{ “कृष्ण का प्रेम वैचित्र अवस्था” – उद्धव प्रसंग }
भाग-3
गच्छोद्धव ब्रजम् सौम्य…
(श्रीमद्भागवत)
मेरे गुरु बृहस्पति जी ने मुझ से कहा था… कृष्ण पूर्णब्रह्म हैं ।
इसीलिए तो मेरा उस देवलोक में भी इतना सम्मान हुआ…
मैं ही तो था उस देवलोक में विद्याध्यन के लिए पहुँचा एक मानव ।
पर मेरा कितना सम्मान किया… समस्त देवों ने ।
और तो और… स्वयं मेरे गुरुदेव बृहस्पति ने… अपने आसन से उठकर मुझे हृदय से लगा लिया था ।
कई दिनों के बाद एकान्त पाकर मैंने अपने गुरु बृहस्पति से जब इसके बारे में पूछा… तो उनका उत्तर यही था… परब्रह्म श्री कृष्ण तुम्हारे मित्र हैं… और उद्धव ! मेरा भी यह परमसौभाग्य है कि पूर्णपुरुषोत्तम श्री कृष्ण के प्रिय मित्र का गुरु… मैं बन रहा हूँ ।
मेरे गुरु बृहस्पति ने मुझ से ये सब कहा था… और मेरे गुरुदेव की वाणी मिथ्या कैसे हो सकती है ।
पर पूर्णब्रह्म आज बिलख रहा है !…पुरुषोत्तम आज नयनों से अविरल अश्रु बहा रहा है !
और वो भी गवाँर गोपियों के लिये ?
उद्धव कृष्ण के चरणों में बैठे हैं… रात्रि हो गयी है ।
यमुना से कृष्ण का हाथ पकड़ कर… सम्भालते हुए लेकर आये हैं उद्धव ।
पर आते ही बिना कुछ भोजन किये कृष्ण सो गए थे ।
कुछ देर तक तो उद्धव चरण दबाते रहे… पर नींद में खलल न पड़े… ऐसा सोचकर… चादर ओढ़ा कर वहीं बैठे रहे थे उद्धव ।
मुखारविन्द देखते रहे कृष्ण का… उद्धव ।
आत्माराम आप्तकाम परब्रह्म पूर्णपुरुषोत्तम…श्री कृष्ण इतने विह्वल !
गोपियों के लिये… गवाँर गोपियों के लिए ?
नही… कल सन्ध्या में यमुना के किनारे मैंने गोपियों के लिए “गवाँर” शब्द का प्रयोग किया… तो कृष्ण रुष्ट हो गए थे ।
अनपढ़ कह सकते हो उद्धव !… पर गवाँर मत कहो…
कितनी आत्मीयता से कहा था कृष्ण ने… कितनी आत्मीयता है उन गोपियों के प्रति कृष्ण की ।
क्या है ऐसा उन गोपियों में ?
उद्धव यही सोचते हुये… चरणों में बैठे हैं… अर्धरात्रि हो गयी है ।
मैया !
यही पुकारा था… एकाएक नींद में ही कृष्ण ने यही पुकार लगाई थी ।
कोई स्वप्न देख लिया शायद कृष्ण ने… उद्धव ने मुखारविन्द पोंछा कृष्ण का… पसीने जो आगये थे… उन नीलमणी कृष्ण के ।
मैया !
इस बार हँसे थे… कृष्ण ।
कन्हैया !
अर्ध रात्रि में चिल्ला उठी थी वृन्दावन में मैया यशोदा ।
अपने अगल बगल टटोला था… हाथों से… पर नही है बगल में कृष्ण तो… उठीं मैया…… कहाँ गया कन्हैया ?
दीया जलाया… अर्धरात्रि में यशोदा ने ।
अरे ! यहाँ तो नही है…
फिर थोड़ी सहज हुयीं… अच्छा ! रात में अपने पिता नन्द के पास जाकर सो जाता है ना !… हाँ… वहीं गया होगा ।
यशोदा गयीं नन्द महाराज के पास ।
अरे ! यहाँ भी नही है कन्हैया तो । नन्द महाराज के पास में जब देखा… नही है वहाँ भी कृष्ण… तो घबड़ा गयीं ।
क्या खोज रही हो यशोदा ?
