श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! ललिता सखी और गोपेश्वर महादेव का सम्वाद !!
भाग 1
गोपेश्वर महादेव को नित्य जल चढानें आजाती हैं ललिता सखी ।
और महादेव ?
इनका तो अपूर्व आकर्षण का केंद्र बन गया है बृजमण्डल ।
बृज के हर क्षेत्र में ये विराजमान हैं………मथुरा में भूतेश्वर के रूप में …..नन्दगाँव में नन्दीश्वर के रूप में….गोवर्धन में चकलेश्वर के रूप में और वृन्दावन में गोपेश्वर के रूप में ।……महादेव को कैलाश मानसरोवर की अपेक्षा वृन्दावन का “मानसरोवर” ज्यादा प्रिय है ।
आज प्रदोष व्रत लिया है ललिता सखी नें ……..प्रातः जल चढानें आगयी थी……..ललिता सखी के सामनें प्रकट हो गए महादेव ……क्या चाहिये आपको ललिते ! माँगिये !
महादेव नें वर माँगनें के लिये कहा ।
हे योगीश्वर ! स्वामिनी श्रीजी के चरणों में मेरा अनुराग बना रहे ।
श्रीजी की सखी , प्रमुख सखी और माँग ही क्या सकती है ।
तथास्तु ! महादेव नें भी कह दिया ।
ललिता सखी नें सिर झुकाया . ……और चल पड़ी बरसानें की ओर ।
पर कुछ दूर पहुँचनें के बाद जब ललिता सखी नें पीछे मुड़कर देखा …..तो रुक गयी…..क्यों की महादेव पीछे चले आरहे थे ।
भगवन् ! आप कहाँ आरहे हैं ? ललिता सखी नें रुक कर पूछा ।
मैं आज तुम्हारी स्वामिनी जू के दर्शन करनें जा रहा हूँ ………..महादेव नें प्रसन्नता पूर्वक कहा ।
बरसाना ? ललिता सखी नें साश्चर्य पूछा ।
सिर “हाँ” में हिलाकर चलनें का संकेत किया महादेव नें ललिता सखी को ……….ललिता सखी चल दी ।
हे ललिते ! क्या “युगलवर” में बारे में आप कुछ बताओगी ?
महादेव नें जब ये बात कही …..तब रुक कर ललिता हँसीं……फिर चलते हुये बोलीं ……तो महादेव युगल तत्व के सम्बन्ध में जानना चाहते हैं , पर मैं क्या बता पाऊँगी ! हे महादेव ! दोनों एक हैं ……पर लीला के लिये दो बन जाते हैं…….पर कौन क्या है …..ये समझ में नही आता…….श्याम , श्यामा हैं ….या श्यामा, श्याम हैं ।
हे आशुतोष ! आप तो जानते ही हैं ……….क्यों की आप भी तो शिव और शक्ति , अर्धांग रूप हैं……….जल और तरंग जैसे एक हैं ………वैसे आप नाम अलग अलग रख लो, कह लो ……जैसे – ये जल है और ये तरंग है …….पर क्या ये दो हैं ? नही, ये दो नही एक ही हैं ……..ऐसे ही राधा कहो या श्याम …….नाम दो हैं …….पर तत्वतः ये एक ही हैं…….एक ही ज्योति बढ़ते बढ़ते ऊपर गयी और दो रूपों में दिखाई देंने लगी …..ऐसे ही राधा कृष्ण हैं ।
ललिता की “युग्मत्व समीक्षा” सुनते हुये बरसानें पहुँच गए थे महादेव ।
हे ललिता ! कुछ बातें अपनी स्वामिनी के सम्बन्ध में भी तो बताओ ।
महादेव की बातें सुनकर ललिता सखी मुस्कुराई ………फिर वहीं पास के ही प्रेम सरोवर में बैठ गयी…….महादेव भी बैठ गए थे ।
निष्काम प्रेम नें जब आकार लिया….तब श्रीराधा का प्राकट्य हुआ …….ललिता सखी आनन्दित होकर बता रही थी ।
यही प्रेम, निष्काम प्रेम ही ब्रह्म को आल्हाद प्रदान करता है ………ब्रह्म आनन्दित हो उठता है ………..महादेव ! आप सब जानते हैं ….आप ही जगद्गुरु हैं …….फिर भी पूछ रहे हैं तो सुनिये !
तीन शक्तियाँ हैं ब्रह्म की ……ज्ञान शक्ति, द्रव्य शक्ति, क्रिया शक्ति ।
*क्रमशः …
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