!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 72 !!
नन्द यशोदा को उद्धव का ज्ञानोपदेश
भाग 1
अपनें आपको दृढ किया उद्धव नें ………….
नही …..मुझे इनके विरह को कम करना ही होगा ।
हे नन्दराज जी ! आप जिसे कृष्ण मान रहे हैं …….आप जिसे अपना पुत्र मान रहे हैं ……..वो आपका पुत्र नही है !
ओह ! उद्धव ये क्या बोल रहे थे…….यशोदा मैया गम्भीर हो गयीं नन्दराय गम्भीर हो गए ….चकित भाव से उद्धव कि ओर देखनें लगे थे ।
आप लोगों को कृष्णतत्व का सम्यक ज्ञान नही है इसलिये आप ऐसा मानते हैं ………….आपको पता है ! श्रीकृष्ण ब्रह्म हैं ……..वो मायातीत हैं क्या आपको पता है ? निर्लेप , निर्विकार और उनका न कोई प्रिय है न अप्रिय ……..हँसे उद्धव ………जो पूर्णकाम हों उनका कौन अपना कौन पराया ………।
आप मान बैठे हैं अपनें आपको कृष्ण के माता पिता..पर ये सत्य नही है ।
ये सम्बन्ध माया के द्वारा संचालित है……और जो मायातीत हो उसके माता पिता कैसे होंगें ?
स्तब्ध हैं नन्द यशोदा , और सुन रहे हैं ……….
याद रखिये नन्द राय जी – उनके न कोई माता पिता हैं न पत्नी न पुत्रादि ……क्यों कि वे सब कारणों से परे हैं ………
प्राकृत – जीव के देह और देही में अंतर होता है ……पर अप्राकृत कृष्ण के देह और देही में कुछ भी भेद नही है ………..
ओह ! अपना पूरा ज्ञान ही बघारनें लग गए थे उद्धव तो ……..
पर किनके आगे ? उन प्रेम रस से भींगें वात्सल्य सिन्धु में मग्न माता पिता के आगे ..?
हे नन्दराय ! ये सब लीला है
…..और उनकी लीला चलती ही रहती है ।
क्रमशः …
शेष चरित्र कल …
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