!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!
( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )
!! मंगल मोद !!
गतांक से आगे –
हे रसिकों ! ध्यान करो ….हम निकुँज में हैं ….और श्रीहरिप्रिया जू के यूथ में हैं ….सखीभावापन्न हम सब मंगल मोद मना रही हैं …..क्यों न मनायें ….हमारे सर्वस लाडिली लाल जू का ब्याहुला जो है …किसी सखी रूप में हम भी वहाँ हैं ….इस तरह ध्यान करो ।
तभी हरिप्रिया सखी जू हमारे पास आगयीं हैं …और वो हम सबको स्नेहपूर्वक कह रही हैं ।
सब गाइये इस श्रीमहावाणी जी के पद को ।
“दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री , छबि निरखत नैंन सिरावौ री ।
फूलन को मंडप छावौ री , सुचि सरस सथम्भ सचावौ री ।।
रँगभीने को बना बनावौ री , सब मंगल मोद बढ़ावौ री ।
सुख तेल फुलेल लगावौ री , बहु बाजे बिबिध बजावौ री ।।
उबटना अंग उबटावौ री , केसरि कें नीर न्हवावौ री ।
अँग अंगनि सिरी चढ़ावौ री , जु सहाने पट पहिरावौ री ।।
रोरी को तिलक रचावौ री , मोतिन कें अछित चढ़ावौ री ।
सेहरा सीस बँधावौ री , हँसि हँसि बीरी जू खवाबौ री ।
सब सोभा निरखि सिहावौ री , पर प्रेम के पाग पगावौ री ।।”
सघन लताओं में एकाएक पुष्प खिल गये थे …अनगिनत पुष्प ….छोटे छोटे सरोवरों में कमल खिल उठे थे ….मोरों ने अपने पंख फैलाकर नृत्य करना आरम्भ कर दिया था ..सुगन्ध निकुँज में व्याप्त हो गयी थी ….शुक पपीहा कोयल आदि बोल रहे थे जिससे वातावरण और उत्सवपूर्ण हो गया था ।
अरी सखियों ! क्यों विलम्ब कर रही हो …चलो , शीघ्र करो । हरिप्रिया सखी भी बहुत सुंदर लग रही हैं आज …..नीली साड़ी पहनी है ….गौर वर्णी हरिप्रिया नीली साड़ी में कितनी सुन्दर लग रहीं थीं । उन्होंने एकाएक कहना आरम्भ किया था ….जल्दी करो , शीघ्र करो …..
क्यों करें ?
मुस्कुराती हुई भाव में भींजीं हरिप्रिया कहती हैं ……
सखियों ! अब हमारे सर्वस प्रिया लाल जू के ब्याह को बड़े ही लाड़ से रचाकर शीघ्र अपने नयनों को सफल करना है । ये भाग से अवसर आया है ….इसका आदर करो । सोचो ! इन नयनों को जो सुख मिलेगा ….आहा ! हरिप्रिया सबको ये बताती बताती मौन हो जाती हैं । उनसे कुछ बोला नही जाता ….उनके हृदय में दूल्हा और दुलहिन साक्षात् प्रकट हो जाते हैं ।
सखी जू ! किन्तु सेवा तो बताइये । उनकी सखियों ने हरिप्रिया जू को पूछा था ।
सुध आयी तो सहज होती हुयी ये बोलीं ….मैं भी कहाँ खो जाती हूँ ….समय बहुत कम है …और कितना काम है …अभी तक कुछ नही हुआ है ….हरिप्रिया जू को सम्भालकर अन्य सखियाँ कहती हैं ….आप सेवा तो बताइये ।
श्रीहरिप्रिया जू ने तुरन्त कहा ….फूलों का मंडप छाओ ….देखो , सुन्दर सुन्दर फूल खिले हैं ….तुम ब्याह मंडप के लिए फूल तोड़ने जाओगी ना तो ये लताएँ तुम्हें और भी फूल देंगीं क्यों की ये लता भी यहाँ जड़ नही हैं ….सब चेतन हैं …सब सखियाँ ही हैं ।
तभी….भीतर महल से लाल जू ने ये सब सुन लिया ….कि हमारे ब्याह के लिए फूलों का मंडप तैयार हो रहा है ….वो तुरन्त प्रिया जू से बोले ….मैं स्वयं फूल चुनूँ ? क्यों ? प्रिया जू ने पूछा । क्यों कि फूल कैसे , किस रंग के , किस सुगन्ध के और कहाँ लगाना है ये मुझे ही आता है ….क्यों की “वनमाली” तो में ही हूँ ….ये कहकर श्याम सुन्दर महल से बाहर आगये और फूल चुनने लगे ही थे कि …लालन ! प्रिया जू की दशा बिगड़ रही है ….हरिप्रिया सखी ने ही जोर से कहा …..तो श्याम सुन्दर फूलों तो छोड़कर महल की ओर दौड़े ….महल में तो प्रिया जी लालन के विरह से भर गयीं थीं ….एक क्षण में ही इनकी ये दशा हो गयी थी । क्या हुआ ? अपने हृदय से लगा लिया था श्याम सुन्दर ने ….तब जाकर प्रिया जी विरह दशा से बाहर आ पायीं थीं । ओह !
