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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 120 !!
यन्त्र विज्ञान और “निकुञ्ज”
भाग 3
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सखी की बात सुनकर अर्जुन चौंके………क्या मतलब ? तुम्हारी कामनाओं से ही सब हो जाएगा…..तुम जो चाहोगी वही होगा ?
हाँ ……सखियों नें मन्द मुस्कुराते हुए कहा ।
अर्जुन क्या उत्तर देते………वे पीछे पीछे चलते रहे सखियों के ।
एक कुञ्ज में आगयीं थीं सखियाँ………चन्दन खिसनें लगीं ।
ये क्या कर रही हो ? अर्जुन नें पूछा ।
देख नही रहे …..अर्जुन ! हम चन्दन घिस रही हैं ……….
क्यों की अब युगल सरकार को उठाकर हम स्नान करायेंगीं ……..उनके दिव्य देह में केशर और चन्दन लगायेंगीं ……उबटन से उनके देह को और चमकायेंगी …………..तुम भी सेवा करो कुछ ……
लो चन्दन घिसो …………या उबटन तैयार करो …………..
अर्जुन केशर और चन्दन घिसनें लगे ……. सारी सखियाँ बड़े प्रेम से गीत गा रही थीं ….और स्नानादि की व्यवस्था भी देख रही थीं ।
अर्जुन चलो !
सब सखियाँ सुन्दर और सुगन्धित सामग्रियाँ लेकर चल पडीं युगल सरकार के पास ।
सब सखियों नें जाकर ललिता जू को सामग्रियाँ सौंप दीं ।
अर्जुन नें स्वयं घिसे चन्दन को ललिता सखी के हाथों में जब दिया …..तब ललिता सखी हँसीं ……………
अब मधुर ध्वनि में शहनाई बजनें लगी थी………….सुबह का राग छेड़ दिया था ……..मधुर मधुर ध्वनि निकुञ्ज में छानें लगी थी ।
धीरे से नयन खोले ……….चारों ओर देखनें लगे श्याम सुन्दर …….
फिर प्रिया श्रीजी उठीं……….श्याम सुन्दर को देखा …….और बड़े प्रेम से अपनें हृदय से लगा लिया ।
आहा ! कितनी सुन्दर झाँकी हैं………दोनों एक दूसरे के बाहों में ऐसी शोभा पा रहे हैं ……जैसे बादल में चंचला चमक उठती है ।
आओ इधर !
ललिता सखी नें अर्जुन को अपनें पास बुलाया ।
अर्जुन के आनन्द का ठिकाना नही …………वो उछलते कूदते अपनी लहंगा सम्भालते पहुँच ही गए ललिता सखी जू के पास ।
ये लो …..पँखा …….करो अर्जुन ! धीरे धीरे करना ।
अर्जुन नें पँखा लिया और युगल सरकार को पँखा करनें लगे ।
पर ये क्या ? जैसे ही पँखा हाथ में लिया अर्जुन नें ……….और पँखा करनें लगे ………ध्यान गया श्याम सुन्दर के कपोल में …….लाली लगी थी कपोल में ……प्रिया श्रीजी के अधरों की लाली ………..
अर्जुन नें जैसे ही ये देखा …..भाव में डूब गए अर्जुन …….उनके हाथों से पँखा गिर गया ……और वो मूर्छित होंने लगे ……..
ललिता सखी नें सम्भाला ………….अर्जुन ! क्या हुआ ?
पर अर्जुन तो मत्त हैं …………उन्हें आनन्द आरहा है ।
ललिता सखी नें डाँटा अर्जुन को ………अर्जुन ! जो तुम कर रहे हो इस निकुञ्ज में ………ये गलत है ……उठो और अपनी सेवा में ध्यान दो ….ललिता सखी नें थोड़ी तेज़ आवाज में कहा था ।
अर्जुन सम्भल गए ……और सावधान होकर फिर पँखा करनें लगे ।
ललिता सखी नें अर्जुन को समझाया……..अर्जुन ! “निकुञ्ज रस उपासना” …..ये सबसे अलग है …………इसमें मात्र “अपनें युगलवर की प्रसन्नता पर ही हमारा ध्यान रहना चाहिये”………..अपनें ही आनन्द में खोना …..अपनें ही आनन्द को महत्व देना …..ये प्रेम नही है ।
हे अर्जुन ! तुम पँखा कर रहे थे………तुमको आनन्द आया …..और तुम उसी आनन्द में बहनें लगे ……..और सेवा तुमसे छूट गयी ……..उस आनन्द के कारण हमारी सेवा छूटी……..हमारे प्रियतम से हमारा ध्यान हट गया …..तो …….बेकार है ऐसा आनन्द…….छोड़ो उस आनन्द को ……हम आनन्द के चलते प्रियतम की सेवा से दूर हो जाएँ……ये तो गलत है ना ।
अर्जुन को प्रेम का गूढ़ सिद्धान्त समझा दिया था ललिता सखी नें ।
अब चलो ! स्नान कुञ्ज में ……..युगलवर को ले चलो सखी ! अब स्नान करेंगें दोनों …………अर्जुन सावधान हैं अब ……वो केवल ललिता सखी को ही देख रहे हैं ।
शेष चरित्र कल –
🦜 राधे राधे🦜


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