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August 1, 2025 6:13 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! जब कृष्णाकार हुईँ गोपियाँ – “रासपञ्चाध्यायी” !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! जब कृष्णाकार हुईँ गोपियाँ – “रासपञ्चाध्यायी” !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! जब कृष्णाकार हुईँ गोपियाँ – “रासपञ्चाध्यायी” !!

भाग 2

एक गोपी नें अपनी चूनरी फैला दी, और चिल्लाकर बोली –

इन्द्र वर्षा कर रहा है ……आओ मेरे गिरिराज गोवर्धन के नीचे ….मैं तुम सब को बचा लूँगा ……………..

कोई गोपी हँस रही है ………….मेरी राधे ! ओ मेरी श्यामा ! स्वयं को कृष्ण मानते हुए वो दूसरी गोपी को राधा कह रही थी ।

कोई गोपी एक बाँस को तोड़ लाई …..उसमें से उसनें बाँसुरी बनाई ….और ….”.मैं कृष्ण हूँ” , त्रिभंगी बनके खड़ी हो गयी ।

तात ! अद्भुत बात ये थी कि ……जब अपनें अहंकार पर गोपियों का ध्यान गया तब कृष्ण चले गए …..और जब कृष्ण ही कृष्ण छा गया अन्तःकरण में …….तब कृष्ण आगये ।

पर प्रकट अभी भी नही हैं…………गोपियों की स्थिति तो उस कीट जैसी बन गयी थी …….जो भृंगिकीट का ही चिन्तन करते हुए स्वयं भी वही बन जाता है……….ये कृष्ण की तरह स्वांग करती हैं ……..कृष्ण की तरह ही ये हाव भाव प्रदर्शित करती हैं ……और ये सब सहज हो रहा है इनसे …….ये आरोपित नही है ।

प्रेम की उच्चावस्था में द्वैत रहता भी नही है…..तात ! अद्वैत ।

एक गोपी का स्तन पान करनें लगी ….कृष्ण बनी गोपी ……..कह रही थी बारबार ……”मैं पूतना का विष पी जाऊँगा” ।

एक गोपी ऊखल बन गयी …………….उसमें एक गोपी बंध गयीं ……दूसरी नें बांध दिया था ………ऊँखल से बंधी गोपी पुकार रही है …..मुझे खोलो ……मेरी मैया यशोदा ने मुझे बांध दिया ।

यहाँ एक बात दृष्टव्य है – जिस गोपी को कृष्ण कि जिस लीला नें आकर्षित किया है ……..वो उसी लीला के साथ तादात्म्यापन्न हो गयी थी ….ये प्रेम का अद्भुत उन्माद था ……….

चन्द्रावली गोपी विरहकातर है …………वो गोपियों का ये उन्माद देख रही है……..अब उससे ये भी देखा नही जा रहा ……….

एकाएक “हा कृष्ण” कहते हुए वो अपना सिर पटकती है …….

पर उसे पृथ्वी में चक्र के चिन्ह दिखाई देते हैं ……..उसको प्रसन्नता होती है …….शंख के भी चिन्ह हैं …..गदा, कमल, धनुष, मछली, बाण, उर्ध्व रेखा, और त्रिकोण……..वो चन्द्रावली ख़ुशी से झूम उठती है ……अपनें मस्तक को उन चिन्हों में लगाती है…….आनन्द के अश्रु अब उसके नेत्रों से गिरनें लगते हैं ……..ओह ! तो मेरे प्यारे यहीं कहीं हैं !

वो इधर उधर देखती है……….गोपियों को बुलाती है …….देखो ! देखो ! ये रहे नन्दनन्दन के चरण चिन्ह …………नन्दनन्दन ! ये सुनते ही सब गोपियाँ चन्द्रावली के पास दौड़ती हुयी चली आती हैं ।

देखो ! देखो ! हमारे प्रियतम के चरण चिन्ह ! सब आँखें फाड़कर देख रही हैं ……….हाँ हाँ …….यही हैं उस छलिया के चरण चिन्ह ……सखियाँ बोल उठती हैं ।

पर – “हमारी स्वामिनी को ले गया है वो छलिया” …..ललिता सखी कहती है ।

कैसे ? तुम्हे कैसे पता ? चन्द्रावली चौंक कर पूछती है ।

ये देखो ! ये चरण किसके हैं ?

ललिता सखी के कहते ही सब झुक कर उन छोटे चरणों को देखनें लगती हैं ………..इस चरण चिन्ह में ……छत्र , सिंहासन , चन्द्र, लता, बिन्दु और षट्कोण ………चक्रादि तो हैं ही ।

ललिता सखी बोली……कौन नही पहचानता स्वामिनी श्रीराधारानी के चरणों को …………….

हाँ हाँ , हम जानती हैं ………वो छलिया तेरी स्वामिनी के बिना एक पल भी नही रहता …………..चन्द्रावली मुँह बनाकर बोली ।

आहा ! सच में धन्य हैं हमारी कीर्ति कुमारी ! एकान्त किसी गोपी को प्राप्त नही हुआ श्यामसुन्दर का …….पर हमारी लाडिली ……….

ललिता ये कहते हुए रूक गयी………..

*शेष चरित्र कल –

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Author: admin

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