श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! कन्हैया की गुरुपूर्णिमा !!
भाग 2
ओह ! तो महर्षि के गुरु शंकर भगवान हैं ।
कन्हैया मन ही मन सोच रहे हैं ।
तुम पूछना क्या चाहते हो ?
हँसते हुये कन्हैया से बोल रहे है महर्षि ।
आपके गुरुदेव भगवान शंकर किसकी पूजा करते हैं ?
ये क्या प्रश्न हुआ ? पर कन्हैया के प्रश्न को ऐसे कैसे नजरअंदाज कर दें महर्षि भी ।
आँखें बन्द हो गयीं ऋषि शाण्डिल्य की ……………और पूर्व की गुरुपूर्णिमा में भगवान आशुतोष से पूछा हुआ स्वयं का प्रश्न स्मरण हो आया …………..
आपके भी कोई गुरु हैं क्या भगवन् !
बड़े संकोच से प्रश्न किया था महर्षि नें ।
इस प्रश्न पर समाधि ही लग जाती महादेव की ……पर महर्षि नें सम्भाल लिया………कुछ देर बाद भगवान साम्ब सदाशिव मुस्कुराकर बोले –
“श्री कृष्ण वन्दे जगद्गुरुम्”……….मेरे भी और समस्त चराचर के गुरु तो श्रीकृष्ण ही है ……………..भगवान भूतभावन का ये उत्तर था ।
महर्षि ! महर्षि ! बताइये ना ? भगवान शंकर के गुरु कौन हैं ?
कन्हैया पूछ रहा है ……इसे उत्तर चाहिये ।
नेत्र खोलकर हँसे शाण्डिल्य ………….बड़े अच्छे लीलाधारी हो ……..हे श्रीकृष्ण ! आप ही सबके गुरु, जगद्गुरु ……सब हो ……फिर भी ये लीला ? मन ही मन बोल रहे थे महर्षि ।
भगवान शंकर के भी गुरु हैं ……….गिरिराज गोवर्धन ।
महर्षि नें ये समाधान दिया कन्हैया को ………..और इसलिये दिया कि गोर्वधन श्रीकृष्ण ही तो हैं …………..गोवर्धन श्रीकृष्ण का ही पर्वत रूप तो है …………..लीला धारी को ये कहना कि तुम ही हो सबके गुरु …..ये उसकी लीला में विघ्न डालना होता …….इसलिये महर्षि नें कहा …….गिरिराज गोवर्धन से बड़ा कोई नही है ।
बस उठ गए कन्हैया वहाँ से …..और प्रणाम करके महर्षि को निकल गए अपनें सखाओं के साथ ।
समझे ? तोक मधुमंगल अर्जुन श्रीदामा सुबल सबसे पूछ रहे थे ।
हाँ ………..सबनें उत्तर दिया ………
क्या समझे ? कन्हैया पूछ रहा है ।
मनसुख नें कहा …..सबसे बड़ा है गिरिराज पर्वत ………यही सब गुरुओं का भी गुरु है …………..इससे बड़ा कोइ नही ।
हाँ …………पर हमें ये पर्वत, शिक्षा उपदेश कैसे देगा ?
देगा नही ………देंगे ……..ये सबके गुरु हैं आदर से बोलो …….कन्हैया नें श्रीदामा को डाँटा तो श्रीदामा नें तुरन्त कान पकड़ लिये अपनें ।
ये हमें शिक्षा देते ही रहते हैं …………उपदेश करते ही रहते हैं …….
जैसे – कन्हैया कुछ सोच कर बोले ………….इनसे झरनें बहते हैं ……पर ये स्वयं उसका उपयोग न करके हम लोगों को जल देते हैं ………इसका मतलब …..परोपकार……अपनें लिये नही दूसरों के लिये जीयो ।…..मनसुख नें उछलकर ताली बजाई ………वाह ! वाह ! ।
उस तरह गुरुपूर्णिमा की तैयारी कर ली थी कन्हैया नें……….
तात ! उद्धव नें कहा विदुर जी को ।
गुरुपूर्णिमा आगयी…..और कन्हैया नें अपनें सखाओं के साथ …..
पूजा अर्चना की है अपनें गुरु स्वरूप गिरिराज गोर्वधन पर्वत की ।
अक्षत रोरी सब चढाया …………मन्त्र भी पढ़े मनसुख नें ……
भोग लगाया बड़े प्रेम से …………..फिर आरती ………….
सुनो ! गुरु, “तत्व” होता है ……गुरु सर्वत्र व्याप्त होता है ….चराचर में ……वो सामान्य नही ……..वो चैतन्य रूप होता है …………..उसके देह को मत देखो …….कि उसका पर्वत का देह है या मानव का …….उससे कोई फ़र्क नही पड़ता ………….गुरु तो गुरु है क्यों की वो तत्व है ।
आहा ! आकाश में खड़े हैं महादेव ब्रह्मा जी नारद जी समस्त देवी देवता और जगदगुरु के मुख से सब “गुरु तत्व” की व्याख्या सुन रहे हैं ।
सबनें श्रीकृष्ण के ऊपर अब पुष्प भी चढ़ाये ………..और अपना प्रणाम भी निवेदित किया था ……….”श्रीकृष्णम् वन्दे जगद्गुरुम्”…….इन नन्हे से सुकुमार को ऐसे ही जगदगुरू तो नही ही कहा जाता !


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