श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! प्रेम विमर्श – “रासपञ्चाध्यायी” !!
भाग 1
आनन्द आनन्द छा गया , श्रीकृष्णचन्द्र जो उदित हो गए थे ।
हे श्रीराधे जू ! श्यामसुन्दर को पुलिन में ले चलो ………ललिता सखी नें श्रीराधा जी के कान में कहा ।
क्यों ? ललिता से पूछा श्री किशोरी जी नें ।
पुलिन में छुपनें की जगह नही है ……..ये वहाँ हमसे छुप नही पाएंगे ।
स्मित हास्य श्रीजी के मुखमण्डल में फ़ैल गया था सखी ललिता की बातें सुनकर …….आहा ! तुरन्त श्रीराधा जी नें श्याम सुन्दर का हाथ पकड़ा और लेकर चलीं यमुना पुलिन में ।
सारी सखियाँ साथ साथ में हैं ।
चारों ओर प्रशस्त पुलिन है………सब गोपियों नें बारी बारी से अपनीं अपनीं चूनर उतारी और मध्य में बिछा दिया ………….
श्रीराधारानी नें स्वयं ही बनमाली को उस स्थान में बैठाया था ।
एक गोपी श्याम सुन्दर के निकल बैठ गयी ……दूसरी भी वहीं पास में …..तीसरी गोपी तो श्याम के चरणों को अपनी छाती से लगानें लगी ……चौथी गोपी केले के पत्ते से बयार करनें लगी ……..पांचवी गोपी बस जड़वत् होकर श्याम को निहार रही है ।……….इस तरह से समस्त गोपियाँ चारों ओर हैं ।
पर श्रीजी कुछ कोप में हैं ………इन्हें अब रोष आरहा है श्यामसुन्दर के ऊपर ……..”प्रेमरोष” जागा था ये श्रीराधा के हृदय में ।
हे भुवन सुन्दर ! एक बात तो समझा दो अगर समझा सको तो ?
श्रीराधारानी नें पूछा ।
हाँ हाँ , पूछो प्यारी ! क्या पूछना है ……श्यामसुन्दर बोले ।
“कोई प्रेम करनें पर प्रेम करता है, कोई प्रेम न करनें वाले से भी प्रेम करता है …..पर कोई तो प्रेम करनें वाले को कष्ट भी देता है ………हे मधुसूदन ! इनमें श्रेष्ठ प्रेम किसका है ? श्रीराधारानी नें पूछा ।
मन्द मुस्काये घनश्याम, फिर बोले – जो प्रेम करनें पर प्रेम करते हैं ……वो तो स्वार्थ है ………उसमें प्रेम है ही नही राधे !
और अगर प्रेम दिखाई भी देता है तो मात्र प्रेम का व्यापार है वहाँ ………प्रेम नही है ।
श्रीजी अब मुस्कुराईं………..क्यों की श्रीजी नें सोचा नही था कि …..मेरे प्रियतम इतनें गम्भीर होकर बोलेंगे ।
हाँ , राधे ! प्रेम वो श्रेष्ठ है …..”जो प्रेम न करनें पर भी प्रेम करे” ।
ऐसे कम लोग ही पाये जाते हैं ……जैसे – माता , अब माता को क्या मतलब कि मेरा बालक मुझ से प्रेम करता है या नही …….वो तो करती ही है ना ! श्यामसुन्दर कि वाणी पूर्ण श्रद्धा से समन्वित थी ।
कुछ देर रुके श्यामसुन्दर ……….अपनी प्रिया श्रीराधा को निहारा …….फिर बोले – हे किशोरी जी ! जो प्रेम करनें वाले से भी प्रेम न करे……ऐसे कुछ लोग होते हैं ………ये होते हैं – आत्माराम , और पूर्णकाम ……….ये दोनों अत्यन्त वन्दनीय हैं ……..क्यों कि इन्हें सर्वत्र अपनी आत्मा के ही दर्शन होते हैं ………….ये सबसे प्रेम करते हैं ……….किसी से कम या किसी से ज्यादा नही ……..।
पर हे राधे ! दो लोग और होते हैं समाज में ………जो प्रेम करनें वाले से भी प्रेम नही करते ………श्रीकृष्ण, “प्रेम” पर अच्छा विमर्श कर रहे हैं यमुना पुलिन पर ……सब गोपियाँ ध्यान से एक एक शब्द सुन रही हैं ।
एक होते – कृतध्नी , और दूसरे होते हैं गुरुद्रोही ।
*क्रमशः …
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