श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! कालिय नाग !!
भाग 1
कश्यप ऋषि , उनकी दो पत्नियां थीं …..
“कद्रु और विनीता” ।
……..विनीता शान्त भद्र स्वभाव की थीं ……वो भगवान नारायण के वाहन गरूण की माँ बनीं ……गरूण को जन्म दिया उन्होंने …….और कद्रु ? ये क्रोधी स्वभाव की होनें के कारण इनके पुत्र “सर्प – नाग” ये सब हुये ।
कन्हैया आज सोये नही हैं………इस कालिय नाग का इतिहास इन्हें जानना है……और वृन्दावन में ये कैसे आया…….ये भी समझना है ।
गरूण यहाँ क्यों नही आसकते ? कन्हैया सोच रहे हैं ।
गरूण का भोजन है सर्प नाग इत्यादि ……..फिर वृन्दावन में उनको क्यों नही बुलाया जा सकता ?
रमणक द्वीप से ये कालिय अपनें समस्त परिवार को भी यहीं वृन्दावन के इस “यमुना हृद” में ले आया था……..जिसके कारण यमुना में विष दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था …….क्या करें ?
तात ! कन्हैया अन्तर्यामी हैं ……इनसे कोई बात छुपी नही है ……..ये सब जानते हैं …….पर लीला कर रहे हैं …….तो लीला की मर्यादा का पालन भी तो आवश्यक है……लीला में आप सर्वान्तर्यामी नही बन सकते …..अगर बन गए तो लीला बनेगी ही नही ।
उद्धव नें विदुर जी को ये बात कही थी ।
गरूण की माँ विनीता दासी बन चुकी थीं नागों की माँ कद्रु की ।
छल किया कद्रु नें विनीता के साथ ……..और कपट से विनीता को दासी बना लिया ……अब माँ दासी बन गयी तो पुत्र भी दास ।
क्या सोच रहे हो कन्हैया ? दाऊ भैया नें जब देखा कि उनका अनुज आज सो नही रहा……तो कन्हैया से पूछ लिया……पर कन्हैया नें कोई उत्तर नही दिया…..तब दाऊ नें स्वयं ही कहा…….कालिय नाग के बारे में सोच रहे हो ?
कन्हैया नें दाऊ भैया के मुख की ओर देखा….फिर सिर हाँ में हिलाया ।
मैने ही आकर सन्धि कराई थी सर्पों में और गरूण में……..शेष स्वरूप दाऊ नें कन्हैया से कहा ।
मुझे आना पड़ा था क्यों की गरूण और सर्पों में वो भीषण युद्ध छिड़ गया कि उसके समाप्त होनें की कोई आशा ही नही थी ………..मुझे बीच में आना पड़ा……….मैने जब पूछा ……..कि सर्पों ! बताओ गरूण क्या करे ऐसा जिससे उसकी माँ और वो तुम लोगों की दासता से मुक्त हो जाए ………तब सर्पों की माँ कद्रु नें कहा था ……..स्वर्ग से अमृत ले आए ये गरूण और हमारे पुत्रों को दे दें………बस विनीता और गरूण दासत्व से मुक्त ।
कन्हैया ! मैने गरूण की ओर देखा था…और उसी समय सिर झुकाकर गरूण चले गए अमरापुरी….दाऊ जी कन्हैया को बता रहे हैं ।
जैसे तैसे देवों से लड़ झगड़ के गरूण अमृत का कलश ले तो आये पृथ्वी में ……पर थक गए थे ………इसलिये वो यमुना किनारे कदम्ब की डाल पर बैठ गए ……….वैसे गरूण का भार वो कदम्ब सह नही पाता किन्तु अमृत के दो तीन बुँदे उस वृक्ष पर गिर गयीं थीं इसलिये गरूण का भार उसनें थाम लिया ।
गरूण को भूख लगी थी ………..क्यों की देवों से युद्ध करके अमृत छीना था उन्होंने …..श्रम तो हुआ था……क्षुधा से व्याकुल हो उठे थे गरूण ……….तभी यमुना में एक विशाल मत्स्य को देखा ………..बस ………झुक कर जैसे ही उस मछली को मुँह में लेना चाहा गरूण नें ……
वो छटपटाई……….पर गरूण को भी क्या पता था उसी यमुना में एक सौभरि नामक ऋषि तपस्या कर रहे हैं…….उनके तप में विघ्न हुआ …….मत्स्य को आहार बना रहे हो गरूण ! सौभरि लाल लाल नेत्रों से गरूण को देख रहे थे ……ये श्रीधाम वृन्दावन है …….यहाँ आकर तो कमसे कम जीव हिंसा मत करो ।
क्रमशः ….


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