“श्रीराधाचरितामृतम्” 73 !!
जब उद्धव का विद्या-गर्व गलित होनें लगा…..
भाग 1
मेरा शब्द ज्ञान, पर इनका अनुभव गम्य ज्ञान …….मेरा शब्द ज्ञान कैसे गलित होता जा रहा था – मैं समझ रहा था ।
उद्धव उस रात यही सोचते रहे……..सोया कोई नही ……वैसे –
“कृष्ण के जानें के बाद नींद भी हम सब से रूठ गयी है”
ये बात कही थी बृजपति नें ………और मुझे शयन के लिये आग्रह करनें लगे थे ।
मुझे भी कहाँ नींद आती ………..उद्धव कहते हैं ।
आँखें खोलकर मैं लेटा रहा , सोचता रहा – मुझे जो कार्य देकर श्रीकृष्ण नें यहाँ भेजा है ……..वो कार्य क्या मुझ से होगा ?
समझाना उद्धव ! श्रीकृष्ण ने कहा था ….
इनको समझाऊँ ? जिनको क्षण क्षण में भावावेश आजाता है प्रेम के सागर में जो डूबते और उबरते रहते हैं…..इनको मैं कैसे समझाऊँ !
सुनिये ! सुनिये ना !
उद्धव का ध्यान उधर गया ……….वो उठकर बैठ गए ……मैया यशोदा बृजपति से कुछ कह रही थीं ।
कितना समय हो गया होगा ?
ब्रह्ममुहूर्त होनें वाला है…………पर अभी समय है ।
मैं स्नान कर लेती हूँ ……….फिर माखन भी तो निकालना है ।
ये कहते हुए बेचारी मैया उठी ।
बैठो ना यशोदा ! अभी स्नान करके क्या करोगी ? अभी रात ही है ।
नही……..आज मेरा लाला आएगा…….और आएगा तो, आते ही माखन मांगेगा……तब मैं क्या करूंगी ?
ओह ! उद्धव नें ये जब सुना……सोचनें लगे ……..इनको क्या समझाऊँ ? कैसे समझाऊँ !
हँसी आयी उद्धव को………”मैं इन मूर्तिमती ममता को क्या क्या ज्ञान दे रहा था…….पर ये भी इनकी करुणा ही है मेरे ऊपर कि …मुझ जैसों को सुन लेती हैं….नही नही मुझे तो लगता है….मैं जब बोलता हूँ …..तब वो अपलक मुझे देखती रहती हैं……..ओह ! अब समझ आया मेरे ………मैं खुश हो रहा था कि ……ध्यान से मुझे सुनरही हैं ……पर नही……वो मुझे नही सुनतीं…….वो तो मुझ में अपनें लाला को देखनें का प्रयास करती हैं……..मुझे देखते हुए वो अपनें लाला के चिन्तन में खो जाती हैं… उद्धव यही सब विचार कर रहे हैं ।
उद्धव ! वत्स ! क्या तुम उठ गए हो ?
बृजपति नें मुझे आवाज देकर पूछा था ।
हाँ पितृचरण ! बृजपति को आज “पिता” कहनें का मन किया ।
पिता ही तो हैं मेरे ये……शायद पिता से भी बड़े ……..मेरे श्रीकृष्ण के पिता हैं…..मेरे लिये तो सर्वाधिक आदरणीय व्यक्तित्व हैं ।
क्या यमुना स्नान को चलोगे ?
बृजपति मुझे अपने साथ यमुना स्नान को ले जाना चाह रहे थे ……..पर मुझे आज एकाकी जाना था……..क्यों की गोपों से , गोपियों से विशेष मिलनें के लिये कहा था श्रीकृष्ण नें मुझ से ….और हाँ…….”मेरी प्रिया से भी मिलना”…….अपनी प्रिया श्री राधा का नाम लेते ही कैसे भाव विभोर हो गए थे मेरे कृष्ण ।
मुझे उनसे भी मिलना है……विशेष मिलना है………
ऐसा विचार करते हुये……हे पितृचरण ! आप जाएँ ……मैं आनन्द से वृन्दावन की शोभा देखते हुये जाऊँगा……और मुझे कृष्ण सखाओं से भी तो भेंट करनी है ……..
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
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