श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! प्रेम गली में, “मैं” कहाँ ? – “रासपञ्चाध्यायी” !!
भाग 1
हाँ, प्रेम में , “मैं” कहाँ ? और जहाँ “मैं” है वहाँ प्रेम कहाँ !
प्रेम में तो “तू ही तू” है ………बस तू ।
जहाँ “मैं” है वहाँ कामलीला है …..और जहाँ “तू ही तू”…..”मैं” मिट गया ….वहाँ रामलीला है ।
पर तात ! उद्धवजी बोले – गोपियों के इस “रासप्रसंग” में कुछ देर के लिये “मैं” आगया था………..इन गोपियों का ध्यान अपनें में गया ……..तात ! ध्यान प्रियतम की ओर रहे …मात्र प्रियतम की ओर ….तब तो होती है रासलीला ………पर प्रिय से ध्यान हटकर अपनें में जब ध्यान जाए……तब वहाँ कामलीला ही प्रकट होती है ।
उद्धव बोले – वैसे यहाँ सम्भालनें वाले स्वयं श्यामसुन्दर हैं ……..इसलिये उन्होंने जैसे ही देखा……गोपियों के मन में “मैं” भाव जाग्रत हो गया है…….ध्यान स्वयं में गया है ।
यही तो प्रेम गली का रोड़ा था ।
तभी श्याम सुन्दर अंतर्ध्यान हो गए थे ।
मेरे साथ नृत्य करो……हे प्राणप्रिय ! मेरे साथ ही रहो !
सुनो ! मेरी वेणी गूँथ दो ! मैं थक गयी हूँ मेरे पाँव दबा दो !
गोपियों के मन में मान आगया……….मैं ही सबसे सुन्दर ! मैं ही श्रेष्ठ सब गोपियों में । मेरी कंचुकी कस दो ना प्यारे ! श्याम सुन्दर किसी गोपी के पाँव दबा रहे हैं ……किसी की वेणी गूँथ रहे हैं …..किसी की कंचुकी कस दे रहे हैं………….पर अब एक दिक्कत खड़ी हो गयी थी उस महारास में………कि गोपियों में होड़ मच गयी – मेरे पांव में महावर पहले लगाएंगे ……..होड़ मच गयी कि – मेरे ही पांव पहले दबाएंगे ……देख लो !
पहले मेरी वेणी गुँथों श्याम !
……गोपियों में अब ईर्ष्या की भावना बढ़नें लगी ।
तुमनें उस सखी की बात क्यों मानीं ! ईर्ष्या नें अब स्पर्धा का रूप ले लिया था ।
“जाओ मैं तुमसे बात नही करती”………मान करके बैठ गयी गोपी ।
श्यामसुन्दर किसी गोपी को मना रहे हैं ……किसी गोपी के वेणी में फूल लगा रहे हैं……वे हंस रहे हैं …..वे मुस्कुरा रहे हैं……व्यस्त हैं ।
*क्रमशः…


Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877