श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! गोप गोपी कौ सम्वाद – “गौचारण प्रसंग” !!
भाग 2
मनसुख – अरी हँसे मत …..मेरी सुन पहले ……….मेरे कन्हैया कुँ तू रात्रि बताय रही है ………तो बाबरी ! दिन भर को हारयौ थक्यो मनुष्य वाही रात्रि में विश्राम कुँ प्राप्त करे है ……और बिना विश्राम के न सुख मिल सके न आनन्द ………और सुन ! रात्रि के कारण ही दिन को महत्व है ……..कारे के कारण ही गौर वर्ण को महत्व है ………नही तो ।
ललिता – अब तू बेकार की बातन्ने करे…….कोई प्रणाम है तो बता ……नही जा, रस्ता नाप !
मनसुख – सुन अब, मैं भी पण्डित हूँ ……सखी ! बता, आँखिन में कारो काजल क्यों आँजैं हैं ? याते गौर वर्ण की शोभा बढ़ जाए है ……अब देख ! तेरे गोरे रंग में ये कारे केश कितनें सुन्दर लग रहे हैं…….ऐसे ही कारी भौं, कारो तिल, कारी आँखिन की पुतरी, ये तो प्रमाण हैं……बता ?
( मनसुख अब हँस पड़ता है जब उसे लगता है कि उसकी बात ऊँची जा रही है और अब ललिता उत्तर नही दे पायेगीं )
बता ! मेरी बात अगर प्रामाणिक नही है तो कटवाये दे अपनें कारे बाल, कटवाये दे अपनें भौं, निकलवाये दे अपनी आँखिन की पुतरी ……….और हाँ …..सुन ! सुन ! जो तू अन्न इत्यादि खावे है …….वृक्षन की छाँया लेय है …..वाकुं सींचवे वारे कारे कारे बादर ही होमें हैं ………और सुन ! कारो रंग युवावस्था को प्रतीक है………और सफेद रंग बुढ़ापे को ……..नायँ समझ आय रही तो सुन – कारे बाल युवावस्था हैं …….और सफेद ? बुढापो ………….अब समझी ?
ललिता – बस , इतनी बातन ते ही श्रेष्ठ है गयो तेरो कन्हैया ?
तेनें कही ……कारे रंग पे कोई और रंग चढ़े नही है ………अरे भोजन भट्ट ! कसौटी कारी होय है , है ना ? पर वा कसौटी में चाँदी या सुवर्ण को रंग चढ़े है की नायँ ?
परन्तु उन सोना और चाँदी में कसौटी को रंग नही चढ़े ……ऐसे ही हमारी किशोरी जू को रंग तुम्हारे कन्हैया पे चढ़ जावेगो ………पर तेरे कन्हैया को रंग हमारी श्रीजी पे नही चढ़े ……..समझे ?
( ललिता सखी के तर्क के आगे पण्डित मनसुख लाल चुप हो गए )
मनसुख – अच्छा ! अच्छा सखी रहनें दे ……..गोरे रंग की भी अपनी विशेषता है और कारे रंग की भी ……….श्रीराधारानी के बिना हमारे कन्हैया कुँ चैन नायँ पड़े ……..और कन्हैया के बिना राधा रानी कुँ …….सखी ! दोनों बराबर हैं कोई बड़ो नही है ।
ललिता – वाह ! अब समानता की बात कर रहे हो मनसुख लाल !
नायँ, कोई समानता नही है तेरे कारे कन्हैया ते हमारी श्रीजी की ……..और हाँ ….कहा कह रहे हते तुम !……….कि कारे बाल युवावस्था को प्रतीक है .? …….अरे जान दो ……… …कारे केश सफेद होते भये तो सबनें देखे हैं ……पर सफेद केश कारे होते भये काहूँ नें देखे हैं ?
बस यही है सबते बड़ो प्रमाण …….कि सफेद रंग कारे में अपनों प्रभुत्व जमाय लेय ……..फिर हटे नहीं है ।
यासौ मेरी बात मान ले …………सफेद श्वेत रंग ही श्रेष्ठ है ……और आदि अनादि है ……..अब तो समझ में आयी ?
