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November 21, 2024 5:07 pm

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!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!-( ललित नागर – “मोहन मदन त्रिभंगी” ): Niru Ashra

!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!-( ललित नागर – “मोहन मदन त्रिभंगी” ): Niru Ashra

!! राधा बाग में – “श्रीहित चौरासी” !!

( ललित नागर – “मोहन मदन त्रिभंगी” )

गतांक से आगे –

चलिए प्रेम की बात करते हैं ।

करने लायक बात प्रेम ही है, हमारे रसिक संत कहते हैं – प्रेम वो है जो अतीर्थ को भी तीर्थ बना दे । प्रेम वो है जो महाअपवित्र को भी महापवित्र बना दे । तुम को तार दे ..तुम्हारे कुल को तार दे …वो है प्रेम । प्रेम इस जगत की सबसे पवित्र वस्तु है ।

कल जिस युवक की बात हो रही थी ….वो चंडीगढ़ का है ….उसको जाना था कल ही ….आया था टूर के लिए श्रीवृन्दावन बरसाना गोवर्धन । पर बरसाना के राधा बाग में जब उसने देखा सत्संग चल रहा है ….तो वहीं बैठ गया और खूब प्रश्नोत्तरी करता रहा । वो अपने आपको बहुत बड़ा तार्किक समझता था …किन्तु बाबा तो बाबा हैं …..उन्होंने प्रेम मार्ग का वर्णन किया और श्रीहित चौरासी जी के अद्भुत गायन के साथ निकुँज का ध्यान भी लगवा दिया , उस युवक में पूर्ण परिवर्तन आगया था । वो नही गया चण्डीगढ़ । अपने साथियों को भेज दिया और बोला …पाँच सात दिन में , मैं भी पहुँच जाऊँगा …और तुम लोग भी तो आगरा और दिल्ली घूमोगे ! तुम घूमो …मैं पहुँचता हूँ । इस युवक पर कृपा हो गयी थी श्रीजी की , ये सबको दिखाई दे रहा था ।

आज ये कह रहा था …भोग लगाने के लिए सेब काट कर आपको दूँ ? बाबा हंसते हैं कहते हैं …हम लोग “काटना” नही कहते …”अमनिया” करना कहते हैं ….क्यों ? वो पूछता है ….बाबा कहते हैं ….हिंसा के शब्द भी हमारे भीतर हिंसा को प्रकट कर सकते हैं …इसलिये । उस युवक को बड़ा आश्चर्य लगा । अहिंसा की इतनी सूक्ष्मता ।

बाबा कहते हैं – ये मार्ग प्रेम का है …प्रेम के मार्ग में हृदय का कठोर होना अनुचित है …इसमें तो हृदय को कोमल रखो …..मन वचन कर्म ….तीनों प्रकार से हृदय में कठोरता न आये इसका ख्याल रखो ।

इतना कहकर बाबा ने उस लड़के को श्रीहित चौरासी दे दी ….रसिक जन देख रहे हैं सब समझ गए हैं कि बाबा ने इसको स्वीकार कर लिया है ।

वो हित चौरासी जी लेकर पूछता है …..कौन सा पद है आज ?

बाबा पूछते हैं – कल कौन सी पद संख्या थी ?

युवक उत्तर देता है – 62 , तो बाबा भी अंग्रेज़ी में कहते हैं आज 63, फिर हंसते हैं बाबा ।

मैं भी गाऊँ ? बाबा गौरांगी से कहते हैं …इसे गाने दो …गौरांगी मुस्कुराती है …ये बाबा की आदत है ….बाबा नये को प्रेरित करते हैं गायन के लिये …ताकि उन्हें इस रस के स्वाद का पता चले ।

मधुर नही है .इसका कण्ठ , थोड़ा बेसुरा भी है …फिर भी बाबा इसी से गवाते हैं …एक दो लोगों ने कहा ….कि गौरांगी गाएगी …पर गौरांगी ने स्वयं कहा …नही ये बालक गायेगा ….गौरांगी बाबा की करुणा को समझती है ।


                  मोहन मदन त्रिभंगी, मोहन मुनि मन रंगी ।।

        मोहन मुनि सघन प्रगट परमानन्द ,   गुन गम्भीर गुपाला ।
        शीश किरीट श्रवन मनि कुंडल , उर मंडित वनमाला ।।
       पीताम्बर तन धातु विचित्रित , कल किंकिणी कटि चंगी ।
        नख मणि तरनि चरन सरसीरूह , मोहन मदन त्रिभंगी ।।

                 मोहन बेनु बजावैं , इहि रव नारि बुलावै ।

          आईं बृजनारि सुनत वंशीरव , गृहपति बन्धु बिसारे ।
         दरसन मदन गोपाल मनोहर , मनसिज ताप निवारे ।।
         हर्षित वदन बंक अवलोकनि , सरस मधुर धुनि गावै ।
            मधुमय श्याम समान अधर धरैं, मोहन बेनु बजावै ।।

