पहचान गयीं थीं ….संकेत में शचिदेवि ने मुस्कुराकर प्रिया को कहा ..हाँ ..ये निमाई तो है । बस अब तो प्रिया के आनन्द का कोई ठिकाना नही है ….वो गदगद होकर देख रही है अपने नाथ को । और इसके नाथ नाच रहे हैं …..दिव्य नृत्य है ये ।

इस तरह भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया जिसका उद्देश्य था विशुद्ध प्रेम का प्रसार ।

संचालक ने पर्दा गिरने के बाद ये वक्तव्य दिया , और श्रीकृष्ण लीला ने यहीं विश्राम ले लिया ।


सुबह के चार बज गये हैं ….लीला की भूरी भूरी प्रशंसा करते हुये और निमाई के प्रेमपूर्ण व्यक्तित्व का माहात्म्य गाते हुये नवद्वीप वासी अपने अपने घर लौट रहे थे ।

तेरे निमाई ! कान्चना पेट पकड़ कर हंस रही है ……पर कुछ भी कह सुन्दर तो लग रहे थे ….नही नही सुन्दर ही नही …..कान्चना कुछ सोचती है….फिर कहती है …अति सुन्दर …इससे ज़्यादा कुछ शब्द मेरे मुख में आ नही रहे । हाय ! क्या पतले पतले गुलाबी अधर …अत्यंत गौर मुख …क्षीण कटी ….हाय ! कान्चना के मुख से ये सब सुनते हुये विष्णुप्रिया बोल पड़ी …अरी चुप हो जा अब । चल …तू अपने घर जा और मैं अपने । कान्चना की हंसी फूटी ….

विष्णुप्रिया ने अपने घर में प्रवेश किया ….शचिदेवि अभी घर पर आई नहीं हैं ।

विष्णुप्रिया ने जैसे ही घर प्रवेश किया …श्रीराधा भेष में निमाई ! अपने प्राणेश्वर को श्रीराधिका के रूप में देखकर विष्णुप्रिया झूम उठी …..निमाई अभी भी श्रीराधा भाव में भावित हैं । वो प्रिया को देखकर बस मुस्कुराये ….और दौड़कर मन्दिर में चले गये …विष्णुप्रिया भी उनके पीछे भागी ….एक विग्रह है …भगवान श्रीकृष्ण का विग्रह …..निमाई विग्रह के पीछे जाकर नयन मूँद देते हैं ……मैं , मैं तुम्हारी श्रीराधा । पहचाना ?

विष्णुप्रिया निमाई के इस रूप को देखकर मुग्ध है ….वो आनन्द से भर गयी है ….कोई घर में है नही ….प्रिया मुस्कुराते हुये दौड़ी …और अपने इस निमाई को हृदय से लगा लिया । निमाई भी श्रीराधा भाव में हैं ….इसलिये वो भी प्रिया को हृदय से लगाये रहे । प्रिया बहुत प्रसन्न है आज ।

शेष कल –

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