श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! “ द्यूत क्रीड़ा – उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 55 !!
भाग 2
आज्ञा हैं ? शकुनि दम्भ भरी वाणी से युधिष्ठिर को पूछ रहा था ।
मामा जी ! आप भी ! शुरू कीजिए , युधिष्ठिर ने कहा ।
पासे पीसने लगा शकुनि , और पीसते हुए युधिष्ठिर से बोला , क्या लगाओगे दाँव में ?
सौ सुवर्ण मुद्रा , ये कहते हुए अर्जुन की और देखा था युधिष्ठिर ने ।
इन्द्रप्रस्थ के राजा मात्र सौ सुवर्ण मुद्रा , व्यंग भी करते हुए उसने पासे पीसे ,
छ मेरे , तुम्हारे ? चार , युधिष्ठिर बोल उठे ।
मामा ! छ आने चाहिएं । दुर्योधन बोल उठा ।
पासों को जैसे ही फेंका शकुनि ने , चार , युधिष्ठिर चिल्लाए , चार ही आए थे ।
ये क्या हुआ मामा ! फुसफुसाया कान में दुर्योधन ।
देखते जाओ आगे आगे भांजे ! शकुनि ने समझाया ।
वाह ! युधिष्ठिर महाराज ! आप तो द्यूत क्रीड़ा के अच्छे जानकार लगते हैं पितामह ऐसे ही आपको बालक समझ बैठे थे ।
लीजिए , आप जीते सौ सुवर्ण मुद्रा ,
दो अंक , युधिष्ठिर पहले ही बोल उठे इस बार , और मैं लगाता हूँ अपना गौ धन , सम्पूर्ण इन्द्रप्रस्थ का गौ धन , क्या कर रहे हैं आप ? अर्जुन ने कम्पित स्वर में पूछा ।
इन्द्रप्रस्थ के महाराज तो आप हैं फिर ये अर्जुन बीच में क्यों बोल रहा है , दुर्योधन अब अपने रूप में आने लगा था , और ये बात सुनकर कर्ण हंसा , अपमानित सा अनुभव किया अर्जुन ने किन्तु युधिष्ठिर पर तो कलि आकर बैठ चुका था , फिर ये द्यूत क्रीड़ा है इसमें एक उन्माद होता है जिससे कोई खेलने वाला बच नही सकता । उसी उन्माद ने जकड़ लिया है युधिष्ठिर को ।
ठीक है , और हमारा अंक हैं आठ , शकुनि पीसते हुए पासों को बोला था ।
और ये – शकुनि चिल्लाया – आठ , और इस बार आठ ही आया था ।
युधिष्ठिर के मस्तक से स्वेद बहने लगे , अर्जुन और भीम बोले , चलिए भैया , नही खेलेंगे ।
वीर लोग रण छोड़कर नही जाते अर्जुन ! कर्ण बोल उठा था ।
हिम्मत है तो आ , मैं बताता हूँ तुझे सूतपुत्र ! भीम चिल्लाया ।
पर युधिष्ठिर को इन बातों से आज कोई विशेष फ़र्क़ नही पड़ रहा था ।
इन्द्रप्रस्थ की सारी सम्पदा , युधिष्ठिर बोल उठे । अर्जुन स्तब्ध थे , ये क्या कर रहे हैं ।
अंक – पाँच युधिष्ठिर बोले । दस , हमारा अंक है शकुनि बोला ।
पीसा पासों को शकुनि ने , पूरी सभा उन्माद से भर गयी है सब की दृष्टि चौसर पर थी ।
दस , चिल्लाए इस बार धृतराष्ट्र , भीष्म , कृपाचार्य द्रोणाचार्य सब चौंक गए थे महाराज के इस व्यवहार से ।
और दस ही आया , युधिष्ठिर स्वेद से नहा गए , अर्जुन सिर पकड़ कर बैठ गया था ।
संपत्ति अब नही है आपके पास युधिष्ठिर महाराज ! शकुनि और दुर्योधन के साथ कर्ण भी हंसा ।
अब जब सम्पत्ति ही नही है तो खेल अब नही होगा , क्यों की युधिष्ठिर हार चुके हैं , खेल को बन्द कर दिया जाए , कुलगुरु कृपाचार्य बोले सभा में खड़े होकर ।
सिर झुका हुआ है युधिष्ठिर का, वो कुछ बोल नही रहे ।
आपके पास अभी तो इन्द्रप्रस्थ है । उसे भी लगा दीजिए , शकुनि ने उकसाया ।
तीन अंक , सिर नीचा करके ही बोले युधिष्ठिर ।
ये क्या हो गया है युधिष्ठिर को, समझाओ कोई , भीष्म पितामह अत्यंत दुखी होकर कह रहे थे ।
आप को बड़ा कष्ट हो रहा है पितामह ! दुर्योधन क्रोध में बोला था ।
महाराज धृतराष्ट्र !
