Explore

Search

July 8, 2025 8:58 am

लेटेस्ट न्यूज़
Advertisements

उद्धव गोपी संवाद – भ्रमर गीत ४१ एवं ४२

उद्धव गोपी संवाद – भ्रमर गीत ४१ एवं ४२

उद्धव गोपी संवाद
( भ्रमर गीत)
४१ एवं ४२

कोहू कहै अहौ,कहा दोष सिसुपाल नरेसै।
ब्याह करन को गयौ,नृपति भीष्म के देसैं।।
दल बल जोरि बरात कों,ठाड़ौ हो छवि बाढ़ि।
इन्ह छल करि दुलही हरी,छुधित ग्रास मुख काढ़ि।।
आपने स्वारथी।।
भावार्थ:-
कोई कहे कि अरे राजा शिशुपाल का क्या दोष था,वह तो राजा भीष्मक के यहां ब्याह करने को गये थे ‌। उनकी छवि उस समय बहुत सुंदर लग रही थी जब वे दल बल के साथ बरात लेकर पहुंचे थे।
इन्होंने (कृष्ण ने) छल करके दुल्हन को हर लिया,ऐसे लगा जैसे भूखे के मुंह से ग्रास छीन लिया हो। सखी,ऐसे स्वार्थी हैं ये।

या बिधि भर आवेस,परम प्रेम हि अनुरागी।
और रूप,पिय चरित तहां सब देखन लागीं।।
रोंम रोंम रह्यौ व्यापि कें,मोहन रूप अनूप।
तिन्ह के भूत भविष्य कौ,जानें कोंन सरूप।।
रंगीली प्रेम की।।
भावार्थ:-
इतना कहकर गोपियां आवेश में भर गई और परम प्रेम के अनुराग में अपने पिय को रुप और चरित वहां सब देखने लगीं।मोहन का अनूठा रूप देखकर रोमांचित हो गई,पूरा तन मन रोम रोम में भर गया,ऐसे भगवान के स्वरूप को भूत व भविष्य में भी कौन जान सकता है,ऐसी प्रेम की रंगीली प्रेम से ओतप्रोत भरी गोपियों की दशा हो गई।
🙏🙏🙏

admin
Author: admin

Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877

Leave a Comment

Advertisement
Advertisements
लाइव क्रिकेट स्कोर
कोरोना अपडेट
पंचांग
Advertisements