Explore

Search

July 7, 2025 6:25 am

लेटेस्ट न्यूज़

श्री जगन्नाथ मंदिर सेवा संस्थान दुनेठा दमण ने जगन्नाथ भगवान की रथ यात्रा दुनेठा मंदिर से गुंडीचा मंदिर अमर कॉम्प्लेक्स तक किया था यात्रा 27 जुन को शुरु हुई थी, 5 जुलाई तक गुंडीचा मंदिर मे पुजा अर्चना तथा भजन कीर्तन होते रहे यात्रा की शुरुआत से लेकर सभी भक्तजनों ने सहयोग दिया था संस्थान के मुख्या श्रीमति अंजलि नंदा के मार्गदर्शन से सम्पन्न हुआ

Advertisements

!! परम वियोगिनी – श्रीविष्णुप्रिया !!- अष्टात्रिंशत् अध्याय : Niru Ashra

!! परम वियोगिनी – श्रीविष्णुप्रिया !!- अष्टात्रिंशत् अध्याय : Niru Ashra

!! परम वियोगिनी – श्रीविष्णुप्रिया !!

( अष्टात्रिंशत् अध्याय : )

गतांक से आगे –

पौष का महीना चल रहा है …शीतलहर है …गंगा का जल इन दिनों कुछ ज़्यादा ही ठण्डा है । इसलिये लोग अरुणोदय के बाद ही आते हैं गंगा स्नान के लिये । हाँ जो तपस्वी और साधक श्रेणी के है उनको तो शीत और ग्रीष्म से विशेष फर्क पड़ता नही ।

निमाई को समझा बुझाकर ले तो आईं शचि देवि घर …किन्तु वास्तविक बात विष्णुप्रिया को भी नही बताई …विष्णुप्रिया को लग रहा है कि माँ के समझाने पर निमाई मान गये हैं अब वो सन्यास नही लेंगे , यही बात शचिदेवि ने प्रिया को भी कहा ….प्रिया झूम उठी है ….उसने अपनी सखी कान्चना को बुलाया ….और कान्चना से कहा …मेरा शृंगार कर …मुझे सजा दे ….मेरी वेणी गूँथ दे ….मुझे अपने प्राण बल्लभ के लायक बना दे । कान्चना ने भी जब अपनी सखी को इस तरह आनंदित देखा तो पूछ लिया …..प्रिया ! क्या हुआ ? कान्चना को अपने हृदय से लगाते हुए प्रिया ने कहा …अब मेरे ‘प्राण’ सन्यास नही लेंगे । कान्चना को अपनी सखी की मुस्कुराहट से प्रयोजन था ….ये भी इन दिनों बहुत दुखी रहती थी …क्यों की इसकी सखी विष्णुप्रिया दुखी थी ।

आज दोनों सखियों ने जी भर कर बातें कीं …कान्चना ने सजाया प्रिया को …कभी शरमा रही है प्रिया कभी इतरा रही है ….कान्चना उसे छेड़ती भी है ….तो वो संकेत में कहती है …बाहर सासु माँ हैं , चुप ….फिर हंसते हुए दोनों सखियाँ चुप हो जाती हैं । ये सब शचि देवि देख रही हैं …उनका हृदय जल रहा है ….वो अकेले में अश्रु बहाती हैं ….कि उनका पुत्र निमाई निष्ठुर है …प्रिया ! तुम को क्या वो नवद्वीप को ही छोड़कर चला जायेगा । पर वो ये बात किसी को नही कहतीं ….इन दिनों शचिदेवि का घर खुश है ….प्रिया प्रसन्न रहती है ..निमाई पहले की तरह ही हो गये हैं ….कभी विष्णुप्रिया को छेड़ते हैं …कभी बालक के समान व्यवहार करते हुए शचि देवि की गोद में बैठ जाते हैं ….विष्णुप्रिया ये सब देखकर हंसती है …कभी कभी उसकी खिलखिलाहट पूरे घर में गूंजती है …तो ये शरमा जाती है । पर शचिदेवि के मुखमण्डल में कोई मुस्कुराहट नही है । निमाई चाहे कुछ भी करे …पर शचिदेवि का हृदय तो रो ही रहा है ।

इस तरह पौष का महीना बीत गया ।

निमाई ! देख सब कितने खुश हैं …बेचारी विष्णुप्रिया कितनी खिलखिलाती है इन दिनों …बेटा ! सन्यास मत ले । निमाई शचिदेवि को देखते हैं …उनके नेत्र भी सजल हो गये हैं ।

