Explore

Search

November 21, 2024 10:34 pm

लेटेस्ट न्यूज़

श्रीकृष्णचरितामृतम् -!! ब्रह्मा को जब मोह हुआ…! -भाग 7 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम् -!! ब्रह्मा को जब मोह   हुआ…! -भाग 7 : Niru Ashra

!! श्रीकृष्णचरितामृतम्

ब्रह्मा को जब मोह हुआ….!

भाग 7

“ये मठरी है”……कोई ग्वाल सखा कह रहा है…..कन्हैया कहते हैं – मुझे दे ……..नही दूँगा पहले मैं चखूंगा ………..कहीं नमक या मिर्च ज्यादा तो नही है ! ये कहते हुए वो सखा मठरी को चखता है ………हाँ ……बढ़िया है ……..वो चखा हुआ फिर कन्हैया के मुख में ।

ये प्रेम लीला है ……..प्रेम का मार्ग अलग ही है …..उसमें न विधि है न निषेध है ………प्रेम – बस प्रेम है ।

ये क्या लीला है ? ब्रह्मा को अपना माथा पीटना ही पड़ा ।

ब्रह्मा की निपुणता सृष्टी के कार्यों में है …..इन प्रेम लीलाओं में नही है ।

आप सदैव बुद्धि से ही काम लेते हो ………पर कोई कोई प्रसंग ऐसे होते हैं ……….जहाँ बुद्धि और तर्क काम नही देते …….वहाँ तो हृदय से देखो …..हृदय से दर्शन करो , न कोई तर्क , न कोई वितर्क ।

कुछ कुछ क्रोध भी आनें लगा अब ब्रह्मा जी को…….तुम इसे ईश्वर मान रहे हो……जो विधि निषेध की धज्जियाँ उड़ा रहा है……..ईश्वर गम्भीर है……..ईश्वर अवतरित होकर वैदिक विधि का ससम्मान स्वयं पालन करता है……क्यों कि उसे हम जीवों से यही करवाना है ।

देवता सब चुप हो गए हैं अब …..ब्रह्मा जी नें आकर इस प्रेम लीला में अपनें तर्क का प्रयोग करना शुरू कर दिया था …….जिससे लीला का रस अब देवों को मिल नही रहा ।

तभी – हरी हरी दूब का लोभ बछड़ों को दूर ले जाता है……..ये सब ब्रह्मा नें तुरन्त किया था……उन्हें अपनें आपको बड़ा साबित करना था ।
ग्वाल सखाओं नें देखा……..कन्हैया ! अपनें बछड़े कहाँ गए ?

कन्हैया उठ कर खड़े हो गए थे एकाएक…….गम्भीर होकर उन्होंने नभ की ओर देखा था …….पर तुरन्त उनके मुख मण्डल पर एक अद्भुत हास्य तैरनें लगा ……मानों कह रहे हों…….”पुत्र ! आज अपने पिता की परीक्षा ले रहे हो ” !

सखाओं ! तुम सब खाते रहो…..मैं देखकर आता हूँ बछड़ों को ।

इतना कहकर अकेले कन्हैया हाथ में दही भात लिये ही उठे …….और बछड़ों को खोजनें चल पड़े थे ।

हँसे ऊपर से विधाता ब्रह्मा …….बछड़ों को चुरा लिया था ब्रह्मा नें ।

बछड़े नही हैं………दूर तक जाकर भी देखा कन्हैया नें ……..पर कहीं नही हैं……..चलो ! आजायेंगे ……ऐसा कहते हुये लौटे कन्हैया जहाँ उनके ग्वाल सखा थे ।

पर ये क्या ! यहाँ अब कोई नही है………ग्वाल सखाओं का भी हरण कर लिया था ब्रह्मा नें ।

ब्रह्मा देख रहे हैं कि – ये करता क्या है अब ?


मानों अब चुनौती दी कन्हैया नें ब्रह्मा को ।

तुम्हे सृष्टी का रहस्य अभी तक समझ में नही आया ब्रह्मा !

