श्रीकृष्णकर्णामृत – 59 : नीरु आशरा
श्रीकृष्णकर्णामृत – 59 प्रेमोन्माद बिल्वमंगल का… मौलिश्चन्द्रक-भूषणो मरकत-स्तम्भाभिरामं वपु –वक्त्रं चित्र-विमुग्ध-हास-मधुरं बाले विलोले दृशौ ।वाचः शैशव-शीतला मद-गज-श्लाघ्या विलास-स्थिति-मन्दमन्दमये क एष मथुरावीथी मिथो गाहते ॥५७।। हे साधकों ! प्रेमोन्मत्त बिल्वमंगल चारों ओर देख रहे हैं ….वो रस राज्य में अपने श्याम सुन्दर को खोज रहे हैं …कल के श्लोक में आपने सुना कि …बिल्वमंगल की दशा … Read more