नन्द बाबा को भी कहाँ नींद है !
अपना कन्हैया कहा गया ?
मेरे पास भी नही है… और आपके पास भी नही है… वैसे इतनी रात्रि को तो वो कहीं जाएगा नही ।
घबड़ा रही हैं यशोदा ।
कहीं कंस के राक्षस तो ? भयभीत है यशोदा ।
अपने आँसुओं को पोंछते हुए… उठकर बैठ गए महाराज नन्द ।
यशोदा बैठो यहाँ… अपने पास बैठाया यशोदा को नन्द ने ।
यशोदा !…वो मथुरा गया है ।
ओह !…यशोदा हँसी… पर हँसी के साथ साथ… उसके नयनों के पनारे भी खुल गए थे ।
हाँ… मैं भी पागल हूँ… मुझे अभी भी इसी जगह वह दिखाई देता है… मेरे कानों में अभी भी… उसकी वही किलकारियाँ गूँजती रहती हैं ।
सुनो ! नन्द जी !…वो आएगा ना ?
बताओ ना ? मेरा कन्हैया फिर आएगा ना ?
इस वृन्दावन में आएगा ना ?
अपनी इस बूढ़ी मैया को देखने आएगा ना ?
उसने कहा था… वो आएगा…वो आएगा… वो आएगा ।
यशोदा मूर्छित हो गयीं थीं ये कहते हुए ।
मैया !
नींद में जोर से बोलते हुए कृष्ण एकाएक उठ गए ।
अपने अगल बगल में देखा… मैया ! पर यहाँ तो कोई मैया नही है… आँखों को मलते हुए… कृष्ण ने जब ध्यान से सामने देखा तो उद्धव थे ।
कौन ? मनसुख ?
नही… मैं उद्धव ।
ओह ! मैं मथुरा में हूँ… कृष्ण के आँसू फिर बह चले थे ।
कुछ देर कृष्ण ऐसे ही बैठे रहे…
फिर बोले – उद्धव ! तुम जाओ ना… मेरे वृन्दावन जाओ ना !
बोलो… जाओगे ना ?
हाँ…नाथ ! आपकी हर आज्ञा शिरोधार्य है ।
उद्धव ने कहा ।
सुनो ! तुम जाकर मेरे माता पिता को समझाना… उनको कहना क्यों याद करते हो !
और मेरी गोपियों को भी समझाना… उनको समझाना ।
और उद्धव ! अपने दोनों हाथों से उद्धव का बायां हाथ पकड़ कर कृष्ण ने दबाया था । समझाना… कहना – वो क्यों मुझे याद करती हैं… ? कहना – उनका कन्हैया तो उनको बिलकुल याद नही करता… कृष्ण ने जैसे ही ये कहा… उद्धव ने कृष्ण की आँखों में देखा… नजरें झुका ली थी कृष्ण ने ।
क्या सच में आप याद नही करते वृन्दावन को… और वहाँ के वासियों को ?
कृष्ण उद्धव के गले लग गए… और हिलकियों से रो पड़े… नही करता मैं उन्हें याद… बिलकुल नही करता ।
फिर ये सब क्या है भगवन् ?
उद्धव ने गम्भीर होकर पूछा ।
आप रो रहे हैं ?
आपके नेत्रों में अश्रु ?
नाथ ! ये सब तो झूठ है… मिथ्या है… मिलन वियोग सब मिथ्या है ।
फिर ये सब आँसू क्यों बहाना ? उद्धव ने पूछा कृष्ण से ।
हाँ… हाँ… बहुत बढ़िया उद्धव ! बस… यही बात उनको जाकर समझाओ… कृष्ण ने उद्धव के कन्धे में हाथ रखते हुए कहा ।
तुम बहुत अच्छा बोलते हो… उद्धव ! तुम तो बृहस्पति के शिष्य हो ना… ज्ञानियों में सर्वश्रेष्ठ है मेरा उद्धव… तुम जो जो मुझे कह रहे हो ना… ये सब उनको जाकर समझाना… उन वृन्दावन के लोगों को ।
कृष्ण बोले जा रहे हैं… ।
मेरी “राधा” को भी कहना…
पर इतना कहते हुए कृष्ण रुक गए… ।
क्या कहोगे मेरी राधा से ?
