श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “बेदर्दी तोहे दरद न आवे” – श्रीकृष्ण मथुरा गमन !!
भाग 2
गोपियाँ देखती रहीं अपनें प्राणप्रिय को……..मुझे कार्य करना है मथुरा में……..कंस से सब दुःखी हैं मथुरावासी ……उनके दुःख को दूर करना है …….वाह ! क्या सामाजिक बातें कर रहे थे आज ये ।
हँसी गोपियाँ……..नेत्रों से अश्रु बह रहे हैं…….हिलकियाँ बंध गयीं हैं ……..उस पर हँसी और ।
मथुरा के दुःख की बड़ी परवाह है आपको नन्दनन्दन !
और हमारा दुःख ?
कंस के अत्याचार को समाप्त कर मथुरा वासियों का कष्ट दूर करनें जा रहे हो ……जाओ ! पर हमारा क्या होगा ?
सिर झुकाकर खड़े रहे श्याम सुन्दर………क्या उत्तर देते इन अपनें प्रेमियों को ………….
अरी सखी ! पूछ इनसे ये प्रसन्न हैं ? श्रीराधारानी दूर से बोल उठीं ।
पूछ ! क्या ये मथुरा जाकर प्रसन्न रहेंगे ?
श्याम सुन्दर नें देखा दूर तमाल वृक्ष के पास खड़ी हैं श्रीराधा ……..नेत्रों में अश्रु भर आये श्याम सुन्दर के ……..वो अपलक देखते ही रहे अपनी प्रिया को ।
कुछ नही बोले श्याम सुन्दर तो श्रीराधा पास में आईँ ……..गोपियों को रथ से हटाया……..नीचे जो लेटी हुयी थीं रथ के पहिये के पास उन्हें भी उठाया ………फिर बोलीं ……..हे प्राण ! आप जाओ …….आपको सुख मिलता है मथुरा जानें में तो जाओ ………हम वृन्दावन वाले हैं ………हमारा प्रेम इतना कच्चा नही है कि अपनें सुख के लिये तुम्हे वृन्दावन रोकें …..जाओ ! ख़ुशी ख़ुशी जाओ ………हम रोयेंगे भी नही ……ए कोई गोपी नही रोयेगी ……..प्रियतम को जानें दो ………हमें स्वार्थी नही होना है ………..हे गोपियों ! ये जीवन पर्यन्त भी न आना चाहें वृन्दावन तो न आएं ………..पर ये सुखी रहें ।
जाओ प्यारे ! जाओ ! श्रीराधारानी रथ में बिठाती हैं ।
नेत्र सजल हो उठे श्याम सुन्दर के …………सब सखियों नें अपनें अपनें आँसुओं को रोक लिया है…….अब रोयेंगी नही ।
आगे ग्वाल बाल दाऊ, बाबा नन्द जी सब जा चुके हैं ………बस इस रथ में मात्र श्रीकृष्ण हैं ………और सारथि के रूप में अक्रूर ।
रथ चल पड़ा……..ओह ! लड़खड़ाते गोपियाँ गिरनें लगीं ……….शरीर में अब इतनी भी स्फूर्ति नही है ………कि खड़ी भी हो सकें ।
मै देख न सकूँगी कि मेरा लाला जाए …….ऐसा विचार करके …..बृजरानी भीतर आगयीं थीं …………पर रथ चल पड़ा ……।
ये बात रोहिणी नें आकर कही – जीजी ! रथ जा रहा है मथुरा ।
साँसे चलनें लगीं यशोदा जी की तेज तेज ……………रोहिणी ! एक बात बता ! क्या मेरा लाला वसुदेव और देवकी का पुत्र है ?
रोहिणी कुछ नही बोलीं ……..।
कुछ तो बोल ………….पता है अक्रूर रात्रि में किसी ग्वाले से कह रहा था कि ……कन्हैया मेरा लाला नही है …….क्या ये ?
मैं , मैं अपनें लाला से ही पूछूंगी ……….हाँ, बाबरी हो गयी हैं यशोदा मैया …….वो बाहर आईँ…….पर रथ जा रहा है ……….यशोदा नें देखा ……..वो दौडीं ……..पागलों कि तरह दौडीं ………..कोई तो मेरे लाला को रोको ………अरे ! मेरा लाला जा रहा है। ………रोको ! रथ रोको !
दौड़ रही हैं यशोदा मैया ………………..
श्रीकृष्ण नें देखा रथ के पीछे मेरी मैया दौड़ी हुयी आरही है ………..खड़े होगये ….गम्भीर होकर बोले ……काका ! रथ रोकिये !
रथ रुका …………….उतरे श्रीकृष्ण ……….अपनी मैया के हृदय से लग गए ……..क्या हुआ मैया ! बता ना ! क्या हुआ !
हिलकियों से रो पडीं मैया …………ऐसी दशा अपनी मैया कि कन्हैया नें कभी नही देखी थी ……….ये ये अक्रूर है ना !
हाँ , मैया ! क्या हुआ अक्रूर है तो ? ये बहुत बेकार आदमी है ………पता है क्या कहते हुये जा रहा है बृज से ………….सबको कह रहा है कि …….तू मेरा पुत्र नही देवकी का पुत्र है ! बता ना ! बता मेरे गोपाल ! तू मेरा बेटा नही है ? बता ना ! तू देवकी का पुत्र है ……….मैया कि बातें सुनकर कन्हैया स्वयं रो पड़े अब ……..मैया ! जो यह कहता है ………मैं तेरा बेटा नही हूँ ……….वो झूठ है ……वो असत्य है ……..ये कन्हैया किसी का पुत्र है तो मात्र यशोदा मैया का ।
मैया कन्हैया के उन कोमल हाथों को छूनें लगी थीं………..इन्हीं हाथों में मैने रस्सी बाँधी थी ना……..भूल जा …….भूल जा मेरे लाला !
सुन तुझे कष्ट हुआ होगा ना …………इतनें कोमल हाथ और तुझे मैने बाँध दिया ….और एक मटकी के लिये ……….लाला ! तू मुझे बांध दे ……..इस निर्दयी यशोदा को बाँध दे …………..ये कहते हुए यशोदा जी गिर गयीं धरती पर ……….।
अपनी मैया को देखते रहे कन्हैया ……….अपनें अश्रुओं को पोंछते रहे ………..फिर गोपियों नें यशोदा मैया को सम्भाला …….और कन्हैया रथ में बैठ कर चल पड़े थे मथुरा कि ओर ।
*शेष चरित्र कल –
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