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November 21, 2024 10:28 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्- हे कृष्ण! तुम हमारी आत्मा हो – “गोपिकागीतम्” !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्- हे कृष्ण! तुम हमारी आत्मा हो – “गोपिकागीतम्” !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! हे कृष्ण! तुम हमारी आत्मा हो – “गोपिकागीतम्” !!

भाग 2

उद्धव सुनानें लगे थे – गोपिकागीतम् ।


सुनो ! ओ प्यारे ! सुन रहे हो ना !

उठकर खड़ी हो गयी है एक गोपी ……….वो चारों दिशाओं में दौड़ दौड़ कर पुकार रही है………फिर नेत्रों से आँसू ढुरकाते हुये बैठ जाती है ।

इतनें निष्ठुर तो कभी न थे तुम ! पता है प्रियतम ! कभी कभी हमें लगता है …..तुम बृजरानी के लाला नही हो ……तुम बृजराज के भी पुत्र नही हो ……….ना , ना, तुम वसुदेव और देवकी के…..( तुम इनके पुत्र हो, ऐसी भी बातें उड़ रही हैं )…..पर तुम इन सबके भी पुत्र नही हो…….हो ही नही सकते ।

क्यों की बृजरानी तो करुणा की खानि हैं …………कितनी दया माया उनके मन में रहती है ……और बृजपति भी बड़े ही कृपालु हैं …….

तुम कैसे इतनें निष्ठुर निकल गए सखे ! हमें तो कुछ…………

इतना कहकर वो गोपी मौन हो गयी………..उससे आगे कुछ बोला नही गया ……प्रेम भाव इतना बढ़ गया था उसका ……कि ……उसकी वाणी ही अवरुद्ध हो गयी थी …………उफ़ ! ये प्रेम ।

हे प्रियतम !

दूसरी गोपी फिर पुकार उठी …………..

पर वो हँसती है……ये सखी भाव समुद्र में इतनी गहरी जा चुकी है ….कि कभी हँसती है फिर हँसते हँसते ही रोनें लग जाती है, उफ़ !

तुम्हे क्या लगता है प्यारे ! हम तुमसे प्रेम करती हैं ? ना , ना हम तुमसे प्रेम नही करतीं …..हम तो अपनी आत्मा से प्रेम करती हैं …….

अरी सखी ! देख तो इसे, इसनें कहीं “कनक मञ्जरी” तो नही चबा ली !

श्रीजी नें अन्य सखीयों से पूछा ।

हाँ, मैने तुम्हारे प्रेम की “कनक मञ्जरी” खाई है . ……..और मैं साँची बात कह रही हूँ ………..मैं , मैं ही नहीं इन सबनें कनकमञ्जरी खाई है ……….पर तुम्हारे प्रेम की कनक मञ्जरी ।

वो सखी प्रेमोन्मत्त है ……………कभी हँसती है कभी रोती है ।

मैं नही करती तुमसे प्रेम ……….ये सब कोई नही करतीं तुमसे प्रेम ……..हे प्यारे ! हम सब अपनी आत्मा से ही प्रेम करती हैं ……..और सब अपनी आत्मा से ही प्रेम करते हैं …………….

वो गोपी बोलते बोलते रूक जाती है……….भाव में मत्त है वो ।

सब करते हैं अपनी ही आत्मा से प्रेम !

पत्नी अच्छी नही हुई तो पतिलोग छोड़ नही देते ? पुत्र अच्छा नही हुआ तो क्या पिता अपनें पुत्र को भी त्याग नही देता ? इसका मतलब , हे प्राणेश ! सबको अपनी आत्मा की अनुकूलता से ही प्रेम होता है ……यानि – आत्मा से प्रेम होता है ।

फिर क्यों बाबरी हुई जा रही है , अपनी आत्मा से ही प्रेम कर ।

श्रीजी नें उस गोपी से कहा ।

हे स्वामिनी जू ! बता रही हूँ ………ये कृष्ण हैं ना ! ये यशोदा के पुत्र नही हैं …….न नन्द बाबा के हैं …..न देवकी के ….न वसुदेव के …..ये तो समस्त प्राणियों के हृदय में विराजमान आत्मा हैं ………हाँ , यहीं हैं जो चराचर जगत में है …..और सबके अंदर भी है और बाहर भी …….

यानि ! आत्मा श्रीकृष्ण हैं ………..हम क्या गलत कर रही हैं ……अपनी आत्मा से ही तो प्रेम कर रही हैं ।

ये कहते हुये वो गोपी फिर हँसनें लगी ……….हँसते हुए फिर उसका रुदन शुरू हो गया था……वो दहाड़ मार कर धरती पर गिरी ………

अब तो आजाओ प्यारे ! वो यही कह रही थी ।

अखिलदेहिनामन्तरात्मदृक् …………..

*शेष चरित्र कल –

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