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April 9, 2025 7:58 am

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! अद्भुत महारास – “रासपञ्चाध्यायी” !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! अद्भुत महारास – “रासपञ्चाध्यायी” !!-भाग 2 : Niru Ashra

!! श्रीकृष्णचरितामृतम्!!

अद्भुत महारास – “रासपञ्चाध्यायी” !!

भाग 2

या विद्वान लोग कहते हैं – अभी भी महारास वृन्दावन में हो रहा है ।

ये अपूर्व ऐतिहासिक घटना भी थी और आध्यात्मिक घटना भी है ।
……..ये दोनों ही है ।

उद्धव इस “महारास प्रसंग” को गम्भीर विवेचना में नही ले जाना चाहते ……..न विदुर जी ज्ञानियों की गम्भीर भाषा में महारास के प्रेमपूर्ण प्रसंगों को सुनना चाहते हैं ……ये तो रस ही रस के समूह उस महारास में स्वयं डूबना चाहते हैं ।


श्याम सुन्दर महारास के लिये तैयार हुये ……………उनके सुरभित सुगन्धित बाहु पाश में स्वयं बंधना चाहती हैं ये गोपियाँ ……..या उन्हें बाँधना चाहती हैं ……..अपनें ही भुज दण्ड में ।

आश्चर्य ! नभ में देवताओं के विमान खड़े हो गए हैं ………ब्रह्माणि रुद्राणी रमा लक्ष्मी ये सब भी आकर खड़ी हो गयी हैं ।

लक्ष्मी की आँखें खुली की खुली रह गयीं …………जब उन्होंने देखा कि ….अपनी भुजाओं की माला श्यामसुन्दर के कण्ठ में डाल दी है गोपियों ने, और श्यामसुन्दर नें भी अपना भुज दण्ड गोपियों के गले में ।

बहुत निकट हैं ये दोनों ……निकट कहना भी दूरी लग रहा है ।

रमा आश्चर्य में पड़ गयीं ……..मैं अनन्त काल से इन “नागर नारायण” के चरण पकड़े हुये हूँ ……ताकि ये मुझे छोड़कर कहीं जाएँ नहीं ……पर मुझ से भी महाभाग्यशालिनी तो ये बृज गोपियाँ हैं …..जो चरणों में नही ….मेरे नारायण के कण्ठ में ही अपनी गोरी भुजाओं की माला डाल दी है ………

रमा आगे कहती हैं – गोपियों नें ही नही ……स्वयं श्याम सुन्दर भी कमल नाल समान अपनी भुजाओं की माला से गोपियों का मान बढ़ाते ही जा रहे हैं ।

दोनों की सुरभित साँसे टकरा रही हैं ………..दोनों के हृदय की धड़कनें टकरा रही हैं…….अद्भुत छटा बन गयी यमुना पुलिन की उस समय ।

नभ से देवताओं नें पुष्प वृष्टि शुरू कर दी थी ………..ब्रह्मा अपनें अष्ट नेत्रों से उस महारास का दर्शन कर रहे थे ………..

अपनें बाम भाग में ले लिया श्रीराधारानी को श्याम सुन्दर नें ……….फेंट में से बाँसुरी निकाली ……….और जैसे ही फूँक मारी ……….सुर लहरी चल पड़ी ………….हजारों गोपियाँ उनके साथ हजारों रूपों में श्रीकृष्ण ……नाच रहे हैं………पद गति धीमी धीमी होते हुए द्रुत गति में अब महारास चल पड़ा था ……..आकाश में चन्द्रमा अद्भुत प्रकाश बिखेर रहा था……..उसकी चाँदनी यमुना की बालुका में ऐसी शोभायमान लग रही थी जैसे मोती माणिक्य पीस कर बिखेर दिया हो ……..नीली साडी गोपियों की ….पीला पीताम्बर श्याम सुन्दर का ………….देवर्षि नाच रहे हैं नभ में …….भगवान शंकर से रहा नही गया …….वो डमरू लेकर नृत्य करते हुये उन्मत्त हो उठे थे ।