          रास रच्यौ वन माहीं , विमल कलप तरु छाँहि ।।

       विमल कलप तरु तीर सुपेशल , शरद रैंन वर चंदा ।
       शीतल मन्द सुगन्ध पवन बहै , तहाँ खेलत नन्दनन्दा ।।
      अद्भुत ताल मृदंग मनोहर , किंकिनी शब्द कराँहीं ।
     जमुना पुलिन रसिक रस सागर , रास रच्यौ वन माहीं ।।

          देखत मधुकर केली  , मोहे खग मृग बेली ।।

        मोहे मृग धेनु सहित सुर सुन्दरि, प्रेम मगन पट छूटे ।
        उड़गन चकित थकित शशि मंडल , कोटि मदन मन लूटे ।।
       अधर पान परिरंभन अति रस , आनन्द मगन सहेली ।
     श्रीहित हरिवंश रसिक सचु पावत , देखत मधुकर केलि । 63 ।

मोहन मदन त्रिभंगी , मोहन मुनि मन रंगी …….

वो युवक भले ही बेसुरा गा रहा हो …किन्तु हृदय से भाव में भरकर गा रहा था …बाबा ने उसे उत्साहित किया । वाद्य वृन्द वाले हंस रहे थे ।

उस युवक के हाथों वाणी जी ले ली और बाबा ने कहा …अब ध्यान । सब लोगों ने ध्यान के लिए अपने नेत्रों को बंद कर लिया था …उस युवक ने भी ।


                              !! ध्यान !! 

सुन्दर श्रीवन की शोभा अद्वितीय है …शीतल पवन बह रहे हैं ..पवन लताओं को झुमा रहे हैं ।

सुगन्धित वातावरण हो गया है …लताओं में पुष्प खिले हैं ..उन्हीं से सुगन्ध का प्रसार हो रहा है ।

युगलवर मुस्कुराते हुए रात्रिकालीन वन विहार कर रहे हैं …….पीताम्बर धारण किए हैं श्याम सुन्दर और नीलांबर धारण की हुयी हैं श्यामा जू । युगल सरकार गलवैयाँ दिये …सखियों के साथ एक सुन्दर से सरोवर में आते हैं …..वो सरोवर बड़ा ही सुन्दर है ….उसके चार घाट हैं जो मणि माणिक्य से बने हैं ……उन घाटों की शोभा देखते ही बनती है । प्रिया जी को आनन्द आया उस सरोवर का दर्शन करके …तो वो घाट की एक सीढ़ी पर ही बैठ गयीं । उस सरोवर में हंस विहार कर रहे हैं …..खेल रहे हैं ….कमल खिले हैं ….कई रंगों के कमल खिले हैं ….लाल , हरे , गुलाबी , पीले नीले …..उनमें भ्रमर गुंजार कर रहे हैं …..भ्रमर बड़े मतवाले हैं …..वो कमल का रस पीना चाहते हैं …..बार बार कमल में ही बैठते हैं …..कुछ रस पीते हैं फिर मत्त होकर उड़ जाते हैं ….पर जायेंगे कहाँ …फिर आते हैं ….।

प्रिया जी के कान में ललिता सखी आकर धीरे से कहती है ….प्यारी जू ! ये तो अपने श्याम सुन्दर प्रतीत होते हैं और ये कमल आपका मुख कमल । बस ललिता की प्रतीकात्मक बात सुनते ही …प्रिया जी खो जाती हैं अपने मधुकर में ।

श्याम सुन्दर मनोरम रात्रि को देखते हैं ….और मुग्ध हो जाते हैं ….फिर विचार करते हैं क्यों न इसी सरोवर के निकट ….श्याम सुन्दर उचक कर देखते हैं ….पास में ही एक सुन्दर वृक्ष है …कल्पवृक्ष …उसी के पास चले जाते हैं …कल्पवृक्ष है …अजी ! स्वर्ग का तुच्छ कल्प वृक्ष नही …दिव्य प्रेम भूमि में प्रकटा प्रेम जल से ही सिंचित कल्पवृक्ष है । श्याम सुन्दर उसके नीचे जाकर खड़े हो गये । और नेत्र बन्द कर मनोरथ करने लगे …कि एक सुन्दर सा रास मंडल प्रकट हो जाये …..हो गया । ये मण्डल तो बहुत सुन्दर था । श्याम सुन्दर ने उसी समय आनन्द में डूब कर अपनी फेंट से बाँसुरी निकाली और बजाने ….और वो प्रेमध्वनि ध्वनि पूरे श्रीवन में गूंज गयी।