कोई उत्तर नही देते निमाई ……कब जायेगा ? कलेजे में पत्थर रखकर पूछती हैं ।

माघ संक्रान्ति …….निमाई इतना बोलकर चले जाते हैं ।

माँ ! आप रो क्यों रही हो ? विष्णुप्रिया शचिदेवि को रोता देखकर पूछती है ।

बस …..निमाई के बड़े भाई की याद आगयी ….इतना कहकर वो भी गृहकार्य में लग जाती हैं ।


उत्तरायण लग गया है …आज संक्रान्ति है …..शुभ दिन है ….गंगा स्नान करने वालों की भीड़ है …लोग दान भी खूब कर रहे हैं । आज अचम्भा हो गया …नवद्वीप वासियों ने इस सुखद स्वरूप युगल का दर्शन किया । विष्णुप्रिया के साथ गंगा स्नान करने निमाई आये हैं । दोनों ने साथ गंगा स्नान किया …दान दिये ….अपने पति के साथ चलते हुए विष्णुप्रिया इतरा रही है …भक्त जन निमाई को अपने प्रभु के रूप में देखते हैं ….आज ये झाँकी देखकर वो सब भी आनन्द सिन्धु में डूब गये …..निमाई अपनी अर्धांगिनी के साथ दान पुण्य करते हुए अपने घर में आगये थे । पर घर आकर जैसे ही अपनी माता शचि देवि के चरणों में दोनों ने प्रणाम किया ….रो गयी शचि देवि …हिलकियों से रो उठी । विष्णुप्रिया को लगा बहुत दिनों के बाद सुखद क्षण आये इसलिये माता को रोना आरहा है । निमाई कुछ देर ठहर गये …फिर बोले …मैं अभी आया ।

शचिदेवि डर गयीं …..निमाई कहीं इसी समय तो …..ये सोचकर वो बाहर गयीं ….एक माली से माला गजरा कुछ मालती के पुष्प लेकर निमाई लौटे । ये क्या है निमाई ! शचि देवि पूछ रही हैं ….हंसते हुए निमाई उत्तर देते हैं ….पुष्प हैं माँ ! इतना कहकर निमाई भीतर चले जाते हैं ।

खिचड़ी बनी है आज घर में …..संक्रान्ति जो है …निमाई ने बड़े प्रेम से खिचड़ी प्रसाद ग्रहण किया ….और हस्तप्रक्षालन करने के बाद ….वो फिर गंगा घाट चले गये ।


रात्रि में निमाई ने थोड़े ही दाल भात खाये थे ……विष्णुप्रिया जब परोस रही थी तब प्रिया को देखते हुए वो कह रहे थे ….तुम जिसे छू लो वो सामान्य भोजन भी अमृत बन जाता है ।

विष्णुप्रिया निमाई को संकेत करती है ….ज़्यादा मत बोलिये …..माता सुन रही हैं ….निमाई समझ जाते हैं और हंसते हैं ….विष्णुप्रिया के आनन्द का वर्णन इस समय नही किया जा सकता ।

भोजन करने के बाद निमाई शयन कक्ष में चले जाते हैं …….

विष्णुप्रिया माता को भोजन देकर और स्वयं प्रसाद ग्रहण करके ….माता शचि देवि को सुलाकर …..हाथ में पान का डिब्बा लिए …प्रसन्न मन से अपने प्राणबल्लभ के पास आती हैं ।

जागे हैं निमाई ……विष्णुप्रिया को देखते ही उठकर बैठ जाते हैं ……वो आज कुछ ज़्यादा ही चंचल दिखाई दे रहे हैं ……पुष्प-माला की टोकरी अपने सामने रखते हैं ….ये क्या है ? चहकते हुये प्रिया पूछती है …..मैं तुम्हारा शृंगार करूँगा ….निमाई कहते हैं । नही , टोकरी को लेकर प्रिया कहती है …मैं आपका शृंगार करूँगी । तुम्हें आता है ? विष्णुप्रिया नज़र मटकाते हुए कहती है …स्त्री हूँ सजना सजाना मुझे नही आयेगा ? ठीक है …तो पहले तुम मुझे सजा दो ….निमाई मुस्कुराते हुए बैठ गये । विष्णुप्रिया अपने प्राणधन को निहारती है …उसका रोम रोम प्रफुल्लित है ….वो देखते देखते आनन्द की अतिरेकता के कारण हंसती है …खूब हंसती है ।

