!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 63 !!
पतंग तो जलता है, सखी ! दीपक भी तो जलता है
भाग 1
हे वज्रनाभ ! “उद्धव”…….हाँ ये कृष्ण के बड़े प्रिय हैं ……और हाँ बहुत बड़े विद्वान भी हैं …………क्यों न हों विद्वान, देवगुरु बृहस्पति नें इन्हें अपना शिष्य बनाकर शिक्षा जो दी है ………ज्ञानी हैं …….नही नही ज्ञानियों में श्रेष्ठतम हैं …….और बुद्धिमानों में उत्तमोत्तम ।
हे वज्रनाभ ! ये मथुरा में मिले थे कृष्ण को ……. कृष्ण को ये बड़े प्रिय लगे …….तो सखा ही बन गए …….सखा भी मात्र सखा नही …..”प्रिय सखा” …..जिससे अपनें हृदय की छुपी बातें भी कह सकें ।
उज्जैन से लौट आये हैं कृष्ण……..विद्याध्यन करनें गए थे उज्जैन ।
आज पूर्णिमा है ……….प्रातः ही सब मथुरा के लोग यमुना स्नान को चल दिए थे ………..
देवकी नें रोहिणी को भेजा था कृष्ण के महल में……..रोहिणी ! जाकर कृष्ण को कहो ना ……कि हम लोगों के साथ यमुना स्नान को वो चले !
रोहिणी गयीं………उन्हें लग रहा था कि कृष्ण अभी सो ही रहे होंगें क्यों की वृन्दावन में देर से ही उठते थे …….पर ये क्या !
कृष्ण तो बैठे हैं ………..सुखासन से ……..आँखें बन्द हैं ………….
कृष्ण ! कृष्ण !
आवाज दी रोहिणी नें ।
उठे ध्यान से , उठे और प्रणाम किया माँ रोहिणी को ।
कृष्ण ! तुम कालिन्दी स्नान को चलोगे ! चलो ! आर्यपुत्र वसुदेव और देवकी की इच्छा है कि आज तुम अपनें माता पिता के साथ स्नान करो ।
धीरे से मुस्कुराये कृष्ण …………..
नही माता ! आप लोग जाइए ।
इतना रुखा उत्तर ?
रोहिणी वापस आईँ और मना कर दिया देवकी को ………..
उदास हो देवकी अपनें पति वसुदेव के साथ अन्य रोहिणी इत्यादि सब थे ………गए स्नान करनें के लिये यमुना में ।
उद्धव ! उद्धव !
कृष्ण नें उद्धव को देखा झरोखे से….तो जोर से आवाज लगानें लगे ।
उद्धव प्रसन्नता से भरे कृष्ण के पास आये ………बड़ी श्रद्धा से चरणों में प्रणाम किया ………आज्ञा गोविन्द ! उद्धव नें कहा ।
यमुना स्नान को चलोगे ?
पर आपनें नें माता रोहिणी को मना कर दिया ……माता देवकी भी कितनी दुःखी हो गयीं ……….उद्धव नें कहा था ।
छोडो ना उद्धव ! दुःखी होना क्या है मथुरा वाले क्या जानें ?
सजन नयन हो गए थे कृष्ण के ये कहते हुए ।
चलो ! कालिन्दी के किनारे बैठेगें ……..नही नही स्नान मात्र करके आयेंगें नही……बैठेगें……..मौन होकर बैठेगें…….उद्धव ! चलो ना ! कृष्ण नें उद्धव को कहा…….और दोनों ही यमुना की ओर चल पड़े थे ।
आर्यपुत्र ! कृष्ण ………….देवकी नें वसुदेव को दिखाया ।
रोहिणी और वसुदेव नें भी देखा……..मेरे साथ नही आया मेरा पुत्र …..उद्धव के साथ आगया……..मैने उसे बुलवाया भी था ……मेरी कितनी इच्छा थी कि हम सब परिवार एक साथ स्नान करते ……उज्जैन से आनें की प्रतीक्षा ही करती रही थी मैं ……..ताकि अपनें पुत्र के साथ समय बिताऊँ ………इतना कहते हुए रो गयीं देवकी ।
क्रमशः….
शेष चरित्र कल –
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