उसे तो कोई गिलाशिकवा ही नही है मुझ से ।
मैं जब वृन्दावन से चला था ना… तो मैंने उससे कहा… मुझे जाना पड़ेगा राधे ! मथुरा ।
कुछ नही बोली थी वो… उद्धव ! मैंने उसे झकझोरा… उसे कहा मैंने… राधे ! कुछ तो बोलो ।
तब बड़ी मुश्किल से इतना ही बोली थी… प्यारे ! तुम्हारी ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी है… मेरी चिन्ता मत करो… जाओ ! ।
तुम आओगी मथुरा ?
मैंने राधा से पूछा था उद्धव ।
तब राधा ने कहा था… नही आऊँगी मैं मथुरा ।
क्यों ? कृष्ण ने आश्चर्य से पूछा ।
मेरे लिए मेरा तुम्हारा प्रेम ही सब कुछ है… मथुरा में तुम्हारा राजसी भेष रहेगा… तुम्हारी राजवी व्यवस्था देखकर… और हम लोग तो वन में रहने वाले हैं… हमारा प्रेम तो इसी वृन्दावन में ही पल्लवित और पुष्पित हुआ है… और यहीं होगा ।
हमारे मथुरा जाने से… रस में कमी आ जायेगी… प्रेम का अभाव खटकेगा ।
नही… बाँसुरी तुम्हारी मथुरा में नही बज सकती… वो तो यहीं वृन्दावन में ही बजेगी प्यारे !
तुम जाओ… हमारा प्रेम स्वार्थ का नही है… निस्वार्थ है ।
तुम जिसमें खुश हो… हम भी उसी में खुश हैं ।
“राधा”
कहते हुये… फिर कृष्ण उद्धव के अंक में गिर पड़े थे ।
उद्धव ! तुम जाओ ना !
जब कुछ होश आया कृष्ण को… तब कृष्ण ने उद्धव से फिर कहा ।
उपदेश करना वृन्दावन के लोगों को… तुम तो सब जानते हो ना !
उनको समझाना… उद्धव ! मैं इतना बिलख रहा हूँ… तो इसका कारण ही ये है कि… वो लोग तो दिन रात मेरी याद में तड़फ़ रहे होंगे… उनको अगर मेरी याद नही आती… तो मुझे भी नही आती उद्धव ।
मेरी आज ये जो स्थिति है… इससे कहीं ज्यादा प्रेमावेश की स्थिति उन वृन्दावन के लोगों की होगी ।
वो एक क्षण का वियोग भी नही सह पाते थे… एक क्षण के लिए भी मैं उनकी आँखों से ओझल हो जाता… तो वो लोग तड़फ़ उठते थे ।
अरे ! उद्धव ! वो गोपियाँ… वो बाबरी गोपियाँ ।
जब मुझे देखती थीं… और देखते देखते उनके पलक गिरते थे ।
तो वो बाबरी गोपियाँ अपने पलकों को काटने के लिए तैयार हो जातीं ।
इतना विलक्षण प्रेम है उनका ।
उद्धव ! तुम जाओ । कृष्ण ने उद्धव से फिर कहा ।
पर मेरा वैदुष्यपूर्ण सम्वाद वो समझ पाएंगी ?
उद्धव का अहंकार थोड़ा दिखाई दिया… इस वक्तव्य में ।
विद्वान उसे कहते हैं… जो अनपढ़ को भी अपनी बातें समझा दे ।
तुम समझा सकते हो… उद्धव ! मेरी वो गोपियाँ भी बहुत समझदार हैं… वो सब समझती हैं ।
तुम जाओ… उद्धव ! तुम जाओ ।
कृष्ण ये कहते हुये उद्धव से लिपट गए थे ।
शेष चर्चा कल…
कहा श्री कृष्ण ने उद्धव से, वृन्दावन जरा जाना,
वहाँ की गोपियों को ज्ञान का कुछ तत्व समझाना…
विरह की वेदना में वो सदा बेचैन रहती हैं
तड़फ़ कर आह भरकर के सदा वो यों ही कहती हैं।
!! उद्धव प्रसंग !!
