श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! जब मथुरा का राजकीय दर्जी धन्य हुआ !!
भाग 1
वध कर दिया था धोबी का श्रीकृष्ण नें……..तब बलभद्र बहुत प्रसन्न हुये थे सखाओं को बोले……देखते क्या हो ……तुम लोगों को वस्त्र अच्छे अच्छे चाहिये थे ना ! लो ! ये तो मर गया है ……इसकी पोटली खोलो……और वस्त्र निकालो……..बड़े प्रसन्नचित्त से बलभद्र कह रहे थे …..मनसुख आनन्दित होते हुये पोटली को खोलनें लगा ।
ये धोबी कोई साधारण धोबी तो था नही…….राजकीय धोबी था ……प्रजा के वस्त्र नही ……..राजा के वस्त्रों को धोना, रँगना यही काम था इसका ।
ये अंगरखा ! मनसुख नें पोटरी से निकाल कर दिखाया …….बहुत सुन्दर था उसमें पच्चीकारी थी ….कला थी ……मणि जड़े थे बड़े कीमती कीमती…….”.ये तो अपना कन्हैया पहनेंगा”……..पीला अंगरखा था ……..कन्हैया नें हँसते हुये उसे धारण किया……..पर जैसे ही अंगरखा पहना …….वो तो नीचे तक आगया………बाजू धरती को छू रहे थे……..मनसुख नें नीला अंगरखा दाऊ जी के लिये निकाला ….गोरे हैं बलराम तो उनमें नीला रंग सुन्दर लगता है ……….हर रंग के अंगरखा थे उसमें ………..दाऊ जी को भी ढीला हो गया वस्त्र ………फिर तो सब नें बारी बारी से पहन लिया………..सब ग्वाल सखाओं नें ……पर सबके वस्त्र झाड़ू का काम कर रहे थे ।
उद्धव “श्रीकृष्णचरितामृतम्” सुनाते हुये विदुर जी को कहते हैं ……इस दिव्य दृश्य को देखकर मथुरा वासी गदगद् हैं….भाव विभोर हैं ।
पर वस्त्र तो ढीले हो गए ! चिन्ता लगी है अपनें सखाओं की श्रीकृष्ण को ।
इधर उधर देख रहे हैं …………कोई उपाय सूझ नही रहा …….
ना , ये पहन कर नही जायेंगे मामा के यहाँ…….
……..लो ! मनसुख नें भी कह दिया ।
कुछ ज्यादा ही ढीला अंगरखा पहन कर खड़े हैं मथुरा के राजमार्ग में श्रीकृष्ण और बलभद्र समस्त सखाओं के साथ ……क्या करें अब ? सोच रहे हैं ।
“गुणक” नाम है दर्जी का ………राजकीय दर्जी है …….राजाओं के और बड़े बड़े धनिकों के ही वस्त्र सिलता है……..सिलता बहुत सुन्दर है …….आस पास के दर्जी अपनें आपको “गुणक” का शिष्य बताकर नाम कमा रहे थे………इसका नाम बहुत दूर दूर तक फैला हुआ था …..कला थी इसके हाथों में ……..जिस कपड़े को ये अपनी कैची से छु देता था ………बस…….फिर तो सिलाई……..उसके हाथों की सिलाई ……..गुणक नाम ऐसे ही नही था इसका ……गुण ही गुण इसमें थे …….पर मात्र गुण ही होना और अवगुण का न होना ये तो मनुष्य में सम्भव नही है………इसलिये विधाता नें इसे एक अवगुण भी देकर भेजा था …….ये मूडी था……..ये नाप लेनें के लिए मात्र कंस के यहाँ ही जाता था …..नही नही… ..ये स्वयं भी नही जाता. ….इसके काम करनें वाले सेवक जाते थे …….कंस के पास नाप लेनें के लिये ।
ये मूडी था जिद्दी भी था …….वैसे भी कला जिसके पास आजाये ……..उन में जिद्दी और मूडी का अवगुण देखा गया है ।
इसके प्रतिष्ठान में सदैव लाइन लगी रहती थी लोगों की …..और लोगों में भी सामान्य लोग नही…….धनिक , राजपरिवार के ….या आस पास के प्रदेशों के राजकुमार………ये स्वयं उपस्थित होते थे …….क्यों की गुणक दर्जी किसी की चापलूसी नही करता था ……….इसका कहना था …..मेरे राजकीय दर्जी होनें से मुझे क्या मिलेगा ? मेरे पास तो कला है ……मैं किसी भी राज्य में चला जाऊँ …….मेरा स्वागत होगा ही …..।
क्रमशः…


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