अहंकार करते हो कि मैं ही बनाता हूँ सृष्टि !

अरे ! तुम क्या बनाओगे ? बताओ क्या बनाते हो तुम ?

जीव तुम बनाते हो ? जीव तो अनादिकाल से है ।

जीव का अन्तःकरण बनाते हो ? अरे ! जब जीव है तो अन्तःकरण भी उसका है ……..उसमें वासना है , कर्म है , उसके अनुसार ही तो ब्रह्मा एक शरीर दे देते हैं ।…….फिर ब्रह्मदेव ! तुम बनाते क्या हो ?

मैं तुम्हे अब समझाता हूँ – सृष्टि का रहस्य क्या है ?

ये कहते हुए वो नन्हा सा कन्हैया हँसा ………..और देखते ही देखते दूसरी सृष्टि बना दी कन्हैया नें ।

अब यहाँ न अन्तःकरण की आवश्यकता थी ……..न कर्म न वासना …..न जीव ………….पर सब कुछ वैसा ही ……..।

विदुर जी पूछते हैं – ये कैसे किया नन्दनन्दन नें ?

उद्धव उत्तर देते हैं – ये नन्द नन्दन हैं ……सृष्टी के मूल में यही हैं …..ब्रह्मा विष्णु शंकर ये सब नन्दनन्दन की सृष्टि के ही एक हिस्सा हैं ।

स्वयं बन गए तात ! नन्दनन्दन स्वयं बन गए …….बछड़े बन गए , बछिया बन गए ……..ग्वाल बाल सब बन गए ।

ब्रह्मा को सृष्टि का कार्य स्मरण हो आया था …..तो वे हंस में बैठकर चल पड़े अपनें ब्रह्म लोक में ……………

यहाँ लीला चल रही है ………एक वर्ष तक कन्हैया ही बने हैं सब ….ग्वाल बाल बछड़े बछिया , सब ।

क्यों की ब्रह्मा का एक क्षण, ब्रह्म लोक का एक क्षण यहाँ पृथ्वी में एक वर्ष हो जाता है ….और एक वर्ष तक ये लीला चलती रही थी 🙏

क्रमशः …

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! ब्रह्मा को जब मोह हुआ….!

भाग 7

“ये मठरी है”……कोई ग्वाल सखा कह रहा है…..कन्हैया कहते हैं – मुझे दे ……..नही दूँगा पहले मैं चखूंगा ………..कहीं नमक या मिर्च ज्यादा तो नही है ! ये कहते हुए वो सखा मठरी को चखता है ………हाँ ……बढ़िया है ……..वो चखा हुआ फिर कन्हैया के मुख में ।

ये प्रेम लीला है ……..प्रेम का मार्ग अलग ही है …..उसमें न विधि है न निषेध है ………प्रेम – बस प्रेम है ।

ये क्या लीला है ? ब्रह्मा को अपना माथा पीटना ही पड़ा ।

ब्रह्मा की निपुणता सृष्टी के कार्यों में है …..इन प्रेम लीलाओं में नही है ।

आप सदैव बुद्धि से ही काम लेते हो ………पर कोई कोई प्रसंग ऐसे होते हैं ……….जहाँ बुद्धि और तर्क काम नही देते …….वहाँ तो हृदय से देखो …..हृदय से दर्शन करो , न कोई तर्क , न कोई वितर्क ।

कुछ कुछ क्रोध भी आनें लगा अब ब्रह्मा जी को…….तुम इसे ईश्वर मान रहे हो……जो विधि निषेध की धज्जियाँ उड़ा रहा है……..ईश्वर गम्भीर है……..ईश्वर अवतरित होकर वैदिक विधि का ससम्मान स्वयं पालन करता है……क्यों कि उसे हम जीवों से यही करवाना है ।

देवता सब चुप हो गए हैं अब …..ब्रह्मा जी नें आकर इस प्रेम लीला में अपनें तर्क का प्रयोग करना शुरू कर दिया था …….जिससे लीला का रस अब देवों को मिल नही रहा ।

तभी – हरी हरी दूब का लोभ बछड़ों को दूर ले जाता है……..ये सब ब्रह्मा नें तुरन्त किया था……उन्हें अपनें आपको बड़ा साबित करना था ।
ग्वाल सखाओं नें देखा……..कन्हैया ! अपनें बछड़े कहाँ गए ?