प्यारी ! हमारौ ब्याह है रह्यों है …ये सुनते ही प्रिया जी अब मुस्कुराने लगीं थीं ।
ये क्या हुआ हमारी लाड़ली जू को ? सखियों ने पूछा ।
तो हरिप्रिया सखी आनन्द से भर गयीं …आनंदाश्रु उनके नेत्रों से बह चले थे …..कुछ नहीं ….हमारी स्वामिनी हमारा ही विशेष ध्यान रखती हैं ….सखियों ! ये हम सखियों के ऊपर कृपा करने के लिए …हमें ये सेवा प्रदान करने के लिए श्रीजी ने ये लीला की । लाल जू तो हमारी सेवा छीनने के चक्कर में ही रहते हैं ….ये हरिप्रिया जू के मुख से सुनते ही सब हंसने लगीं …..और स्वामिनी जू की जय जयकार करने लगीं थीं ।
अब सखियों ने गीत गाते , हंसते हंसाते फूलों का मंडप छा दिया था ….बड़ा ही सुंदर वो मंडप बना था …..अब ? हरिप्रिया सखी बोलीं …मंडप सुन्दर तो बना है …किन्तु कुछ सूना नही लग रहा ! हाँ सूना लग रहा है ….केले के सुन्दर खम्भे तो लगाओ …चार केले के खम्भे चार सखियाँ लेकर आयीं …..और रोप दिया वहीं पर । अब ? ये पूछ ही रहीं थीं सखियाँ कि सामने से सुन्दर सुन्दर सखियाँ जो अष्ट सखी हैं ….प्रिया जू की आठ प्रमुख सखियाँ सज सध करके हाथों में शृंगार की सामग्रियों को लेकर के ….चहकती हुई महल में प्रवेश करती हैं । हरिप्रिया सखी ने हाथ जोड़कर सबको प्रणाम किया ….सबने प्रणाम किया ….अब ? नयनों के संकेत से फिर पूछा …..तब हरिप्रिया बोलीं …..अब तो उस रंगीले को दूल्हा बनाओ …..और और सब मंगल वातावरण का सृजन करो । बस फिर क्या था …शहनाइयाँ बज उठीं …..सखियों ने नृत्य करना आरम्भ कर दिया …मंगल गीत गाये जाने लगे । तभी महल का पर्दा खुल गया ….सारी सखियाँ जय जयकार करने लगीं …..प्रिया प्रियतम की जय । लाड़ली लाल की जय ।
श्रीरंगदेवि जू ने संकेत में हरिप्रिया को कहा …सब आजाओ …आज इनको सजाने का अवसर सबको मिलेगा …..ये अद्भुत ब्याह उत्सव है …बस फिर क्या था अनन्त सखियाँ सब उस महल में चली गयीं …वहाँ विराजे हैं लालन और ललना …रंगदेवि जू ने लालन के उत्तरीय वस्त्र उतार दिए …अद्भुत छटा श्रीअंग की …नीलिमा ज्योति प्रकट हो रही थीं …उनका मुखमण्डल दमक रहा था ….वो बार बार अपनी प्रिया को ही निहार रहे थे । हरिप्रिया सखी नृत्य कर रही हैं …उनके साथ उनकी सहचरियाँ भी नृत्य करने लगीं …प्रिया जू के श्रीअंग में साड़ी है ….केश खोल दिए हैं …क्यों की तैल लगाया जाएगा …सुगन्धित तैल ।
अब हरिप्रिया सखी कहती हैं ….हे सखियों ! सब मिलकर इनके सुन्दर कोमल श्रीअंग में तैल लगाओ …तैल फुलेल से हल्के हाथों से मर्दन करो …ऐसे मर्दन करो जैसे उन्हें सुख मिले ।
सखियाँ आनंदित होकर ये सुख लूटने लगीं …..आश्चर्य ! अनन्त सखियाँ वहाँ हैं और सबको सेवा का अवसर मिल रहा है …..सब सखियाँ लालन और ललना के श्रीअंग में तैल फुलेल लगा रही हैं …उस समय कुछ सखियों ने वाद्य बजाने भी आरम्भ किए …ये सब अपनी गुरु सखी हरिप्रिया जू की आज्ञा पाकर ही कर रही थीं….वाद्यों के बजते ही फिर उन्मत्त हो हरि प्रिया ने नृत्य करना आरम्भ कर दिया था …..ये झाँकी अद्भुत है …हृदय में बसाइये रसिकों !