{ “कृष्ण का प्रेम वैचित्र अवस्था” – उद्धव प्रसंग }
भाग-3
गच्छोद्धव ब्रजम् सौम्य…
(श्रीमद्भागवत)
मेरे गुरु बृहस्पति जी ने मुझ से कहा था… कृष्ण पूर्णब्रह्म हैं ।
इसीलिए तो मेरा उस देवलोक में भी इतना सम्मान हुआ…
मैं ही तो था उस देवलोक में विद्याध्यन के लिए पहुँचा एक मानव ।
पर मेरा कितना सम्मान किया… समस्त देवों ने ।
और तो और… स्वयं मेरे गुरुदेव बृहस्पति ने… अपने आसन से उठकर मुझे हृदय से लगा लिया था ।
कई दिनों के बाद एकान्त पाकर मैंने अपने गुरु बृहस्पति से जब इसके बारे में पूछा… तो उनका उत्तर यही था… परब्रह्म श्री कृष्ण तुम्हारे मित्र हैं… और उद्धव ! मेरा भी यह परमसौभाग्य है कि पूर्णपुरुषोत्तम श्री कृष्ण के प्रिय मित्र का गुरु… मैं बन रहा हूँ ।
मेरे गुरु बृहस्पति ने मुझ से ये सब कहा था… और मेरे गुरुदेव की वाणी मिथ्या कैसे हो सकती है ।
पर पूर्णब्रह्म आज बिलख रहा है !…पुरुषोत्तम आज नयनों से अविरल अश्रु बहा रहा है !
और वो भी गवाँर गोपियों के लिये ?
उद्धव कृष्ण के चरणों में बैठे हैं… रात्रि हो गयी है ।
यमुना से कृष्ण का हाथ पकड़ कर… सम्भालते हुए लेकर आये हैं उद्धव ।
पर आते ही बिना कुछ भोजन किये कृष्ण सो गए थे ।
कुछ देर तक तो उद्धव चरण दबाते रहे… पर नींद में खलल न पड़े… ऐसा सोचकर… चादर ओढ़ा कर वहीं बैठे रहे थे उद्धव ।
मुखारविन्द देखते रहे कृष्ण का… उद्धव ।
आत्माराम आप्तकाम परब्रह्म पूर्णपुरुषोत्तम…श्री कृष्ण इतने विह्वल !
गोपियों के लिये… गवाँर गोपियों के लिए ?
नही… कल सन्ध्या में यमुना के किनारे मैंने गोपियों के लिए “गवाँर” शब्द का प्रयोग किया… तो कृष्ण रुष्ट हो गए थे ।
अनपढ़ कह सकते हो उद्धव !… पर गवाँर मत कहो…
कितनी आत्मीयता से कहा था कृष्ण ने… कितनी आत्मीयता है उन गोपियों के प्रति कृष्ण की ।
क्या है ऐसा उन गोपियों में ?
उद्धव यही सोचते हुये… चरणों में बैठे हैं… अर्धरात्रि हो गयी है ।
मैया !
यही पुकारा था… एकाएक नींद में ही कृष्ण ने यही पुकार लगाई थी ।
कोई स्वप्न देख लिया शायद कृष्ण ने… उद्धव ने मुखारविन्द पोंछा कृष्ण का… पसीने जो आगये थे… उन नीलमणी कृष्ण के ।
मैया !
इस बार हँसे थे… कृष्ण ।
कन्हैया !
अर्ध रात्रि में चिल्ला उठी थी वृन्दावन में मैया यशोदा ।
अपने अगल बगल टटोला था… हाथों से… पर नही है बगल में कृष्ण तो… उठीं मैया…… कहाँ गया कन्हैया ?
दीया जलाया… अर्धरात्रि में यशोदा ने ।
अरे ! यहाँ तो नही है…
फिर थोड़ी सहज हुयीं… अच्छा ! रात में अपने पिता नन्द के पास जाकर सो जाता है ना !… हाँ… वहीं गया होगा ।
यशोदा गयीं नन्द महाराज के पास ।
अरे ! यहाँ भी नही है कन्हैया तो । नन्द महाराज के पास में जब देखा… नही है वहाँ भी कृष्ण… तो घबड़ा गयीं ।
क्या खोज रही हो यशोदा ?