मनसुख – नायँ आयी ।
तभी – मनसुख ! ओ मनसुख ! पीछे से कन्हैया नें आवाज लगाई ….ले आय गयो तेरो कारो कन्हैया ! ये कहते हुए ललिता सखी हँसी ।
मनसुख ! साँझ है रही है….चल गैया घेर के लामें……कन्हैया बोले ।
अरे ठहर जा …….मोय या सखी ते शास्त्रार्थ करलैन दै …….मनसुख बोला । कन्हैया भी वहीँ आगये…….जब दोनों की बातें सुनी तो हँसे ……और मन्द मुस्कुराते हुये बोले – मनसुख ! जिद्द छोड़ दे …….रंग तो श्रीराधा रानी को ही श्रेष्ठ है …….मैं तो उनको दास हूँ …….दासता के कारण ही तो मैं कारो है गयो ……श्याम सुन्दर प्रसन्नता में बोले थे ।
मनसुख – वाह भैया ! हम यहाँ तोकूँ लेकर शास्त्रार्थ कर रहे हैं …..और तेनें आते ही कह दियो “मैं तो दास हूँ ” ।
मैं तो तेरी बढ़ाई कर रह्यो हो ……..मेरी जीत है रही ही ……पर तेनें आयके ……”मैं तो दास हूँ” कहकर मेरी हार करवाय दई ।
मनसुख को गुस्सा आरहा था अब ।
कन्हैया मुस्कुराये …….गुस्सा काहे कुँ …..मनसुख ! मेरे सखा ! सुन ……गौर तेज के बिना श्याम तेज की कही शोभा है ? हम दोनों दो नही हैं, एक ही हैं ………..कन्धे में हाथ रखते हुये मनसुख के कन्हैया नें कहा था ।
मनसुख – तू चुप रह ! हमैं तो तेरी बढ़ाई करवे वारो ही अच्छो लगे…..
तेरी कोई भी बुराई करे ना….वो हमें प्रिय नही ….हमें रिस आवे ।
ये कहते हुए मनसुख के नेत्रों से झरझर अश्रु बहनें लगे थे ……….फिर आँसू पोंछते हुए मनसुख नें कहा …………चाहे तू चोर है , चाहे तू छलिया है …नटखट है……बहरूपिया , लंगर, ढीट , कारो कलूटा कैसो भी होय ….पर तू मेरो सखा है ….प्राणन ते प्यारो सखा …….ये कहते हुए मनसुख कन्हैया के हृदय से लग गया था ।
मनसुख ! मेरे भैया ! तू बड़ो भोरो है …….श्रीराधा और मैं ……हम दोनों अलग कहाँ हैं ……एक ही तो हैं ।
वे मेरी अल्हादिनी शक्ति हैं ………….अच्छा एक बात बता मनसुख ! शक्ति और शक्तिमान दो हैं या एक ? मनसुख बहुत भोला है ……..सोचनें लग गया ……..ललिता हँसती हुयी बोलीं ……..मनसुख ! शक्ति है तभी तो शक्तिमान है ….शक्ति ही नही होगी तो शक्तिमान कैसे कहलायेगा ?
“धत्” …….अपनें सिर में मारा मनसुख ने …….इत्ती सी बात मेरी समझ में नही आयी …………….
ललिता हँसते हुयी अब बोली …………बोलो अब –
“जय राधे जय राधे राधे जय राधे जय श्री राधे “
पर मनसुख पक्का है ……….वो तो “जय कृष्ण जय कृष्ण कृष्ण जय कृष्ण जय श्री कृष्ण”……..यही बोलते हुये अपनें सखा को लेकर चल पड़ा ………..भैया कन्हैया ! मैं तो तेरो सखा हूँ ……….मनसुख हँसते हुए बोला…….पर कुछ ही देर में ……”कन्हैया ! ये श्रीराधा नाम तुझे प्रिय है ना तो फिर तेरी प्रसन्नता के लिये मैं भी बोलूंगा”……..”जय राधे जय राधे राधे जय राधे जय श्री राधे “
ललिता सखी नें सुन लिया – वो हँसती हुयी बोली …….
मनसुख लाल ! अब आये हो लाईन में ।
*क्रमशः…
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