यमुना की तरंगें भी नाच रही थीं …..शीतल हवा चारों और उन गोपियों के अंगों की सुगन्ध को फैला रही थी ………..उन गोपियों की सुगन्ध में श्याम सुन्दर की सुगन्ध जो मिली …..उसनें तो प्रकृति को भी पगला दिया था ।

उफ़ ! रासेश्वर का ये रास………महादेवादि बस आह भर रहे हैं ।

अधर श्रीराधा जू के अधरों से जुड़े श्याम के………….

बोल उठीं श्रीराधा……..मैं बाँसुरी हूँ मनमोहन की……मुझे श्याम नें अपनी वेणु बना लिया …..और श्याम के भुज मेरे कण्ठ हार बन गए हैं ।

श्रीराधा जब कुहुक उठीं …….नेत्र बन्द हो गए समस्त गोपियों के ……श्याम सुन्दर उन्मत्त हैं ……..प्रेम में भींगें पगे हैं …………नृत्य चल रहा है ……………..गोपियों की पायल बज रही है …………..उन हजारों की पायल एक साथ जब बजी ………तब सम्पूर्ण आस्तित्व स्तब्ध रह गया ………प्रकृति देखती रह गयी ……….वृन्दावन अद्भुत रूप से चमक उठा ….विमुग्ध हो गए समस्त चराचर ……….ये क्या हुआ ? ये क्या हुआ ?

कहते हुये सिद्धात्मा समाधि से जाग गए ……..जब उन्होंनें भी ये दृश्य देखा ………वो सुन्दर सुकुमार श्याम नाच रहा है ……उसके साथ अनन्त सुन्दरीयाँ नृत्य कर रही हैं ….रस ही रस बिखर गया है चारों ओर….ये देखकर – इसी “रास रस” में ये सब सिद्धात्मा डूब गए थे ।

रास रासेश्वर श्रीकृष्ण चन्द्र जू की ……….जय जय जय ।

नभ से देव पुष्प बरसा रहे है ।

*शेष चरित्र कल –

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! अद्भुत महारास – “रासपञ्चाध्यायी” !!

भाग 2

या विद्वान लोग कहते हैं – अभी भी महारास वृन्दावन में हो रहा है ।

ये अपूर्व ऐतिहासिक घटना भी थी और आध्यात्मिक घटना भी है ।
……..ये दोनों ही है ।

उद्धव इस “महारास प्रसंग” को गम्भीर विवेचना में नही ले जाना चाहते ……..न विदुर जी ज्ञानियों की गम्भीर भाषा में महारास के प्रेमपूर्ण प्रसंगों को सुनना चाहते हैं ……ये तो रस ही रस के समूह उस महारास में स्वयं डूबना चाहते हैं ।


श्याम सुन्दर महारास के लिये तैयार हुये ……………उनके सुरभित सुगन्धित बाहु पाश में स्वयं बंधना चाहती हैं ये गोपियाँ ……..या उन्हें बाँधना चाहती हैं ……..अपनें ही भुज दण्ड में ।

आश्चर्य ! नभ में देवताओं के विमान खड़े हो गए हैं ………ब्रह्माणि रुद्राणी रमा लक्ष्मी ये सब भी आकर खड़ी हो गयी हैं ।

लक्ष्मी की आँखें खुली की खुली रह गयीं …………जब उन्होंने देखा कि ….अपनी भुजाओं की माला श्यामसुन्दर के कण्ठ में डाल दी है गोपियों ने, और श्यामसुन्दर नें भी अपना भुज दण्ड गोपियों के गले में ।

बहुत निकट हैं ये दोनों ……निकट कहना भी दूरी लग रहा है ।

रमा आश्चर्य में पड़ गयीं ……..मैं अनन्त काल से इन “नागर नारायण” के चरण पकड़े हुये हूँ ……ताकि ये मुझे छोड़कर कहीं जाएँ नहीं ……पर मुझ से भी महाभाग्यशालिनी तो ये बृज गोपियाँ हैं …..जो चरणों में नही ….मेरे नारायण के कण्ठ में ही अपनी गोरी भुजाओं की माला डाल दी है ………