नन्द बाबा को भी कहाँ नींद है !
अपना कन्हैया कहा गया ?
मेरे पास भी नही है… और आपके पास भी नही है… वैसे इतनी रात्रि को तो वो कहीं जाएगा नही ।
घबड़ा रही हैं यशोदा ।
कहीं कंस के राक्षस तो ? भयभीत है यशोदा ।
अपने आँसुओं को पोंछते हुए… उठकर बैठ गए महाराज नन्द ।
यशोदा बैठो यहाँ… अपने पास बैठाया यशोदा को नन्द ने ।
यशोदा !…वो मथुरा गया है ।
ओह !…यशोदा हँसी… पर हँसी के साथ साथ… उसके नयनों के पनारे भी खुल गए थे ।
हाँ… मैं भी पागल हूँ… मुझे अभी भी इसी जगह वह दिखाई देता है… मेरे कानों में अभी भी… उसकी वही किलकारियाँ गूँजती रहती हैं ।
सुनो ! नन्द जी !…वो आएगा ना ?
बताओ ना ? मेरा कन्हैया फिर आएगा ना ?
इस वृन्दावन में आएगा ना ?
अपनी इस बूढ़ी मैया को देखने आएगा ना ?
उसने कहा था… वो आएगा…वो आएगा… वो आएगा ।
यशोदा मूर्छित हो गयीं थीं ये कहते हुए ।
मैया !
नींद में जोर से बोलते हुए कृष्ण एकाएक उठ गए ।
अपने अगल बगल में देखा… मैया ! पर यहाँ तो कोई मैया नही है… आँखों को मलते हुए… कृष्ण ने जब ध्यान से सामने देखा तो उद्धव थे ।
कौन ? मनसुख ?
नही… मैं उद्धव ।
ओह ! मैं मथुरा में हूँ… कृष्ण के आँसू फिर बह चले थे ।
कुछ देर कृष्ण ऐसे ही बैठे रहे…
फिर बोले – उद्धव ! तुम जाओ ना… मेरे वृन्दावन जाओ ना !
बोलो… जाओगे ना ?
हाँ…नाथ ! आपकी हर आज्ञा शिरोधार्य है ।
उद्धव ने कहा ।
सुनो ! तुम जाकर मेरे माता पिता को समझाना… उनको कहना क्यों याद करते हो !
और मेरी गोपियों को भी समझाना… उनको समझाना ।
और उद्धव ! अपने दोनों हाथों से उद्धव का बायां हाथ पकड़ कर कृष्ण ने दबाया था । समझाना… कहना – वो क्यों मुझे याद करती हैं… ? कहना – उनका कन्हैया तो उनको बिलकुल याद नही करता… कृष्ण ने जैसे ही ये कहा… उद्धव ने कृष्ण की आँखों में देखा… नजरें झुका ली थी कृष्ण ने ।
क्या सच में आप याद नही करते वृन्दावन को… और वहाँ के वासियों को ?
कृष्ण उद्धव के गले लग गए… और हिलकियों से रो पड़े… नही करता मैं उन्हें याद… बिलकुल नही करता ।
फिर ये सब क्या है भगवन् ?
उद्धव ने गम्भीर होकर पूछा ।
आप रो रहे हैं ?
आपके नेत्रों में अश्रु ?
नाथ ! ये सब तो झूठ है… मिथ्या है… मिलन वियोग सब मिथ्या है ।
फिर ये सब आँसू क्यों बहाना ? उद्धव ने पूछा कृष्ण से ।
हाँ… हाँ… बहुत बढ़िया उद्धव ! बस… यही बात उनको जाकर समझाओ… कृष्ण ने उद्धव के कन्धे में हाथ रखते हुए कहा ।
तुम बहुत अच्छा बोलते हो… उद्धव ! तुम तो बृहस्पति के शिष्य हो ना… ज्ञानियों में सर्वश्रेष्ठ है मेरा उद्धव… तुम जो जो मुझे कह रहे हो ना… ये सब उनको जाकर समझाना… उन वृन्दावन के लोगों को ।
कृष्ण बोले जा रहे हैं… ।
मेरी “राधा” को भी कहना…
पर इतना कहते हुए कृष्ण रुक गए… ।
क्या कहोगे मेरी राधा से ?
