श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! प्रेम, जो कराये कम है – “गोपिकागीतम्” !!
भाग 1
उफ़ ! ये बयार कैसी ? सखी ! जिसनें आतंकित करके मुकुलित मल्लिका को अपनें पटल खोलनें को, विवश कर दिया है ।
ये कैसी बयार है ? और उस कमल को देखो ! उसका पराग कैसे वृन्दावन में उड़ रहा है ………चारों ओर पराग की मानों आँधी ही चल पड़ी है……..ये बयार तो सच में हमारा शील, हमारा धर्म, हमारी लज्जा सब कुछ उड़ानें पर तुली हुयी है……ये कैसी बयार चल पड़ी ?
ऐसा लगता है ……..जैसे ये पुष्प भी अपना अनुभव हमें सुनानें को आतुर हो उठे हैं ……..इनके भीतर भी हमारी तरह दर्द छुपा हुआ है ……
हाँ, सखी ! क्यों न हो दर्द ! श्याम सुन्दर नें इन्हें भी छूआ ………उन्हें भी सूँघा ……….इन्हें भी अपनी शोभा बनाई ……पर , पर इन्हें भी तो छोड़कर चले गए……..क्यों न हो इन्हें पीड़ा का अनुभव ………हम मिली हैं इन्हें ……तो हमें ये बता रहे हैं ……….
बता बता मल्लिका, बता कुमुदिनी ! क्या किया तेरे साथ उस छलिया नें ?
अरे ! इस कमल को तो देखो……हमारे श्याम सुन्दर के नेत्र ऐसे ही हैं ना ! बिल्कुल ऐसे ही…….इन्हीं नेत्रों को देखनें के लिये ही तो हम पागल हो गयीं थीं…….सुबह से शाम तक बस प्रतीक्षा ! सुबह देखती थीं जब ये मोर मुकुट धारण करके हाथ में लकुट लिये ….गायों को चरानें के लिये ।
तब देखती थीं……आहा ! क्या रूप माधुरी , क्या जादूभरी मुस्कुराहट…..बस , क्षण में ही वो रूप ओझल हो जाता था….क्यों की श्याम सुन्दर चले जाते वृन्दावन गौ चरानें के लिये ।
फिर हमारी प्रतीक्षा ! शाम तक ।
उफ़ ! वो समय कैसे बीतता था …….एक एक पल हम गिनती थीं ……..और जब शाम हुई ……………हम भागीं बाहर ……….ठहर जातीं थीं उस रूप को देखकर ………..हमारा अंग अंग ठहर जाता था ……हमारा मन, हमारी बुद्धि सब ठहर जाती थी …………
क्रमशः …
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