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July 8, 2025 9:45 am

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!!”श्रीराधाचरितामृतम्” 38 !!-प्रेम में “मैं” कहाँ ?भाग 3 : Niru Ashra

!!”श्रीराधाचरितामृतम्” 38 !!-प्रेम में “मैं” कहाँ ?भाग 3  : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 38 !!

प्रेम में “मैं” कहाँ ?
भाग 3

श्याम सुन्दर ! ओ श्याम सुन्दर !

हाँ क्या है ?

श्याम सुन्दर ! मेरे केश बिखर गए हैं इन्हें बाँध दो !

श्याम सुन्दर ! ओ ! फिर दूसरी गोपी नें पुकारना शुरू किया ।

मेरे नाचते नाचते पसीनें आरहे हैं……अपनी पीताम्बरी से हवा कर दो !

श्याम सुन्दर उस गोपी को हवा करते हैं ….
..पहली गोपी के बालों को सुलझा देते हैं ।

“मेरे तो पैर दूख रहे हैं……मुझ से नही नाचा जाएगा “

बोलो ! बोलो ! नाचना है क्या मुझे ?

.श्याम सुन्दर से ही पूछती है वो गोपी ।

हाँ …..तुम अच्छा नाचती हो ……..श्याम सुन्दर मुस्कुरा के कहते ।

तो मेरे पैर दवाओ ! गोपी कहती ।

…..मैने मना किया कब, लाओ दवा दूँ पैर ।

“पर मैने तुमसे पहले कहा था……..तो मेरी बेणी पहले गुँथों “

नही …..पहले मैने कहा था ……इसलिये मुझे पँखा करो पहले ।

ये क्या हो रहा था उस रासमण्डप में ! गोपियों का ध्यान अपनें प्रिय श्याम सुन्दर से हट कर अपनें शरीर पर आ टिका था ।

मैं सुन्दर……मैं सुन्दरी ! मेरी सुन्दरता सबसे ज्यादा है….मेरा हाव भाव कृष्ण को लुभाता है…..मेरा गौर वर्ण कृष्ण को मेरी और खींचता है ।

हे वज्रनाभ ! गोपियों में परस्पर ईर्श्या नें भी, अपनी जगह बनानी शुरू कर दी …..हे कृष्ण ! मेरी बात मानों नही तो मैं तुमसे बोलूंगी नहीं ।

हे श्याम ! मेरी बात न मान कर तुम उस गोपी के पास गए …..जाओ अब मैं तुमसे बात ही नही करूंगी …………..

पर हे वज्रनाभ ! गोपियों के इतना कहनें के बाद भी कृष्ण मुस्कुराते हुए किसी के बालों को सुलझा रहे हैं …….किसी को अपनी पीताम्बरी से हवा कर रहे हैं ………किसी गोपी के पैर तक दवा रहे हैं …………।

पर गोपियाँ कितना विवश कर रही थीं कृष्ण को ………….कृष्ण भी मानते रहे कुछ समय तक उनकी बात………पर वो “पूर्णपुरुष” कब तक विवश रहेगा… ………अंतर्ध्यान हो गए ।

हाँ वज्रनाभ ! एकाएक अंतर्ध्यान हो गए कृष्णचन्द्र ।

ओह ! उन बृज कुमारियों नें सोचा भी नही था ……..कि कृष्ण इस तरह उन्हें छोड़ कर चले जायेगें ।

आर्त क्रन्दन गूँज उठा गोपियों का………विलाप कर उठीं सब गोपियाँ…..यमुना , वृक्ष , पक्षी सब इस आर्त नाद में साथ थे ।

हाय ! हमारी जैसी अभागिन और कौन होगी ? अहंकार किया हमनें ?

श्याम सुन्दर को अपनी बाँहों में भरनें के बाद भी हम देह भाव से चिपक गयीं ……….श्याम सुन्दर को देखनें के बाद भी इस तुच्छ देह को देखना …..धिक्कार है हमें ……..धिक्कार है ।

हे वज्रनाभ ! वो पुकार , वो विलाप बड़ा आर्त था ………ओह ।

याद रखें वज्रनाभ ! ये “प्रेम” साधारण मार्ग नही है …….सिर जब तक धड़ पर है तब तक अहंकार है ……..सिर काटकर चरणों में चढाया जाता है प्रियतम के ………तब “महारास” होता है ।

यानि अहंकार चढ़ाना पड़ता है ……”मैं मैं मैं” को “तू तू तू” में बदलना पड़ता है ……और ये हृदय से होना चाहिये………सहज ।

क्रमशः….
शेष चरित्र कल –

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