अब सजाओ भी …..निमाई कहते हैं ।

विष्णुप्रिया सजाती है ….उन घुंघराले केशों को बिखेर देती है …फिर संवारती है ….उस गौरांग देह में केसर आदि लगाती है …इत्र फुलेल लगा कर वो उसी सुगन्ध में खो जाती है ।

बस , हो गया ? तुम स्त्री स्त्री कहकर अपनी महिमा गा रहीं थीं …पर सजाना नही आया …अब देखो मैं कैसे सजाता हूँ तुम्हें …..ये कहकर निमाई ने प्रेम से विष्णुप्रिया को देखा …वो शरमा गयी …..नज़रे झुका ली उसने ….निमाई ने प्रिया के बंधे केश खोल दिए …..कंघी से केशों को सुलझाने लगे …अद्भुत जूड़ा बना दिया ….फिर उसमें एक मालती का गजरा लगा दिया ।

बड़े बड़े नयनों में काजल खींच दी …..मस्तक में लाल बिन्दी ….अधरों में लाली ….माँग में सिन्दूर ……वक्ष में केसर …..विष्णुप्रिया निमाई के हृदय से लग गयी ….चूम लिया मुख अपनी प्रिया का निमाई ने ………..

शियार रो रहे हैं ……..ये क्या ! विष्णुप्रिया के कानों में शूल की तरह चुभ रहे हैं ।

स्वान के एक साथ रोने की आवाज ….ये क्या हो रहा है ….विष्णुप्रिया निमाई से पूछती है ।

रो रहे हैं बेचारे …..अब क्या उन्हें रोने भी नही दोगे ? निमाई सहजता में लेते हैं ।

फिर शियार और स्वान एक साथ रुदन ……नाथ ! ये अपशकुन है ।

निमाई कुछ नही बोलते …..बंधे हुए जूड़े को निमाई खोल रहे हैं …..बिल्ली बोल रही है …..एकाएक विष्णुप्रिया का दाहिना अंग फड़कने लगा है । ऐसे प्रसंग में अपशकुन की चर्चा करते ही रहना उचित नही है …ऐसा जानकर विष्णुप्रिया कुछ नही बोलती है ।

पर स्वान का रुदन …शियार का रुदन …….ओह ! अब असह्य हो रहा है ।

भूखे होंगे स्वान ….या कोई कष्ट में होंगे …..जंगल है …उसमें पशु रहते हैं …अब वो कभी रोते हैं कभी हंसते हैं …..इसमें शकुन अपशकुन की चर्चा व्यर्थ है । इतना कहकर विष्णुप्रिया के मुख को चूम कर निमाई सो गये ….विष्णुप्रिया भी कुछ देर तक अपने दाहिने हाथ को सहलाती रही …फिर अपने प्राणबल्लभ के साथ सो गयी ।


अर्धरात्रि के समय निमाई उठे …निष्ठुर निमाई ने प्रिया को देखा गहरी नींद में थी वो ….मुख में मुस्कुराहट अभी भी है ….धीरे से उसके हाथ को अपने से हटाया ….फिर पर्यंक से नीचे उतरे …..प्रिया को एक बार देखा …बड़े ध्यान से देखा ….पास में जाकर कपोल में चुम्बन किया ….फिर ये बाहर आगये ….माता शचि देवि आज आँगन में ही सो रहीं थीं …उन्हें पता था कि निमाई आज गृहत्याग करेगा …..इसलिये वो बाहर ही थीं …..किंतु वृद्ध देह और शारीरिक थकान के कारण शचिदेवि भी सो गयीं थीं । निमाई ने देखा अपनी माता को …नयन भर आये ….चरणों में अपना मस्तक रख दिया मन ही मन प्रणाम करके ….वो बाहर आये …पूरा नवद्वीप सो रहा है …..अपने घर को साष्टांग प्रणाम किया ….फिर दो बार ताली बजाते हुए निमाई चले गए ….चले गए अपनी विष्णुप्रिया को छोड़कर …चले गये अपनी माता को छोड़ कर …अपने घर को …। उफ़ !

शेष कल –

admin
Author: admin

Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877

Leave a Comment

Advertisement
Advertisements
लाइव क्रिकेट स्कोर
कोरोना अपडेट
पंचांग
Advertisements