बन्द करवाओ ये खेल , ये विनाश का खेल है जो गांधार नरेश ने शुरू किया है ।
जब गांधार नरेश ने शुरू किया है तो खेल को समाप्त भी ये गांधार नरेश ही करेगा ।
पाँच , मेरा अंक पाँच , शकुनि बोला ।
पासे पीसे और , पाँच , दुर्योधन नाच उठा , शकुनि अपने भांजे को गले से लगाकर उन्मत्त हो गया था । हट्ट ! अब युधिष्ठिर ! तू राजा नही है , क्यों की तेरा राज्य अब मेरा है ।
ये अभद्रता ! भीष्म बोलना चाह रहे थे किन्तु क्या बोलें ! हार चुके थे युधिष्ठिर ।
ये मुकुट हमारा है अब, युधिष्ठिर के मस्तक से खींच लिया था दुशासन ने सुवर्ण का मुकुट ।
और स्वयं लगाकर सब को दिखा रहा था , मैं इंद्रप्रस्थ का राजा ! दुशासन को देखकर दुर्योधन के लोग हंस रहे थे । पर युधिष्ठिर नीचे सिर किए हुए हैं , अर्जुन ने दुशासन की और क्रोध से देखा था तब दुशासन ने कहा था – आँखें नीची , अर्जुन ! अब तुम लोग राजा नही हो, न राजपाठ है , इसलिए चुपचाप नीचे दृष्टि करके बैठो , अर्जुन ने दृष्टि नीचे की , क्या करते ।
अब तो खेल समाप्त है , क्यों की लगाने के लिए अब कुछ नही है इनके पास ।
ना भांजे , है , अभी तो ये पाँच भाई हैं , अपने आपको लगा दें , अगर ये बाज़ी इन्होंने जीत ली तो सब जो ये हारे हैं इनका , अब हार गए तो ।
मत खोलो कुन्ती नन्दन ! अब उठ जाओ , तात ! आप बोले थे आप अश्रुपुरित नेत्रों से बोले थे….किन्तु ये खेल होता ही उन्माद का है ,
दो अंक , हारे हुए युधिष्ठिर थकी उनकी वाणी , हताश निराश युधिष्ठिर बोले – दो ।
एक , शकुनि बोला ।
एक अंक आना ही था , क्यों की द्यूत क्रीड़ा मात्र भाग्य से ही नही जीती जाती , छल कपट इनकी आवश्यकता होती ही है , युधिष्ठिर में ये सब था नही , शकुनि इन सब का श्रेष्ठ क्रीड़क था वो इसलिए जीता । उछला अब दुर्योधन , तुम सब मेरे दास हो पाण्डवों ! तर्जनी दिखाकर अट्टहास करते हुए बोला था । युधिष्ठिर, भीम , अर्जुन , नकुल, सहदेव , सबके मस्तक नीचे हैं ।
महाराज धृतराष्ट्र ! अब आप कुछ कहिए , इस खेल को यहीं पर विराम लगा दीजिए ।
भीष्म उठकर हाथ जोड़कर धृतराष्ट्र से विनती के स्वर में बोल रहे थे ।
हे मेरे दास युधिष्ठिर !
तू दास है मेरा , दुर्योधन के इस दास सम्बोधन पर भीम उठ खड़े हुए थे ।
दासों को क्रोध उचित नही है युधिष्ठिर ! दुर्योधन कुटिल हंसी हंसते हुए बोला था ।
युधिष्ठिर ने भीम का हाथ पकड़ कर बिठाया । भीम क्या करते बैठ गए ।
हे महाराज धृतराष्ट्र ! और समस्त सभासदों ! मेरी द्यूत क्रीड़ा में जो हार हुई है वो मेरे कारण ही है इसलिए मैं अपनी हार स्वीकार करते हुए इन्द्रप्रस्थ का राज्य और मैं स्वयं अपने भाइयों के सहित समर्पित होता हूँ । युधिष्ठिर के मुख से ये सुनते ही भीष्म के नेत्रों से जल बहने लगे थे , सज्जन पुरुष उस समय भावुक हो गए थे ।
हे समस्त सभासदों ! मेरे पास अब कुछ नही है जिसे मैं दाँव पर लगाऊँ , मैं सब कुछ हार चुका हूँ ।
अभी भी है तुम्हारे पास युधिष्ठिर , पीछे से कोई चिल्लाया था ।
क्या है मेरे पास मैं सब कुछ हार चुका हूँ , युधिष्ठिर ने हाथ जोड़कर कहा ।
“द्रौपदी”। दुशासन बोला ।
दु शा स न ! अर्जुन भीम नकुल सहदेव , ये चारों चिल्ला उठे थे ।
शेष चरित्र कल-
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