कन्हैया उठ कर खड़े हो गए थे एकाएक…….गम्भीर होकर उन्होंने नभ की ओर देखा था …….पर तुरन्त उनके मुख मण्डल पर एक अद्भुत हास्य तैरनें लगा ……मानों कह रहे हों…….”पुत्र ! आज अपने पिता की परीक्षा ले रहे हो ” !

सखाओं ! तुम सब खाते रहो…..मैं देखकर आता हूँ बछड़ों को ।

इतना कहकर अकेले कन्हैया हाथ में दही भात लिये ही उठे …….और बछड़ों को खोजनें चल पड़े थे ।

हँसे ऊपर से विधाता ब्रह्मा …….बछड़ों को चुरा लिया था ब्रह्मा नें ।

बछड़े नही हैं………दूर तक जाकर भी देखा कन्हैया नें ……..पर कहीं नही हैं……..चलो ! आजायेंगे ……ऐसा कहते हुये लौटे कन्हैया जहाँ उनके ग्वाल सखा थे ।

पर ये क्या ! यहाँ अब कोई नही है………ग्वाल सखाओं का भी हरण कर लिया था ब्रह्मा नें ।

ब्रह्मा देख रहे हैं कि – ये करता क्या है अब ?


मानों अब चुनौती दी कन्हैया नें ब्रह्मा को ।

तुम्हे सृष्टी का रहस्य अभी तक समझ में नही आया ब्रह्मा !

अहंकार करते हो कि मैं ही बनाता हूँ सृष्टि !

अरे ! तुम क्या बनाओगे ? बताओ क्या बनाते हो तुम ?

जीव तुम बनाते हो ? जीव तो अनादिकाल से है ।

जीव का अन्तःकरण बनाते हो ? अरे ! जब जीव है तो अन्तःकरण भी उसका है ……..उसमें वासना है , कर्म है , उसके अनुसार ही तो ब्रह्मा एक शरीर दे देते हैं ।…….फिर ब्रह्मदेव ! तुम बनाते क्या हो ?

मैं तुम्हे अब समझाता हूँ – सृष्टि का रहस्य क्या है ?

ये कहते हुए वो नन्हा सा कन्हैया हँसा ………..और देखते ही देखते दूसरी सृष्टि बना दी कन्हैया नें ।

अब यहाँ न अन्तःकरण की आवश्यकता थी ……..न कर्म न वासना …..न जीव ………….पर सब कुछ वैसा ही ……..।

विदुर जी पूछते हैं – ये कैसे किया नन्दनन्दन नें ?

उद्धव उत्तर देते हैं – ये नन्द नन्दन हैं ……सृष्टी के मूल में यही हैं …..ब्रह्मा विष्णु शंकर ये सब नन्दनन्दन की सृष्टि के ही एक हिस्सा हैं ।

स्वयं बन गए तात ! नन्दनन्दन स्वयं बन गए …….बछड़े बन गए , बछिया बन गए ……..ग्वाल बाल सब बन गए ।

ब्रह्मा को सृष्टि का कार्य स्मरण हो आया था …..तो वे हंस में बैठकर चल पड़े अपनें ब्रह्म लोक में ……………

यहाँ लीला चल रही है ………एक वर्ष तक कन्हैया ही बने हैं सब ….ग्वाल बाल बछड़े बछिया , सब ।

क्यों की ब्रह्मा का एक क्षण, ब्रह्म लोक का एक क्षण यहाँ पृथ्वी में एक वर्ष हो जाता है ….और एक वर्ष तक ये लीला चलती रही थी 🙏

क्रमशः …

admin
Author: admin

Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877

Leave a Comment

Advertisement
लाइव क्रिकेट स्कोर
कोरोना अपडेट
पंचांग