उसे तो कोई गिलाशिकवा ही नही है मुझ से ।
मैं जब वृन्दावन से चला था ना… तो मैंने उससे कहा… मुझे जाना पड़ेगा राधे ! मथुरा ।
कुछ नही बोली थी वो… उद्धव ! मैंने उसे झकझोरा… उसे कहा मैंने… राधे ! कुछ तो बोलो ।
तब बड़ी मुश्किल से इतना ही बोली थी… प्यारे ! तुम्हारी ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी है… मेरी चिन्ता मत करो… जाओ ! ।
तुम आओगी मथुरा ?
मैंने राधा से पूछा था उद्धव ।
तब राधा ने कहा था… नही आऊँगी मैं मथुरा ।
क्यों ? कृष्ण ने आश्चर्य से पूछा ।
मेरे लिए मेरा तुम्हारा प्रेम ही सब कुछ है… मथुरा में तुम्हारा राजसी भेष रहेगा… तुम्हारी राजवी व्यवस्था देखकर… और हम लोग तो वन में रहने वाले हैं… हमारा प्रेम तो इसी वृन्दावन में ही पल्लवित और पुष्पित हुआ है… और यहीं होगा ।
हमारे मथुरा जाने से… रस में कमी आ जायेगी… प्रेम का अभाव खटकेगा ।
नही… बाँसुरी तुम्हारी मथुरा में नही बज सकती… वो तो यहीं वृन्दावन में ही बजेगी प्यारे !
तुम जाओ… हमारा प्रेम स्वार्थ का नही है… निस्वार्थ है ।
तुम जिसमें खुश हो… हम भी उसी में खुश हैं ।
“राधा”
कहते हुये… फिर कृष्ण उद्धव के अंक में गिर पड़े थे ।
उद्धव ! तुम जाओ ना !
जब कुछ होश आया कृष्ण को… तब कृष्ण ने उद्धव से फिर कहा ।
उपदेश करना वृन्दावन के लोगों को… तुम तो सब जानते हो ना !
उनको समझाना… उद्धव ! मैं इतना बिलख रहा हूँ… तो इसका कारण ही ये है कि… वो लोग तो दिन रात मेरी याद में तड़फ़ रहे होंगे… उनको अगर मेरी याद नही आती… तो मुझे भी नही आती उद्धव ।
मेरी आज ये जो स्थिति है… इससे कहीं ज्यादा प्रेमावेश की स्थिति उन वृन्दावन के लोगों की होगी ।
वो एक क्षण का वियोग भी नही सह पाते थे… एक क्षण के लिए भी मैं उनकी आँखों से ओझल हो जाता… तो वो लोग तड़फ़ उठते थे ।
अरे ! उद्धव ! वो गोपियाँ… वो बाबरी गोपियाँ ।
जब मुझे देखती थीं… और देखते देखते उनके पलक गिरते थे ।
तो वो बाबरी गोपियाँ अपने पलकों को काटने के लिए तैयार हो जातीं ।
इतना विलक्षण प्रेम है उनका ।
उद्धव ! तुम जाओ । कृष्ण ने उद्धव से फिर कहा ।
पर मेरा वैदुष्यपूर्ण सम्वाद वो समझ पाएंगी ?
उद्धव का अहंकार थोड़ा दिखाई दिया… इस वक्तव्य में ।
विद्वान उसे कहते हैं… जो अनपढ़ को भी अपनी बातें समझा दे ।
तुम समझा सकते हो… उद्धव ! मेरी वो गोपियाँ भी बहुत समझदार हैं… वो सब समझती हैं ।
तुम जाओ… उद्धव ! तुम जाओ ।
कृष्ण ये कहते हुये उद्धव से लिपट गए थे ।
शेष चर्चा कल…
कहा श्री कृष्ण ने उद्धव से, वृन्दावन जरा जाना,
वहाँ की गोपियों को ज्ञान का कुछ तत्व समझाना…
विरह की वेदना में वो सदा बेचैन रहती हैं
तड़फ़ कर आह भरकर के सदा वो यों ही कहती हैं।
Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877