रमा आगे कहती हैं – गोपियों नें ही नही ……स्वयं श्याम सुन्दर भी कमल नाल समान अपनी भुजाओं की माला से गोपियों का मान बढ़ाते ही जा रहे हैं ।

दोनों की सुरभित साँसे टकरा रही हैं ………..दोनों के हृदय की धड़कनें टकरा रही हैं…….अद्भुत छटा बन गयी यमुना पुलिन की उस समय ।

नभ से देवताओं नें पुष्प वृष्टि शुरू कर दी थी ………..ब्रह्मा अपनें अष्ट नेत्रों से उस महारास का दर्शन कर रहे थे ………..

अपनें बाम भाग में ले लिया श्रीराधारानी को श्याम सुन्दर नें ……….फेंट में से बाँसुरी निकाली ……….और जैसे ही फूँक मारी ……….सुर लहरी चल पड़ी ………….हजारों गोपियाँ उनके साथ हजारों रूपों में श्रीकृष्ण ……नाच रहे हैं………पद गति धीमी धीमी होते हुए द्रुत गति में अब महारास चल पड़ा था ……..आकाश में चन्द्रमा अद्भुत प्रकाश बिखेर रहा था……..उसकी चाँदनी यमुना की बालुका में ऐसी शोभायमान लग रही थी जैसे मोती माणिक्य पीस कर बिखेर दिया हो ……..नीली साडी गोपियों की ….पीला पीताम्बर श्याम सुन्दर का ………….देवर्षि नाच रहे हैं नभ में …….भगवान शंकर से रहा नही गया …….वो डमरू लेकर नृत्य करते हुये उन्मत्त हो उठे थे ।

यमुना की तरंगें भी नाच रही थीं …..शीतल हवा चारों और उन गोपियों के अंगों की सुगन्ध को फैला रही थी ………..उन गोपियों की सुगन्ध में श्याम सुन्दर की सुगन्ध जो मिली …..उसनें तो प्रकृति को भी पगला दिया था ।

उफ़ ! रासेश्वर का ये रास………महादेवादि बस आह भर रहे हैं ।

अधर श्रीराधा जू के अधरों से जुड़े श्याम के………….

बोल उठीं श्रीराधा……..मैं बाँसुरी हूँ मनमोहन की……मुझे श्याम नें अपनी वेणु बना लिया …..और श्याम के भुज मेरे कण्ठ हार बन गए हैं ।

श्रीराधा जब कुहुक उठीं …….नेत्र बन्द हो गए समस्त गोपियों के ……श्याम सुन्दर उन्मत्त हैं ……..प्रेम में भींगें पगे हैं …………नृत्य चल रहा है ……………..गोपियों की पायल बज रही है …………..उन हजारों की पायल एक साथ जब बजी ………तब सम्पूर्ण आस्तित्व स्तब्ध रह गया ………प्रकृति देखती रह गयी ……….वृन्दावन अद्भुत रूप से चमक उठा ….विमुग्ध हो गए समस्त चराचर ……….ये क्या हुआ ? ये क्या हुआ ?

कहते हुये सिद्धात्मा समाधि से जाग गए ……..जब उन्होंनें भी ये दृश्य देखा ………वो सुन्दर सुकुमार श्याम नाच रहा है ……उसके साथ अनन्त सुन्दरीयाँ नृत्य कर रही हैं ….रस ही रस बिखर गया है चारों ओर….ये देखकर – इसी “रास रस” में ये सब सिद्धात्मा डूब गए थे ।

रास रासेश्वर श्रीकृष्ण चन्द्र जू की ……….जय जय जय ।

नभ से देव पुष्प बरसा रहे है ।

*शेष चरित्र कल –

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