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November 21, 2024 11:19 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! महर्षि सान्दीपनि गुरुकुल !!-भाग 1 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! महर्षि सान्दीपनि गुरुकुल !!-भाग 1 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! महर्षि सान्दीपनि गुरुकुल !!

भाग 1

मस्तक पर त्रिपुण्ड्र धारण किये हुए ……कण्ठ में रुद्राक्ष् की माला ।

दिव्य देह, उन्नत भाल ……विशाल भुजाएँ …..श्वेत पके बाल …..

ये महर्षि सान्दीपनि विराजे हैं ………सन्ध्या बीत रही है …….पर समिधा लेकर सुदामा अभी तक नही आया ……….किन्तु ऋषि ध्यान में बैठे हैं शान्त गम्भीर ………सुदामा को बिलम्ब होगया इस बात से इन्हें आज कोई फ़र्क नही पड़ रहा …….दाहिनी भुजाएँ फड़क रही हैं …….सामनें मृग शावक खेल रहे हैं ………..पर आज ये भी चंचल हो उठे हैं ………इसलिये ऋषि के पास में ही जाकर अपने सींग से उनके शरीर में खुजार करनें लगे हैं ………….कुछ पक्षी चहक उठे हैं …….गौएँ अभी अभी चर कर आयी हैं …..और बड़े आनन्द से रंभा रही हैं ।

मन अनायास ही महर्षि का आनन्दित हो रहा है आज। ।

गुरुदेव ! सुदामा नें आकर प्रणाम किया चरणों में ।

महर्षि सान्दीपनि नें अपनें नेत्रों को खोला …………सुदामा प्रणाम कर रहा था ……..पर जब दृष्टि उठाई ऊपर …………अहो ! मुण्डित केश , गौ खुर के समान मोटी चोटी …….श्याम वर्ण…….यज्ञोपवीत कंधे में …….धोती ……उन कोमल अरुण चरणों में खड़ाऊँ …….उठकर खड़े हो गए एकाएक महर्षि ……और खड़े खड़े श्रीकृष्ण को देखते रहे ……….आगे बढ़े श्रीकृष्ण बलराम …….दोनों नें जैसे ही चरण वन्दन करना चाहा …….महर्षि नें उठा लिया और अपनें हृदय से लगा लिया ।

नेत्रों से अश्रु बह चले थे सान्दीपनि के …………..मुझे ऐसा गौरव प्राप्त होगा मैने कभी सोचा भी नही था ………फिर महर्षि सान्दीपनि अपनें गुरु देव का स्मरण करते हैं ……..।

हम वृष्णि वंशीय वसुदेव के पुत्र आपको प्रणाम करते हैं !
श्रीकृष्ण बलराम नें अपना इस तरह परिचय दिया ।

मेरी बहन नें मुझे बताया था….मेरे पास सूचना आयी थी कि “हे कृष्ण ! तुम मेरे पास आनें वाले हो !” महर्षि अपलक श्रीकृष्ण को निहार रहे थे ।

गुरुदेव ! आपकी बहन ? श्रीकृष्ण नें सहज पूछा ।

तुम नन्दनन्दन हो ……..मेरी बहन पौर्णमासी ……..मेरा भान्जा है आपका सखा मनसुख……ये सुनते ही भाव में भर गए सजल नयन हो गए श्रीकृष्ण के ……..ओहो ! तो भगवती पौर्णमासी आपकी बहन हैं ? मनसुख ! श्रीकृष्ण इसके बाद आगे कुछ बोल न सके ।

जब कुछ सम्भले तब बोले –

हे गुरुदेव ! हमें अपना शिष्य स्वीकार कीजिये …….और हमें विद्या दान दीजिये ……..श्रीकृष्ण के साथ बलराम जी नें भी प्रार्थना की ।

विद्या की देवी सरस्वती स्वयं हाथ जोड़े खड़ी हैं ………समस्त विद्याएँ आपको पाकर धन्य हो जाएँगी ……………….

पर गुरुदेव ! मुहूर्त कब का है ? विद्या का शुभारम्भ कब करना है ?

सुदामा नें पूछा था ये प्रश्न ।

हे कृष्ण ! तुम्हारे लिये सब मुहूर्त ही हैं ……….कल से ही प्रारम्भ कर देता हूँ मैं विद्याध्यन………..महर्षि आनन्दित होते हुये बोले ।

उसी समय महर्षि सान्दीपनि की पत्नी वहाँ आगयीं थीं ( प्राचीन ऋषि परम्परा में विवाह करके पत्नी रखनें का नियम था , ये नियम अच्छा था वर्तमान काल के अनुकूल भी होता ) देखो देवी ! ये हैं कृष्ण और ये हैं बलराम ………सान्दीपनि नें परिचय कराया……..माता ! कहकर दोनों चरणों में झुके ही थे कि …..सान्दीपनि कि पत्नी वात्सल्य से भर गयीं उनके नेत्रों से अश्रुओं कि धारा बह चली थी……..हृदय से लगाकर श्रीकृष्ण बलराम को वो अत्यन्त भाव से रोये जा रही थीं ।

चलो भूख लगी होगी कुछ खा लो…….गुरुमाता लेकर गयीं इन तीनों को …….कृष्ण बलराम ….सुदामा तो पीछे पीछे चला आया था ।

दूध चिउरा खाकर ये सो गए, ……थके थे रात्रि भी हो गयी थी ।

हाँ रात्रि में एक बार देखनें के लिये अवश्य आये थे महर्षि सान्दीपनि…..गहरी नींद में सोता देख लौट गए ।


ॐ गणेशाय नमः …..ॐ सरस्वत्यै नमः ………

पुष्प दूर्वा बिल्व पत्र इन सबसे पूजन किया भगवती वीणापाणी का और गणपति का ………महाकाल का पूजन बड़ी श्रद्धा से किया था श्रीकृष्ण नें ।

सुदामा अब अन्य छात्रों के साथ नही उठता बैठता …..ये श्रीकृष्ण के साथ ही रहता है …….विद्याध्यन के समय भी ।

“वेदाध्यन”…….हे श्रीकृष्ण बलराम ! कल ये वेद कि ऋचा तुम सुनाओगे ………कण्ठस्थ करके लाना ………सान्दीपनि नें पाठ दिया ।

गुरु जी ! मैं हूँ ना ……सब पढ़ा दूँगा ………….सुदामा बोला ।

हे कृष्ण ! ये बालक तुम्हारा मित्र बनने योग्य है …….क्यों कि इसके मन में न छल है न दम्भ …….जैसा है वैसा ही रहता है ……विप्र कुल में जन्मा है ……..सत्य ही बोलता है ।

क्रमशः …
शेष चरित्र कल –

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