श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “नृत्यति वनमाली” – अहो ! दिव्य झाँकी !!
भाग 6
उसी समय उछलकर कन्हैया नें फिर अपनें चरण का प्रहार सोते हुये कालीय नाग के ऊपर किया था …………इस बार का प्रहार सबसे तेज था ……….वो उठ गया ……कालीय नाग फुफकारते हुए उठा ।
उसके मुख से विष निकल रहा था……वो और निकाल भी रहा था ।
डर से नागपत्नियां दूर खड़ी हो गयीं ।
सबसे पहले तो उठते ही कालीय नें कन्हैया को एक ही क्षण में बांध दिया चरण से लेकर मस्तक पर्यन्त …………..और उसके बाद विष छोड़नें लगा ……..हलाहल विष ।
कन्हैया मुस्कुराये……….अपनें श्रीअंग को कन्हैया नें फुलाना शुरू किया ………कालीय नाग की सारी नसें ढीली पड़ गयीं …….
बस उसी समय उछलते हुए कन्हैया उसके फण पर पहुँच गए ………और अपनें चरणों से प्रहार करनें लगे …….जोर से प्रहार किया ………
रक्त निकलनें लगा कालीय का …………….रक्त से यमुना का जल लाल होनें लगा ………..लाल ………..।
पर इतनी जल्दी हिम्मत कैसे हारता कालीय नाग वो फिर उठा …….और कन्हैया की और जैसे ही झपटा …………कन्हैया नें फिर उसे उछल कर अपनें चरणों से कुचल दिया ……….उसके फण को अपनें हाथों से मसल दिया ………….।
अहो ! ये क्या ! नाग पत्नियां देख रही हैं …………..विष का प्रभाव इस बालक पर नही हो रहा ….? वो समझ नही पा रहीं ……उसके पति अब थक गए हैं …………..उसके अंग शिथिल हो रहे हैं ।
कन्हैया नें अवसर देखा …….और कालीय नाग को पकड़ कर ऊपर लेकर आये …………..उसे घसीट रहे हैं …………अहो !
तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो ?
स्वर्ग में गए थे देवर्षि नारद जी …..और वहाँ देवराज की सभा में नाच रहे वाद्य बजा रहे गन्धर्वों को जाकर रोक दिया था ।
क्यों ? क्या हुआ ? देवर्षि ! क्या कुछ हो रहा है बृज में ?
देवराज को पता है देवर्षि बृज की ही बात कर रहे थे ।
हाँ ……आज तो अद्भुत होनें वाला है देवराज ! कालीय नाग पर हमारे नन्दनन्दन नृत्य करनें वाले हैं ………..हे गन्धर्वों ! यहाँ क्या वाद्य बजा रहे हो …….चलो ! बृज में चलकर बजाओ …………नन्दनदन को सुख मिलेगा …….और तुम्हारी कला धन्य हो जायेगी ।
देवर्षि की बातें सुनकर सब गन्धर्व चल दिए थे …….और साथ में देवता भी थे …………।
हे नागराज ! तुम अपनें रमणक द्वीप में जाओ ………..ये स्थान तुम्हारा नही है ……………मेरे बृजवासी तुम्हारे कारण बहुत दुःखी हैं ……..जीव जन्तु सब दुःखी हैं ………..तुम इस भूमि को छोड़ दो ।
जब हार गया कालीय नाग लड़ते लड़ते …………….वो थक गया …..उसका विषैला रक्त सब निकाल दिया कन्हैया नें ………….
तब वो अपनी समस्त पत्नियों के साथ कन्हैया के चरणों में नतमस्तक हो गया था ।
तब कन्हैया ने उसे समझाया था ।
पर आपका भक्त गरूण मुझे मार देगा………कालीय नाग नें कहा ।
नही मारेगा ……..क्यों की तुम मेरे भक्त बन चुके हो ………….मेरे चरण चिन्ह तुम्हारे मस्तक में हैं ………इसलिये कालीय ! तुम जाओ और रमणक द्वीप में ही निवास करो ……..नन्दनन्दन नें समझाया ।
सिर झुका लिया कालीय नाग नें …………….कन्हैया नें अवसर देखा …..और उछलते हुये उसके फण पर सवार हो गए थे ।
मैया देख ! मैया ! बाबा !
दाऊ जी एकाएक सबको बोलनें लगे थे ।
सब उठ गए …..मानों सबके देह में फिर से प्राणों का संचार हो गया ।
आहा ! कालीय के फण पर वो नटवर नाच रहा था ……..उसकी वो भंगी अद्भुत थी ………अहो ! तभी उसनें अपनी फेंट से बाँसुरी भी निकाल ली ……….वो अपनें अपनें चरण एक एक फण पर पटक रहे थे ……….वो हर फण को झुका रहे थे ………….।
उसी समय गन्धर्वों नें वाद्य बजानें शुरू कर दिए ……………
फण से रक्त की बुँदे फूट रही थीं ………….वो कन्हैया के चरणों में गिर रही थीं ……..अहो ! अद्भुत शोभा हो गयी उससे भी …..ऐसा लग रहा था जैसे रक्त वर्ण के पुष्प नन्दनन्दन के चरणों में मानों कालीय नाग चढ़ा रहा हो ।
सब ग्वाल सखा नाच उठे …..पर मैया यशोदा चिल्लाईं –
कन्हैया ! आजा ! आजा ….ये कालियनाग तोहे खा जायगो ……
“नाय खायेगो , मेरो चेला बन गयो है”…कन्हैया मुस्कुराते हुये बोले थे ।
*क्रमशः ….


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