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November 21, 2024 10:46 pm

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श्रीकृष्णकर्णामृत – 59 : नीरु आशरा

श्रीकृष्णकर्णामृत - 59

प्रेमोन्माद बिल्वमंगल का…


मौलिश्चन्द्रक-भूषणो मरकत-स्तम्भाभिरामं वपु –
वक्त्रं चित्र-विमुग्ध-हास-मधुरं बाले विलोले दृशौ ।
वाचः शैशव-शीतला मद-गज-श्लाघ्या विलास-स्थिति-
मन्दमन्दमये क एष मथुरावीथी मिथो गाहते ॥५७।।

हे साधकों ! प्रेमोन्मत्त बिल्वमंगल चारों ओर देख रहे हैं ….वो रस राज्य में अपने श्याम सुन्दर को खोज रहे हैं …कल के श्लोक में आपने सुना कि …बिल्वमंगल की दशा ऐसी हो गयी, अब उन्हें सर्वत्र श्याम सुन्दर ही दिखाई देने लगे हैं …वो अति आनंदित होकर अपने प्रिय को देख ही रहे थे कि तभी एकाएक वो सर्वत्र दिखाई देने बन्द हुए और बिल्वमंगल को सामने से आते हुए अब श्याम सुन्दर दिखाई देते हैं । आज के इस श्लोक में इसी का वर्णन है ….ये स्थिति प्रेम के उन्माद की है ..जिस उन्माद की स्थिति में प्रेमी को अपना प्रेष्ठ कभी सर्वत्र दिखाई देता है तो कभी एक ही रूप में आता हुआ दिखाई देता है ….यही घटना आज बिल्वमंगल के साथ भी घट रही है ।


बिल्वमंगल अपने ‘प्रिय’ को सर्वत्र देखकर मुग्ध थे …..ये देह सुध भी भूल चुके थे कि तभी उन्हें श्याम सुन्दर सर्वत्र दीखने बंद हो गये ……इस घटना से बिल्वमंगल एकाएक बेचैन हो उठे थे….उनकी तड़फ बढ़ने लगी थी कि तभी उन्होंने देखा ….सामने से श्याम सुन्दर आरहे हैं ……कहाँ से आरहे हैं ? बिल्वमंगल कहते हैं ….मथुरा से आरहे हैं …ये कहते हुए हंसने लगे । यहाँ भाव बदल जाता है बिल्वमंगल का ….वो पुरुष हैं ये भी भूल जाते हैं …उनके मन में सखी भाव की जाग्रति होने लगती है ……मथुरा से आरहे हैं ? तभी उछल पड़ते हैं ….और उस रस राज्य में पुकारने लगते हैं …अरी सखियों ! अरे सुनो तो सही …देखो ! श्रीवृन्दावन छोड़कर गए श्याम सुन्दर वापस आगये हैं । बिल्वमंगल को यहाँ लगता है उनके पीछे हजारों सखियाँ आगयीं हैं ….और वो सब भी बिल्वमंगल के साथ अपने प्राणप्रिय को निहार रही हैं । बिल्व मंगल कहते हैं ….देखो ! आगये ना हमारे प्राण प्रिय किशोर ! अरी देख तो कैसी मन्द चाल से चले आरहे हैं ….मन्द गति है ….लटकते , मटकते …झूमते हुए आरहे हैं । इनके घुंघराले केश तो देख …उसपर मोर मुकुट …मुकुट भी बायीं ओर झुका हुआ है …..इनके अंग की कान्ति कैसी जगमगा रही है ना ! कैसी कान्ति है ? मरकत मणि की तरह …यानि “पन्ना’…। पन्ना , हरा होता है ।

इनके सम्पूर्ण अंग की आभा भी हरित ही लग रही है । बिल्वमंगल आनन्द विभोर होकर अपने प्यारे का दर्शन कर रहे हैं । और निकट आये श्याम सुन्दर तो बिल्वमंगल कहते हैं …..इनकी मुस्कुराहट तो देखो ! यही मुसकान तो बड़े बड़े योगियों का हृदय भी भेद देती है ।

और निकट आये श्याम सुन्दर तो बिल्वमंगल बोले ….सखियों ! देखो इनके कमल जैसे नयनों में कैसी अपूर्व चंचलता है …यही चंचलता तो हमारे मन की चंचलता का निवारण करती है । बालक की तरह इनमें निश्छलता दिखाई दे रही है …..गज की सी मदमत्त चाल इनकी शोभा को और बढ़ा रही है सखी ! ये विलासी हैं ….किसके विलासी हैं ? रस के विलासी हैं ….ये रस हैं और रस को ही चाहते हैं …रस से ही ये बने हैं …ये रस ही हैं ……देखो देखो ….वे आरहे हैं मथुरा की ओर से ……अब हमारे दुःख दूर हो जाएँगे सखी ! वो देखो , वे आगये !

बिल्वमंगल उठते हैं और दौड़ते हुए जाते हैं …..चरणों में गिर पड़ते हैं ….लेकिन वो चरण नही हैं ….वो तो कदम्ब वृक्ष का तना है । ओह !

क्रमशः…..
Hari sharan

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