हित सखी अपनी सखियों से इसी झाँकी का वर्णन करती हैं ……


सुन्दर हैं मोहन , बहुत सुन्दर । सबको मोहित करने वाले हैं ये ।

मदन यानि कामदेव को ये हराने वाले हैं ….इनका ये ललित त्रिभंगी रूप सब को मोह में डाल रहा है सखी ! हित सखी बता रही है ।

ये इनका सुन्दर सुकुमार वपु मुनियों का भी मन हर लेता है …..तीन जगह से टेढ़े हैं ये …इसलिए इनका नाम ही है त्रिभंगी । क्या रस मूर्ति हैं ! आह भरती है हित सखी । ये रसिकता के सिर मौर हैं ….ये गुणों का आगार हैं ….और हमारी प्रिया जी की हर बात मानने वाले हैं …यानि आज्ञा पालक भी हैं ….तभी तो “रस घन मूर्ति” कहा इनको । इनके सिर में मोर मुकुट है …गले में वनमाला है ….कानों में कुण्डल कितने सुन्दर लग रहे हैं । सखी ! लगता है इन्हीं को देखती रहें ।

इनके अंगों में विचित्र धातुओं के रंगों से प्रिया जी की “चंद्रिका” चित्रित हैं ….जो इनके नील वर्ण की शोभा को और बढ़ाते हैं …..काम देव इनके श्रीअंग को देखकर मूर्छित हो जाता है सखी ! हित सखी गदगद है ।

इनकी पीताम्बर जब पवन के झौंक़ों से उड़ते हैं …तब जो सुगन्ध बहती है वो तो बड़े बड़े देवों को भी मूर्च्छा में डालने वाली है । इनकी कटि में किंकिणी देखो तो ….सुन्दर लग रही है ना ?

और और सखी ! इनके ये चरण , कितने सुकोमल है ….और नख तो सूर्य की आभा को प्रकट कर रहे हैं …..आहा ! सखी ! लगता है अपना मस्तक तो इन्हीं में झुकाये रखूँ ।

तभी लालन की बाँसुरी फिर बजी …..इस बार की बाँसुरी ने श्रीराधा जी को झकझोरा …सरोवर के भ्रमर को निहारना छोड़ , अपनी सखियों के साथ प्रिया जी वहीं मोहन लाल जू के पास में आगयीं । हित सखी कहती है – अब देखो मोहन लाल को …पहले कुछ “किन्तु परन्तु” था पर अब निश्चिंत हो गए हैं …क्या किन्तु परन्तु ? सखियों ने पूछा तो हित सखी बोली – ये किन्तु परन्तु कि आयेंगीं या नही , आयेंगी तो कब आयेंगीं ! पर जब सामने आकर प्रिया जी खड़ी हो गयीं तब तो मोहन लाल जू झूम उठे …..और वेणु मग्न होकर बजाने लगे ।

किन्तु अब देखो ! अब तो बाँसुरी को भी छोड़ दिया …गायन करने लगे हैं …..अति आनन्द के कारण उनके नयन चपल हो गए हैं ।

तभी ताल मृदंग झाँझ ढ़फ सब बजने लगे थे …यमुना पुलिन में रास फिर चल पड़ा । मोहन लाल प्रिया जू को चूमते हुए , आलिंगन करते हुए , उनके कपोल को छूकर प्रमुदित हो उठते हैं ।

ये सब देखकर श्रीवन प्रसन्न है , वृक्ष-लता पक्षी पशु सब मोहित हो गये हैं ।

गौएँ मोहित हो रहीं हैं , मृग , हंस हंसिनी सब मोहित हो गए हैं ।

हित सखी कहती है ….इतना ही नही …राग रागिनी भी मोहित हो गयी हैं ।

अब गायन में साथ देने वाली सखियाँ भी अपने आपको भूलने लगी हैं ..उनकी चुनरियाँ गिर रही हैं पर भान नही है ।

अब तो रसोन्मत्त अवस्था में प्रिया प्रियतम परस्पर अधर रस का पान कर रहे हैं …

ये देखकर कामदेव मूर्छित हो गया है ।

हित सखी कहती है – ये आनन्द तो नित्य ही हम को प्राप्त होता है किन्तु आज का रस तो अनुपम और अपूर्व ही था । ये कहकर मुस्कुराती है …क्यों की द्वैत अब अद्वैत हो रहे थे ।


वो युवक चकित था ….उसने कहा …मुझे तो लग रहा था कि मैं उस निकुँज में हूँ ।

गौरांगी मुझ से बोली –
इस मार्ग में रसिकों की कृपा मिल जाये तो निकुँज प्रवेश कोई बड़ी बात नही है ।

इसके बाद गौरांगी ने फिर इसी पद का गायन किया था ।

“मोहन मदन त्रिभंगी”

आगे की चर्चा कल –

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