श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! हे सखे ! नही सुननी तेरी कथा – “गोपिकागीतम्” !!
भाग 2
हा हा हा हा ……….तुम क्या जानों गूजरी ! ये बड़े बड़े विद्वान ज्ञानी लोग मेरी कथा ऐसे ही नही सुनते , सुनाते । श्याम सुन्दर उस गोपी के हृदय में बैठे बैठे मानों हँसते हुये उस गोपी से बोले ।
अजी ! क्षमा करो ………तुम्हारे ये ज्ञानी और विद्वान .लोग………..हम सब जानती हैं ……..जैसे बड़े बड़े राजा महाराजा अपनें यहाँ कवि ज्ञानी इन लोगों को पालकर रखते थे ……….और वो लोग मात्र राजा की झूठी प्रशंसा के लिये ही होते थे……..राजाओं से उन लोगों को भेंट मिलती, उसी के लोभ में तो ये लोग , ये सब करते थे ।……..ऐसे ही श्यामसुन्दर ! तुमनें भी अपनें इन कथावाचकों को ……..महात्माओं को मुक्ति की भेंट दे दी होगी …………कहा होगा तुमनें ….”‘मेरी कथा की प्रशंसा करो …….मैं तुम सबको मुक्ति दूँगा”………और बस – लग गए ये लोग…..पर श्यामसुन्दर ! सच्ची बात हम बताती हैं आपको …….आपकी कथा कोई अमृत नही है ……विष है ……और विष भी साधारण नही …….उच्चकोटि का विष …..कि जिसका चढ़ा , वो पानी भी न माँगे ।
न मर सके …..न जी सके ………बस तड़फता ही रहे ……….उफ़ !
गोपी इस बात में आक्रामक हो उठी थी ।
पर तुम क्या जानों ! वन में रहनें वाली हो तुम लोग ।
मेरी कथा से पापों का नाश होता है, तुम्हे पता है ?
श्याम सुन्दर मानों फिर बोले ।
वो गोपी तो हँसी ……खूब हँसीं …………फिर बोली – इतना दुःख मिलता है …….इतनी तड़फ़ मिलती है ……….मृत्यु के समान कष्ट होता है उस दुःख में……….बेचारे पाप तो नष्ट होंगे ही ………..श्याम सुन्दर ! दुःख से पाप नष्ट होते हैं …………यही सत्य है, है ना ? फिर तेरी कथा सुनते हुये …..तेरी चर्चा करते हुये ……….तुझ से प्यार हो जाता है ……पर तू तो प्रेम की आग लगाकर भाग जाता है ……पर हमारे प्राण फंस जाते हैं ….छटपटाते हैं ……लगता है – मृत्यु आजाये, कमसे कम इससे तो छुटकारा मिले ….पर मृत्यु भी नही आती ।
इतना कहते हुये वो गोपी धड़ाम से धरती में गिरी ………पर उसके मुँह से यही निकल रहा था ……..तेरी बातों का अब भरोसा नही है …….तेरी कथा अब सुननी नही है ।
उफ़ ! ये प्रेम का सर्वोच्च शिखर हैं गोपियाँ ……..
उद्धव नें अपनें अश्रु पोंछे ।
*क्रमशः…
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