तैल-फुलेल के मर्दन से श्रीअंग और चमक उठा था …अब सखियों को आज्ञा हुई कि उबटन लगाओ , श्रीअंग में उबटन लगाया जाये । सखियों ने अब उबटन लगाना आरम्भ किया ….मुख में , वक्ष में , उदर में , जंघा में , चरणों में , इसी तरह लाल जू की भी ।
तभी हरिप्रिया सखी एक विशाल पात्र में केसर मिश्रित जल लेकर आयीं ….और कहने लगीं अब इस जल से इनको मल मल के स्नान कराओ । फिर क्या था ! सब सखियों ने धीरे धीरे जुगल के ऊपर जल डालना आरम्भ किया ….वो जल यमुना जी में जा रहा है ..यमुना का जल केसर का हो गया है आज तो ….चारों ओर केसर की सुगन्ध महक रही है ….आनन्द ही आनन्द है ।
जुगलवर के अंगों में सिरहन होने लगी ….क्यों कि जल शीतल है …ये देखकर श्रीरंग देवि जू बोलीं ….अब इनको सुन्दर वस्त्र धारण कराओ ….उसी समय ललिता सखी जू …सुन्दरतम वस्त्र लेकर आयीं ….और लाली और लाला को वो वस्त्र धारण कराए ।
जय हो , बड़े ही सुंदर लग रहे हैं ।
अब हरिप्रिया सखी आगे आती हैं ….और अपने हाथों से रोरी का तिलक लगा देती हैं दोनों को …अक्षत के रूप में मोतियों को लगा दिया है …..तभी ….हंसती हुई एक सखी आयी और श्रीरंगदेवि जू को वो सेहरा दिया ….श्रीरंगदेवि जू ने वो सेहरा देखा ….बहुत सुंदर था …क्या कहें शब्दों की सीमा है ….इससे ज़्यादा और कुछ है नही शब्द में । बहुत सुंदर सेहरा , बस इतना समझ लीजिए । श्रीरंगदेवि जू ने सेहरा धारण कराया लाल जू को ….सब सखियाँ उछल पड़ीं …..जय जयकार करने लगीं । पूरा निकुँज रस में डूब गया है आज तो ।
तभी वो गोरी हरिप्रिया हाथों में पान लिए सामने आयीं और अपने हाथों से ही दोनों को पान खिलाया ….अधर वैसे ही लाल थे और लाल हो गये ।
तब गदगद हरिप्रिया कहती हैं ….दर्शन करो इन दोनों के ….देखो , निहारौ सखी ! प्रेम की चासनी ( पाग ) में इसको पाग लो …यानि बांध लो …ये अद्भुत रूप सौंदर्य है …इसमें अपने मन को भरमाओ । ये कहते हुए हरिप्रिया सखी सब कुछ भूल जाती हैं और अपलक जुगल को ही निहारती हैं ….दोनों आज बहुत सुन्दर लग रहे हैं …..हमारी प्रिया जू जो दुलहिन के रूप में हैं उनका वर्णन तो अवर्णनीय है …..तभी नभ से सुमन झरने लगे …मंगल गान आरम्भ हो गया…..अब तो जिधर देखो उधर ही राग रंग है …नृत्य और प्रमोद है ।
जय जय दुलहा दुलहिन सरकार की …जय जय जय ।
क्रमशः ….


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